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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

क्या यशवंत 'चोर' है?


जगमोहन फुटेला- 

'भड़ास' पे खुद उसके मालिक ने अपने बारे में एक लेख छापा है सुशील गंगवार का...शीर्षक है, " भड़ास4मीडिया का पेड न्‍यूज का काला कारोबार". इस लेख में गंगवार ने एक सवाल उठाया है. कहा है कि विज्ञापन जब नहीं है तो वेबसाईट चलती कैसे है? वे लिखते हैं कि यशवंत पेड़ न्यूज़ और दलाली का धंधा करते हैं.

मैं न यशवंत के साथ हूँ, न खिलाफ़. इस लिए भी कि मैं उन्हें आज तक कभी नहीं मिला. हाँ, एक बार उन्हें वायस आफ इंडिया के दफ्तर में देखा ज़रूर है. उन के बारे में बातें बहुत सुनी हैं. सो, सुशील जो भी कह रहे हैं मैं उसकी तस्दीक कर पाने की हालत में नहीं हूँ. मुझे ये भी नहीं पता कि दोनों में अब बिगड़ी क्यों है. लेकिन एक बात सच है और वो ये कि वेबसाईट चलाना कोई आसान काम नहीं है. खासकर तब कि जब आप पर अदालतों में कुछ केस भी चल रहे हों.

'भड़ास' बेशक मीडिया जगत में काफी चर्चित साईट है. लेकिन उस के नाम का पहला शब्द कुछ ऐसा है जो आम तौर पर अंग्रेजी या हिंदी में किसी सर्च इंजन पर टाइप होता नहीं है. फिर भी इसे इतने लोग देखते हैं तो ये इस साईट के कंटेंट का कारण है. कंटेंट सही भी हो सकता है. गलत भी. विवादास्पद भी. बहुत सारे प्रतिष्ठित प्रकाशन और मीडिया संस्थानों ने अपने उत्पाद बेचने के लिए नंगई का सहारा लिया है. भड़ास अगर विवादास्पद लेख ही छाप रही है तो बुरा क्या है, जब तक वे असत्य न हों. रही पैसे लेकर खबर छापने की बात तो वो आसानी से मेरे गले उतरती नहीं है. कोई अगर अपने उत्पाद (या अपनी साईट) को पापुलर करने के लिए किसी भी पापुलर साईट का इस्तेमाल कर रहा है तो उसे प्रचार की कीमत चुकानी ही चाहिए. मैंने भी चुकाई. 'बुद्धिजीवी.कॉम' 
की मेरी एड स्क्रिप्ट चली' भड़ास' पर. मैंने पैसे दिये. ये बिजनेस है. इस में बुरा क्या? रही एडमिशन वगैरह में पैसे खाने वाली बात तो वो व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता है. मैंने अपने पूरे पत्रकारीय जीवन में कभी किसी भी काम के लिए किसी का एहसान माँगा ही नहीं. कुछ मांगते हैं, पैसे नहीं लेते. कुछ ऐसे भी हैं जो काम के न धाम के मगर मालपानी फिर भी रगड़ जाते हैं. अपन तब तक नहीं मानेंगे जब तक कोई आ के न कहे कि हाँ मैंने दिए यशवंत को पैसे.

हाँ, वेबसाईट चलाना मुश्किल काम है. विज्ञापन मेरे पास भी नहीं है. जर्नलिस्टकम्युनिटी, श्रद्धांजलि और बुद्धिजीवी डाट काम मैं फिर भी चला रहा हूँ बौहुत बड़े सर्वर, डाटा स्टोरेज और स्पीड के साथ. विज्ञापन नहीं है. मैं मांगता भी नहीं. अब कोई कहे मैं ब्लैकमेल करता हूँ तो कहे लेकिन बताये तो कि किसको किया और क्यों?

बहरहाल एक बहस छिड़ ही जानी चाहिए. तय हो ही जाना चहिये कि 'भड़ास' का सच और यशवंत की असलियत क्या है? कोई और छापे न छापे, मैं छापूंगा. लिखो, भेजो journalistcommunity@rediiffmail.com पर.

Sabhar:- Journalistcommunity.com

सुशील गंगवार का लेख भी हम यहाँ दे रहे  हैं...

मीडिया की खबर छापने का सिलसिला  Exchange4Media.com  और समाचार4मीडिया डाट कॉम  ने शुरू किया फिर इसी की धुन में अपनी धुन सुनाने की जुगत और मीडिया  को उजागर करने का मकसद लेकर मीडिया खबर डाट कॉम और भडास4मीडिया डाट कॉम शुरू हुए। जो लोग मीडिया के खिलाफ जम कर छापते है वह कितने दूध के धुले हैं? ये सबसे बड़ा सवाल है। कैसे चलता है इनके मीडिया की खबरों का काला कारोबार?
क्या ये लोग बड़े मीडिया घरानों के स्टिंग और वसूली करते हैं। यशवंत सिंह भड़ास नाम से ब्लॉग लिखते थे जो अब भी चल रहा है भडास ब्लॉग में काफी फेमस हुआ। उसके बाद भड़ास4मीडिया डाट कॉम का जन्म हुआ। हम ये कह सकते है यह यशवंत की जिन्दगी का नया चेहरा था जो भडास4मीडिया डाट कॉम बन के उभरा था।
मीडिया जगत के लोगों ने Exchange4media.com को छोड़ कर भड़ास4मीडिया डाट काम पढ़ना शुरू कर दिया। भड़ास4मीडिया खबरों में दम था चाहे वह शुरुआती दौर में कट एंड पेस्ट के जरिये लिखी जाती थी। धीरे-धीरे मीडिया की खबरें पत्रकार दोस्तों और मेल से आना शुरू हो चुकी थी। यशवंत की नजर हर मीडिया हाउस, न्यूज़ पेपर पर जमने लगी। दैनिक जागरण, अमर उजाला अखबारों का अनुभव रखने वाले यशवंत सिंह सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहे थे परन्तु पैसे का जरिया नजर नहीं आ रहा था।
आखिर करे तो क्या करें? ये बड़ा सवाल था। न्यूज़ वेबसाइट खोलना आसान था मगर चलाना उतना ही कठिन था। इसी दौर में शुरू हुआ पेड न्यूज़ और वसूली का गरमा गरम धंधा। जिससे खर्चे निकलने लगे। किस्मत ने साथ दिया तो भड़ास4मीडिया डाट कॉम चल निकली और फिर यशवंत सिंह दौड़ने लगे। एक दिन मैंने भड़ास4मीडिया डाट कॉम के मालिक यशवंत सिंह को फ़ोन करके बोला, भाई मैंने एक नयी साइट बॉलीवुड खबर.कॉम शुरुआत की है, जरा भड़ास4मीडिया डाट कॉम पर न्यूज़ लगा दो, तो यशवंत सिंह बोले यार हम क्या चूतिया हैं जो तुम्हारी खबर लगा दें तुम माल छापो? पहले तुम मुझे पैसा दो फिर मैं न्यूज़ लगा सकता हूं। मैं बोला भाई ये बताओ कितना पैसा दिया जाये। इस पर यशवंत सिंह बोले कि तुम कम से कम 5000/- दान करो।
मेरी यशवंत से यदा कदा बातचीत फ़ोन पर हुई थी। मैं यशवंत को मीडिया गुरु मानने लगा था। एक दिन मेरा भ्रम टूट गया। गुरु घंटाल यशवंत मुझसे ही न्यूज़ डालने के पैसे मांग रहा था  और वह हड़काने वाली आवाज साफ़ सुनाई दे रही थी ये बात पिछले साल मार्च की है। यार एक पत्रकार दूसरे पत्रकार से पैसे मांग रहा है, मैं सोचने लगा ये आदमी इतना गिर सकता है। जब मैंने अपने मीडिया मित्र से पूछा यार ये यशवंत का असली काम क्या है, वह तपाक से बोला कुछ नहीं यार बहुत सारे काम हैं, दलाली कर लेता है, लोगों को नौकरी पर लगवा देता है और उसके बदले में पैसा खा लेता है। जो लोग टीवी चैनल, न्यूज़ पेपर स्ट्रिंगर, रिपोर्टर, एडिटर हैं और कंपनी उनको पगार देने में आनाकानी करती है तो यशवंत पैसा निकलवाता है और उसके बदले कमीशन उसके खा लेता है।
मैं समझ चुका था भड़ास4मीडिया डाट कॉम पेड न्यूज़ का धंधा कर रहा है। दूसरी बार जब फेसबुक पर मेरी मुलाकात यशवंत से हुई तो यशवंत सिंह को मजाक में बोला भाई मुझे काम दे दो? तो यशवंत ने जवाब दिया, आप नौकरी के लायक नहीं है हम लोग मिल के किसी विषय पर काम करते हैं। मीडिया में 11 साल काम करते हुए हो गए हैं तो ये समझते देर नहीं लगी आखिर ये यशवंत सिंह क्या काम करवाना चाहता है। अगर भडास 4मीडिया.कॉम को देखेंगे तो साइट विज्ञापन के नाम पर जीरो है, फिर कैसे चलती है खबरों की कालाबाजारी की दुकान।  आखिर कौन मसीहा है, जो इनके खर्चों को देता है और क्यों देता है।
मैं पिछले 11 साल से मीडिया में हूं। अभी तक साक्षात्कार डाट कॉम ब्लॉगर पर चला रहा हूं। मुझे अभी तक मसीहा नहीं मिला है अगर मिलता है तो तुरंत इतला कर दूंगा। मीडिया के  कालाबाजारियों पर रौशनी  डालने जरुरत है। अभी बहुत कुछ उजागर होना बाकी है जरा रखो तसल्ली। पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त।

3 comments:

  1. मजा आ गया । अब होगी बहस की शुरुआत

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  2. Achha ji aap maja le raho hai wah bi akele akele ?

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