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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

प्रकाश झा और आरक्षण

भोपाल में फिर एक बार गहमागहमी है। प्रकाश झा नयी फिल्म के लिए तैयार होकर आ गये हैं। जगहें देख ली गयी हैं। कला निर्देशक जयन्त देशमुख की परिकल्पना में आरक्षण फिल्म के लिए तैयार किए जाने वाले स्थानों का ब्ल्यू प्रिंट तैयार है, उनका काम शुरू भी हो गया है। निर्देशक के लिए फिल्म बनाना आसान नहीं होता। कैमरे के साथ केवल कलाकारों को स्क्रिप्ट के अनुसार निर्देशित करना और अपने मन की सन्तुष्टि के दृश्य प्राप्त करना ही केवल फिल्म बनाना नहीं है और न ही फिल्म बनाना यह है कि शूटिंग खत्म करके पोस्ट प्रोडक्शन के काम में अपनी रचनात्मकता को एकाग्र करे और फिल्म बनाकर दर्शकों के सुपुर्द कर दे और फैसला देखे। काम इन सबके अलावा दूसरे बहुत जरूरी हैं जिनमें बहुत सारी अधिकृत से ज्यादा अनपेक्षित और अनाधिकृत अपेक्षाओं का सामना करना एक मुख्य मुद्दा रहता है। काम निर्बाध रूप से होता रहे और व्यवधानकर्ता चैन से बैठे रहें यह बड़ी चुनौती है। रूठे को मनाना बड़ा सरदर्द है और दिलचस्प यह है कि बनती हुई फिल्म का बड़ा कलाकार नहीं रूठता और न ही तकनीशियन और सहायक, उन सबमें यारबाजी से लेकर अबे-तबे और इससे ज्यादा आगे जाकर भी जो व्यवहार किया जाता है, वह प्यार के व्यवहार का हिस्सा होता है। सभी इसके अभ्यस्त होते हैं। मुसीबत वहाँ होती है जहाँ सो-काल्ड संवेदनशील लोग मजबूरी में जोड़े जाते हैं। उनकी सद्इच्छा बनी रहे, इसके लिए अतिरिक्त सावधानियाँ जरूरी होती हैं। प्रकाश झा ने राजनीति बनाते हुए इसके झंझावात बहुत झेले। जो उनके बहुत नजदीक थे, उन्होंने कभी व्यवधान खड़े नहीं किए मगर यहाँ शूटिंग करते बहुत कम दिन ही ऐसे रहे होंगे जब उनको सिरदर्द न हुआ हो। लेकिन प्रकाश झा की खासियत गरल को बखूबी गले के नीचे रख लेने की है। एक बार फिर वे उसी धीरज और धैर्य के साथ मध्यप्रदेश की राजधानी में फिल्म बनाने आ गये हैं। वे कुछ धारावाहिक भी बनाएँगे। इस बात को मानना होगा कि भोपाल को सिनेमा के नक्शे में एक अच्छी जगह देने का काम उन्होंने किया। भोपाल में रमना और लगातार काम करना आने वाले समय में इस नाते उनके निमित्त जाना जायेगा कि इस शहर से बड़ी फिल्में, बड़े स्तर के धारावाहिक बनकर देश और चैनलों की शोभा बनेंगे। सहायकों, तकनीशियनों और अपेक्षानुसार कलाकारों को भी इसमें रोजगार से लेकर परिष्कार तक के अवसर होंगे। आरक्षण इसलिए भी बड़ी हाई-लाइट है क्योंकि वह महानायक की फिल्म है। प्रकाश झा अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट की गोपनीयता भी बखूबी रखते हैं। हालाँकि आरक्षण आज कोई बड़ा आन्दोलन या ऊष्मा का विषय नहीं रह गया है, पर हमारे लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रकाश झा किस फूंकनी से राख में दबी-छिपी चिंगारी को हवा देते हैं?

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