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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

चला नाच और दारू का दौर तो लुढ़क गया गोरखपुर का चौथा खंभा


काजू भुने प्लेट में, विस्की भरा गिलास में, उतरा है राम राज विधायक निवास में" ये पंक्तियाँ मशहूर शायर अदम गोंडवी ने भले ही सियासी रहनुमाओं पर कटाक्ष करते हुए लिखी हों लेकिन ७ मार्च की शाम को तो ये गोरखपुर के प्रेस क्लब पर ज्यादा फिट बैठती हैं. वैसे होली आते ही आपको अखबारों में शराब आदि को लेकर तमाम खुलासे हमारे पत्रकार समूह द्वारा किये जाने लगते हैं. बुराई के खिलाफ उपदेश में हमारा चौथा खम्भा कहीं पीछे बैठने को तैयार नहीं दिखता. लेकिन होली मिलन के नाम पर गोरखपुर प्रेस क्लब में जो भी हुआ वो सुनकर आप भी कहेंगे भाई क्या बात है? 

सात मार्च की रात प्रेस क्लब, गोरखपुर में होली मिलन का आयोजन था, जिसमें दारू और हुड़दंगई का जो नमूना हमारे मीडिया रहनुमाओं ने पेश किया, वो मीडिया को शर्मसार करने वाला है. दिन के उजाले में बड़े-बड़े खुलासे करने वाली मीडिया और पत्रकार रात के अँधेरे में क्या गुल खिला रहे हैं इस पर सदा से पर्दा ही रहा है, क्योंकि इस दलालों कि इस मीडिया की फितरत रही है अपनी गन्दगी को छुपाना. गोरखपुर मीडिया तंत्र के गुप्‍त सूत्रों से सूचना मिली कि सात मार्च की रात गोरखपुर प्रेस क्लब में होली मिलन समारोह कम और मयखाना ज्यादा नजर आ रहा था. तीसरे दर्जे की लेडीज डांसर (जिन्हें गांवों में रंडी का नाच भी कहते हैं) और ऊपर से अगर दारू गंगाजल की तरह बह रहा हो, तो नज़ारा क्या होगा इसका आकलन आप खुद ही कर सकते हैं. सूत्रों की माने तो रात दो बजे तक नर्तकियों के साथ प्रेस क्लब के दो दर्ज़न से ज्यादा पत्रकार दारू के नशे झूमते और नाचते नजाए आये. 

क्या मालिक, क्या नौकर, क्या बड़े पदाधिकारी, क्या छोटे पदाधिकारी, जब दारु का रंग सर चढ़ा तो लोकतंत्र का चौथा खम्भा बिना डगमगाए कैसे रह पाता? लोगों की माने जैसे-जैसे रात चढ़ती गयी चौथा खम्भा लुढ़कता गया. यहाँ सवाल दारू पीने का नहीं, सवाल इस बात का है कि लोकतंत्र के जिस चौथे खम्भे के ऊपर जन जागरण का दारोमदार है अगर वो खुद ही इस तरह की घटिया करतूतों में लिप्त होगा, तो भला मीडिया की पारदर्शिता और कार्य प्रणाली कैसे नहीं प्रभावित होगी. कलम की धौंस, स्कैंडल स्ट्रिंग आदि के द्वारा दूसरों पर छीटाकंशी करने वाली मीडिया अपने कुकर्मों पर चुप्पी क्यों साध लेती है? ऐसे पत्रकारों को पहचान कर उनके संस्थाओं द्वारा तुरंत उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए. और हाँ अगर कोई मित्र यह दलील देता है कि जो भी हुआ उसमें कुछ भी गलत नहीं हुआ तो फिर मेरी एक अनुरोध स्वीकार करे और अपने कलम से इस महान कार्य को अपने गोरखपुर के अखबार में सम्मान जगह दें. दारू कभी भी किसी सम्मान पूर्ण कार्य का मानक नहीं हो सकती.
शिवानन्द द्विवेदी "सहर"
Sabhar- News.bhadas4media.com

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