Feature

Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

आज के भ्रष्टाचार के लिए बोफोर्स के भ्रष्टाचारी भी ज़िम्मेदार

अभिरंजन कुमार-




25 साल पहले बोफोर्स दलाली से जुड़ी ख़बर जहां से पैदा हुई थी, वहीं से आज एक बार फिर महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन हुए हैं। स्वीडन के तब के पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रोम ने 1987 में भारतीय पत्रकार चित्रा सुब्रह्मण्यम को इस दलाली से जुड़े तथ्यों की जानकारी दी थी।

आज 25 साल बाद उन्हीं की ज़ुबानी अगर कुछ नए तथ्य सामने आ रहे हैं, तो निश्चित रूप से इन तथ्यों की अपनी विश्वसनीयता है। इसके मुताबिक राजीव गांधी के खिलाफ इस मामले में घूस लेने के सबूत तो नहीं हैं, लेकिन उन्होंने क्वात्रोकी को बचाने की कोशिशों की अनदेखी की।

लिंडस्ट्रोम ने साफ कहा है कि इस बात के पुख्ता सबूत थे कि क्वात्रोकी ने रिश्वत ली थी, लेकिन भारत सरकार कहती रही कि बोफोर्स घोटाले से उसका कोई संबंध नहीं है और स्वीडन तथा स्विट्ज़रलैंड में किसी को भी क्वात्रोकी से पूछताछ करने की इजाजत नहीं थी।

लिंडस्ट्रोम ने ये रहस्य भी खोला है कि भारतीय जांच अधिकारी बोफोर्स सौदे की जांच करने वाले स्वीडन के अधिकारी से कभी मिले तक नहीं। यही नहीं, बोफोर्स के तत्कालीन कार्यकारी निदेशक मार्टिन आर्डबो ने भी अपने नोट में लिखा कि आर यानी राजीव से निकटता के कारण क्यू यानी क्वात्रोकी की पहचान को उजागर नहीं किया जा सकता।

लिंडस्ट्रोम की मानें तो न सिर्फ़ क्वात्रोकी को बचाया गया, बल्कि अमिताभ बच्चन को भी अनुचित तरीके से इसमें घसीटा गया। मज़ेदार बात ये है कि इतने बड़े खुलासे के बावजूद देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ये कहने का हौसला रखते हैं कि राजीव गांधी पर आरोप लगाने वालों को अब माफी मांगनी चाहिए।

खुर्शीद साहब ये भूल गए कि अगर लिंडस्ट्रोम ने राजीव गांधी को घूस लेने के आरोप से बरी किया है, तो उन पर, उनकी सरकार पर और बाद की तमाम सरकारों पर सारे सबूतों के रहते क्वात्रोकी को बचाने का इल्जाम भी लगाया है।

यह दलील सिर्फ़ इसी मुल्क में दी जा सकती है कि भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देना या उन्हें बचाना भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता। ठीक उसी तरह जैसे मौजूदा यूपीए सरकार को भ्रष्टाचारियों की सरकार बताने वाले लोग भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ईमानदारी की प्रतिमूर्ति बताते नहीं थकते।

क्या ख़ुद घूस नहीं लेना ही ईमानदारी है? भ्रष्टाचार के मामलों से आंखें फेरे रहना, भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देना और उन्हें बचाने की मंशा रखना क्या बेईमानी की श्रेणी में नहीं आता?

बहरहाल, बोफोर्स मामले को सीबीआई ने इस तथ्य के बावजूद बंद करा दिया कि देश की एक आयकर अदालत ने भी कहा था कि बिन चड्ढा और क्वात्रोकी ने 41 करोड़ रुपये खाए और उन्हें इनकम टैक्स भरना चाहिए था।

आपको बता दें कि 1986 में एक हज़ार 437 करोड़ रुपये में बोफोर्स कंपनी से 410 तोपों की खरीद हुई थी। इसमें 64 करोड़ रुपये की दलाली की जांच के लिए 250 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए, लेकिन लिंडस्ट्रोम के खुलासे से साफ है कि ये पैसे अपराधियों को बचाने के लिए खर्च किए गए, न कि उन्हें पकड़ने के लिए।

यह एक दुर्भाग्यपूर्ण जानकारी है, क्योंकि अगर बोफोर्स मामले में दोषियों को सज़ा हुई होती, तो देश में भ्रष्टाचार शायद इस हद तक सिर नहीं उठाता। आज जिस तरह आए दिन हज़ारों-लाखों करोड़ के घपलों के खुलासे होते रहते हैं, उसका गुनाह उनलोगों के सिर पर भी जाएगा, जिन्होंने बोफोर्स मामले में इंसाफ़ का रास्ता रोका।



अभिरंजन कुमार,लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आर्यन टीवी में कार्यकारी संपादक हैं।


(आभार:हस्तक्षेप.कॉम)

No comments:

Post a Comment

Famous Post