नागपुरी गद्य के सौ साल
PUSHKAR MAHTO
PUSHKAR MAHTO
2008 में नागपुरी गद्य साहित्य लेखन के सौ साल पूरे हुए। सौ साल की इस साहित्यिक यात्रा में नागपुरी गद्य का विकास तेजी से हुआ और गद्य की विविध् विधओं में प्रभावशाली रचनाएँ सामने आयी। विशेषकर कथा, उपन्यास, आलोचना, नाटक, संस्मरण, यात्रा वृतांत और व्यंग्य लेखन के क्षेत्रा में लेखकों की तीन पीढ़ियों ने अभूतपूर्ण कार्य किया। इसी के साथ पत्रा-पत्रिकाओं की शुरूआत हुई तथा राँची में आकाशवाणी एवं दूरदर्शन केन्द्र की स्थापना होने से नागपुरी गद्य लेखन को गति भी मिली और वह सृजनात्मक, उत्कर्ष तक पहुँचा। नागपुरी गद्य साहित्य के सौ साल के विकास क्रम में सैकड़ों रचनाकार सामने आये। गद्य की विविध् विधओं में विपुल साहित्य प्रकाशित हुआ। दो दर्जन से भी अध्कि पत्रा-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। नागपुरी भाषा-साहित्य को गति और वैचारिक दिशा प्रदान करने के लिए झारखंड ही नहीं भारत के अन्य राज्यों में भी साहित्यिक-संगठनों की स्थापना की गयी। झारखंड के सांस्कृतिक आन्दोलन के पफलस्वरूप 1980-82 में राँची विश्व विद्यालय राँची में देश का पहला जनजातीय एवं क्षेत्राीय भाषा विभाग शुरू हुआ।
पुरानी पत्रा-पत्रिकाएँ, शिलालेख, चिट्टòी-पतरी में पुराना गीत गाता मन में नागपुरी गद्य का नमूना मिलता है। पुराने जमाने का नागपुरी गद्य नहीं मिलता, क्योंकि दूसरे किसी भाषा की साहित्य जैसा नागपुरी का भी ज्यादा हिस्सा पद साहित्य से भरा पड़ा है। गद्य साहित्य में उपन्यास, कहानी निबंध्, संस्मरण, आत्मकथा, रेखाचित्रा, शब्द विचार, भाव चित्रा, आलोचना, समीक्षा, समालोचना, लेख, नाटक, एकांकी, रिपोर्ताज इत्यादि लिखे जाते हैं। नागपुरी गद्य साहित्य की शुरूआत मध्यकाल की अंत-अंत मंे शुरू हुआ। जब ईसाई लोग यहाँ आये। वही लोग बाइबल का प्रकाशन नागपुरी में करवाएँ और र्ध्म प्रचार के लिए सुसमाचार, जो कि गद्य में था, का प्रकाशन कर नागपुरी गद्य लिखने की परम्परा का शुरूआत किया। 1850-60 के बाद मोटा-मोटी गद्य लिखने की शुरूआत हो चुकी थी और 1950 तक यह विस्तृत रूप ले लिया। पहले-पहल ईसाई मिशनरी लोग नागपुरी लिखने के लिये कैथी और रोमन अपनाएँ। बाद में देवनागरी का प्रयोग शुरू किया।
रेव. पी. इग्नेस ने सन् 1907, 1908, 1909 एवं 1929 में क्रमशः प्रभु यीशु मसीह के सुसमाचार मति, मारकुस, जोहन आउर लुकस के सुसमाचारों को नागपुरी गद्य में प्रकाशित किये। 1915 में जर्मन मिशन ‘विवाह का नियम’ नामक पुस्तक का प्रकाशन नागपुरी गद्य में कराया। रेव. कोनाराड बुकाउट ने सदानी पफोक लाकर स्टोरिज लिखे जिसमें नौ कहानियाँ हैं। 1929 में रोमन मिशन ने नागपुरिया कहानी नागपुरी गद्य में छापी। इसमें भी नौ लोककथाओं को संग्रहित किया गया था। 1931 में रेव. हेनरी फ्रलोर लैंग्वेज हैण्ड बुक में इंग्लिश-सदानी और अंग्रेजी बातचीत को रोमन में लिखा। पादरी और अंग्रेज अफ्रसरों को नागपुरी-सदानी सीखाने हेतु। इसके बाद रेव. अल्Úेड पी. बून 4 – सुसमाचारों और 5 – प्रभु यीशु मसीह 6 – साल भर के प्रत्येक रविवार के चुने हुये सुसमाचार 7 – प्रेरकों के कागज-किताब नागपुरी गद्य में लिखें। ये सारी किताबों का प्रकाशन उन्होंने सन् 1933 से 1941 के बीच कराया।
सन् 1938 में शुरू हुई झारखंड हिन्दी मासिक पत्रिका ;संपादक – ईश्वरी प्रसाद सिंह, प्रकाशक – साहित्य आश्रम, गुमलाद्ध के किसी एक अंक में द्वारका प्रसाद द्वारा लिखित हिन्दी लेख में पहली बार नागपुरी का मौलिक गद्य का थौड़ा सा हिस्सा छपा था। इसके बाद सन् 1940 में रोमन लिपि में जयपाल सिंह मुंडा द्वारा प्रकाशित आदिवासी सकम में नागपुरी गद्य नियमित रूप से छपते रहे। लेकिन 1941 में जूलियस तिग्गा की लिखा और छपवाया ‘छोटानागपुर केर पुत्राी’ ;निबंध् साहित्यद्ध शायद नागपुरी की पहली मौलिक गद्य की स्वतंत्रा किताब है। इसके बाद ध्नीराम बख्शी द्वारा लिखित और 1947 में छपी ‘जीतिया कहनी’ दूसरी स्वतंत्रा किताब थी। पफरवरी 1947 में ही पहली नागपुरी साप्ताहिक पत्रिका ‘आदिवासी’ ;संपादक – राधकृष्ण, प्रकाशक – बिहार सरकारद्ध और दिसंबर में इग्नेस कुजूर द्वारा निकाला गया साप्ताहिक ‘अबुआ झारखंड’ में नियमित रूप से नागपुरी गद्य का प्रकाशन किया गया। लेकिन 1950 के बाद नागपुरी साहित्य में तेजी आया और अगले तीस-चालीस वर्षों में तो यह एकदम से अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया।
इस तरह हम देखते हैं कि 2008 के अन्त-अन्त तक नागपुरी गद्य साहित्य में एक सुव्यवस्थित आकार एवं विस्तार ले लिया है। वर्त्तमान में अनेक लेखक अपनी उत्कृष्ट लेखन से विभिन्न विधओं में नागपुरी साहित्य को समृ( कर रहे हैं। आकाशवाणी-दूरदर्शन औ अन्य निजी चैनलों पर नागपुरी में समाचार परिचर्चा एवं अन्य कार्यक्रमों का नियमित प्रसारण हो रहा है। सितम्बर 2006 से नागपुरी में एक लोकप्रिय मासिक पत्रिका जोहार सहिया, जून 2007 से एक पाक्षिक समाचार पत्रा जोहार दिसुम खबर तथा जून 2008 से एक त्रौमासिक पत्रिका गोतिया नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है। अनेक प्रकाशन संस्थान एवं नागपुरी संस्थान, पिठौरिया, राँची विश्वविद्यालय, राँची एवं झारखंड के अन्य दूसरे विश्वविद्यालय के नागपुरी भाषा विभागों तथा नागपुरी प्रचारिणी सभा जैसी महत्वपूर्ण संस्थान नागपुरी भाषा को उतरोत्तर विकास के लिए उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सौ वर्षों के नागपुरी गद्य साहित्य का इतिहास अत्यन्त विकसित और समृ( रहा है। लेकिन अभी तक नागपुरी गद्य साहित्य के सौ वर्षों के विकास पर कोई अध्ययन, शोध् अथवा मूल्यांकन नहीं हो पाया है, जिससे नागपुरी गद्य साहित्य के विकास एवं रचना की सृजनात्मक तथा भाषाई चुनौतियों, समस्याओं और संभावनाओं पर भाषा विज्ञान एवं साहित्य की दृष्टि से सम्यक विचार किया जा सके|
पुरानी पत्रा-पत्रिकाएँ, शिलालेख, चिट्टòी-पतरी में पुराना गीत गाता मन में नागपुरी गद्य का नमूना मिलता है। पुराने जमाने का नागपुरी गद्य नहीं मिलता, क्योंकि दूसरे किसी भाषा की साहित्य जैसा नागपुरी का भी ज्यादा हिस्सा पद साहित्य से भरा पड़ा है। गद्य साहित्य में उपन्यास, कहानी निबंध्, संस्मरण, आत्मकथा, रेखाचित्रा, शब्द विचार, भाव चित्रा, आलोचना, समीक्षा, समालोचना, लेख, नाटक, एकांकी, रिपोर्ताज इत्यादि लिखे जाते हैं। नागपुरी गद्य साहित्य की शुरूआत मध्यकाल की अंत-अंत मंे शुरू हुआ। जब ईसाई लोग यहाँ आये। वही लोग बाइबल का प्रकाशन नागपुरी में करवाएँ और र्ध्म प्रचार के लिए सुसमाचार, जो कि गद्य में था, का प्रकाशन कर नागपुरी गद्य लिखने की परम्परा का शुरूआत किया। 1850-60 के बाद मोटा-मोटी गद्य लिखने की शुरूआत हो चुकी थी और 1950 तक यह विस्तृत रूप ले लिया। पहले-पहल ईसाई मिशनरी लोग नागपुरी लिखने के लिये कैथी और रोमन अपनाएँ। बाद में देवनागरी का प्रयोग शुरू किया।
रेव. पी. इग्नेस ने सन् 1907, 1908, 1909 एवं 1929 में क्रमशः प्रभु यीशु मसीह के सुसमाचार मति, मारकुस, जोहन आउर लुकस के सुसमाचारों को नागपुरी गद्य में प्रकाशित किये। 1915 में जर्मन मिशन ‘विवाह का नियम’ नामक पुस्तक का प्रकाशन नागपुरी गद्य में कराया। रेव. कोनाराड बुकाउट ने सदानी पफोक लाकर स्टोरिज लिखे जिसमें नौ कहानियाँ हैं। 1929 में रोमन मिशन ने नागपुरिया कहानी नागपुरी गद्य में छापी। इसमें भी नौ लोककथाओं को संग्रहित किया गया था। 1931 में रेव. हेनरी फ्रलोर लैंग्वेज हैण्ड बुक में इंग्लिश-सदानी और अंग्रेजी बातचीत को रोमन में लिखा। पादरी और अंग्रेज अफ्रसरों को नागपुरी-सदानी सीखाने हेतु। इसके बाद रेव. अल्Úेड पी. बून 4 – सुसमाचारों और 5 – प्रभु यीशु मसीह 6 – साल भर के प्रत्येक रविवार के चुने हुये सुसमाचार 7 – प्रेरकों के कागज-किताब नागपुरी गद्य में लिखें। ये सारी किताबों का प्रकाशन उन्होंने सन् 1933 से 1941 के बीच कराया।
सन् 1938 में शुरू हुई झारखंड हिन्दी मासिक पत्रिका ;संपादक – ईश्वरी प्रसाद सिंह, प्रकाशक – साहित्य आश्रम, गुमलाद्ध के किसी एक अंक में द्वारका प्रसाद द्वारा लिखित हिन्दी लेख में पहली बार नागपुरी का मौलिक गद्य का थौड़ा सा हिस्सा छपा था। इसके बाद सन् 1940 में रोमन लिपि में जयपाल सिंह मुंडा द्वारा प्रकाशित आदिवासी सकम में नागपुरी गद्य नियमित रूप से छपते रहे। लेकिन 1941 में जूलियस तिग्गा की लिखा और छपवाया ‘छोटानागपुर केर पुत्राी’ ;निबंध् साहित्यद्ध शायद नागपुरी की पहली मौलिक गद्य की स्वतंत्रा किताब है। इसके बाद ध्नीराम बख्शी द्वारा लिखित और 1947 में छपी ‘जीतिया कहनी’ दूसरी स्वतंत्रा किताब थी। पफरवरी 1947 में ही पहली नागपुरी साप्ताहिक पत्रिका ‘आदिवासी’ ;संपादक – राधकृष्ण, प्रकाशक – बिहार सरकारद्ध और दिसंबर में इग्नेस कुजूर द्वारा निकाला गया साप्ताहिक ‘अबुआ झारखंड’ में नियमित रूप से नागपुरी गद्य का प्रकाशन किया गया। लेकिन 1950 के बाद नागपुरी साहित्य में तेजी आया और अगले तीस-चालीस वर्षों में तो यह एकदम से अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया।
इस तरह हम देखते हैं कि 2008 के अन्त-अन्त तक नागपुरी गद्य साहित्य में एक सुव्यवस्थित आकार एवं विस्तार ले लिया है। वर्त्तमान में अनेक लेखक अपनी उत्कृष्ट लेखन से विभिन्न विधओं में नागपुरी साहित्य को समृ( कर रहे हैं। आकाशवाणी-दूरदर्शन औ अन्य निजी चैनलों पर नागपुरी में समाचार परिचर्चा एवं अन्य कार्यक्रमों का नियमित प्रसारण हो रहा है। सितम्बर 2006 से नागपुरी में एक लोकप्रिय मासिक पत्रिका जोहार सहिया, जून 2007 से एक पाक्षिक समाचार पत्रा जोहार दिसुम खबर तथा जून 2008 से एक त्रौमासिक पत्रिका गोतिया नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है। अनेक प्रकाशन संस्थान एवं नागपुरी संस्थान, पिठौरिया, राँची विश्वविद्यालय, राँची एवं झारखंड के अन्य दूसरे विश्वविद्यालय के नागपुरी भाषा विभागों तथा नागपुरी प्रचारिणी सभा जैसी महत्वपूर्ण संस्थान नागपुरी भाषा को उतरोत्तर विकास के लिए उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सौ वर्षों के नागपुरी गद्य साहित्य का इतिहास अत्यन्त विकसित और समृ( रहा है। लेकिन अभी तक नागपुरी गद्य साहित्य के सौ वर्षों के विकास पर कोई अध्ययन, शोध् अथवा मूल्यांकन नहीं हो पाया है, जिससे नागपुरी गद्य साहित्य के विकास एवं रचना की सृजनात्मक तथा भाषाई चुनौतियों, समस्याओं और संभावनाओं पर भाषा विज्ञान एवं साहित्य की दृष्टि से सम्यक विचार किया जा सके|
Sabhar:- Mohalllive.com
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