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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

एक था प्रेस क्लब ग्वालियर

प्रेस क्लब हर शहर, जिले के अखबार में काम करने वालों की शान हुआ करता है। शान इसलिए क्योंकि यहां बैठकर प्रेस में काम करने वाले महसूस किया करते हैं कि उनके पास भी प्रेस के दफ्तर को छोडक़र भी बैठने का कोई ठौर है। यहां बैठकर प्रेस में काम करने वाले अपने दुख-दर्द भी बांटते हैं तो जिन्हें गला तर करने की आदत है वे अपना गला तर कर दिल का बोझ भी कम कर लिया करते हैं। ऐसा देश के हर प्रेस क्लब में शायद होता है। ऐसा ही प्रेस क्लब ग्वालियर में था।
था, इसलिए लिखा क्योंकि पिछले दस साल इस प्रेस क्लब का ताला नहीं खुला है। वैसे इस प्रेस क्लब को हासिल करने के लिए ग्वालियर के तब के युवा पत्रकारों ने खूब लड़ाई लड़ी। पसीना भी बहाया। क्योंकि जिस जगह को प्रेस वाले प्रेस क्लब के लिए चाह रहे थे, वह नगर निगम के अधीन थी। वहां बने हॉल में रेल का इंजन रखा हुआ था और लोग भाप से चलने वाले इस इंजन को देखने के लिए आया करते थे। इसका विरोध करने वालों की संख्या भी कम नहीं थी क्योंकि जमीन बीच शहर में करोड़ों की जो है।
खैर, 2000 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ग्वालियर के प्रेस वालों की सुध ली। बीच शहर में स्थित जमीन का टुकड़ा प्रेस क्लब के लिए दिलवाया। श्री सिंह ने ही प्रेस क्लब का फीता काटा था और हालनुमा भवन प्रेस क्लब के हवाले किया। तब यहां बेहतरीन साउंड सिस्टम लगा। आनन-फानन में टेलीफोन की लाइन खिंची। नल का कनेक्शन हुआ। कुर्सियां आईं। राउंड टेबल भी लगी। इसके बाद यहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी आए तो चंद्रशेखर ने भी यहां प्रेस कान्फ्रेंस ली। कई दिग्गज नेताओं की यहां प्रेस कान्फ्रेंस हुई। ऐसे में आप सोच रहे हैं कि इस पूरी कहानी का इस बात से तो कोई सरोकार नहीं है जो कि शीर्षक दिया गया है कि एक था प्रेस क्लब ग्वालियर। पर आप गलत सोच रहे हैं। कहानी यहीं से शुरू होती है।
अब पत्रकार हो गए हैं एयर कंडीशन कारों में घूमने वाले। एयर कंडीशन दफ्तरों में बैठने वाले। करोड़ों रुपए की कीमती जमीन हाथ में आने के बाद ठीक वैसे ही हुआ जैसा कि होता है। प्रेस क्लब ग्वालियर के अंतिम बार चुनाव 1990 में हुए थे। तब एएच कुरैशी अध्यक्ष चुने गए और सचिव पद पर राकेश अचल की नियुक्ति हुई। आज भी प्रेस क्लब की कमान इन दोनों के हाथों में हैं।
इस प्रेस क्लब में साल में चार पांच बड़े आयोजन होते हैं। पहला बड़ा आयोजन तो एक माह से अधिक समय के लिए चलता है। यह आयोजन है सर्दी में ग्वालियर में गर्म कपड़ों की दुकान खोलने आने वाले तिब्बतियों को प्रेस क्लब की जमीन किराए पर देने का। यह तिब्बती ग्वालियर से सर्दी विदा होने के साथ ही प्रेस क्लब से विदा होते हैं। इसका किराया किसकी जेब में जाता है पर प्रेस क्लब के उत्थान में खर्च नहीं होता यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं। क्योंकि प्रेस क्लब का ताला पिछले दस साल से खुला ही नहीं है।
तीन अन्य बड़े आयोजन भी इस तरह के होते हैं जिनका प्रेस क्लब या पत्रकारों से कुछ भी लेना-देना नहीं होता है। लेकिन यह तय है कि इन चारों आयोजनों से होने वाली कमाई (लगभग ढाई से तीन लाख रुपए किराया आता है सालाना) का एक धेला भी प्रेस क्लब को सुधारने में इस्तेमाल नहीं हुआ। दस साल से जब ताले नहीं खुले तो चोर भी इसमें से सामान समेट ले गए। कोई चोर सिक्के वाले टेलीफोन एपरेट्स उखाड़ ले गया, तो बाकी चोर साउंड सिस्टम और कुर्सियां समेट ले गए। बची टेबल तो उसे दीमक चट कर गई क्योंकि वह काफी भारी थी और चोर उसे ले जा नहीं सकते थे।
प्रेस वालों के इसमें पांव पड़ते नहीं हैं। क्योंकि ताला ही नहीं खुलता। अध्यक्ष को डर है कि अगर उन्होंने ताला खोलकर प्रेस वालों के लिए प्रेस क्लब खोल दिया तो फिर यह संस्था ही उनके हाथों से निकल जाएगी। इस संबंध में जब संस्था के सचिव राकेश अचल से बात की गई तो उन्होंने कहा, अब तो प्रेस क्लब के लिए कोई रोने वाला भी नहीं है। मैं ही साल में एक बार नगर निगम की सीढिय़ां चढ़ता हूं। एक रुपए का लीज रेंट भरता हूं। लीज रिन्यू करवाता हूं और लौट आता हूं।
लेखक प्रफुल्ल नायक ग्वालियर के तेजतर्रार पत्रकारों में शुमार किए जाते हैं। वे विभिन्न अखबारों में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. इन दिनों ग्वालियर एक एक प्रमुख सांध्य दैनिक के एडिटर हैं.
साभार- भडास ४ मीडिया .कॉम

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