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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

चंबल के बीहड़ों में गूंजने दो बेटी की किलकारी


PoorBest 
मैं मध्यप्रदेश के ऐसे इलाके से ताल्लुकात रखता हूं, जो कई बातों के लिए सुविख्यात है और कुख्यात भी है। ग्वालियर का किला और यहां जन्मा ध्रुपद गायन ग्वालियर-चंबल संभाग को विश्वस्तरीय पहचान दिलाता है। वहीं मुरैना का 'पीला सोना' यानी सरसों से भी देशभर में इस बेल्ट की प्रसिद्धी है। बटेश्वर के मंदिर हों या कर्ण की जन्मस्थली कुतवार दोनों पुरातत्व और ऐतिहासिक महत्व के स्थल हैं। मुरैना पीले सोने के साथ ही राष्ट्रीय पक्षी मोरों की बहुलता के लिए भी जाना जाता है। ग्वालियर-चंबल इलाके की पहचान उसकी ब्रज, खड़ी और ठेठ लट्ठमार बोली के कारण भी है।
बुराई भी इधर कम नहीं। चंबल के बीहड़ एक समय खतरनाक से खतरनाक डकैतों की शरणस्थली बने रहे। वह तो शुक्र है लोकनायक जयप्रकाश नारायण और अन्य गांधीवादियों का जिनके प्रयासों से बहुत से कुख्यात डकैतों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। हालांकि उसके बाद भी अभी तक कुछ छोटे तो कुछ बड़े डकैत सिर उठाते रहे हैं। आकंडे बताते हैं कि इस इलाके में सबसे अधिक लाइसेंसी हथियार हैं। अवैध की तो खैर गिनती ही नहीं। भिण्ड के कई गांवों में अवैध हथियार बनाने के कारखाने हैं। यहां के लोग गुस्से के भी बहुत तेज हैं। कहते हैं कि धरती को क्षत्रिय विहीन कर इधर से परशुराम जी गुजर रहे थे और उन्होंने रक्तरंजित फरसा चंबल नदी में धोया था। खैर, इधर मिलावटी मावे के लिए भी यह इलाका देशभर में हाल ही में बदनाम होना शुरू हो गया है।
इन सबसे अधिक बदनामी का कलंक ग्वालियर-चंबल संभाग के माथे पर है। यह बेहद शर्मनाक भी है। दरअसल यह संभाग कन्या शिशु हत्या के लिए कुख्यात रहा है। इस क्षेत्र में कन्या जनम पर उसे मारने के जो तरीके प्रचलित रहे वे बेहद ही घृणित हैं। कभी तो विश्वास ही नहीं होता कि कोई ऐसा भी कर सकता है क्या? कन्या पैदा होने पर ग्वालियर-चंबल संभाग के कुछ इलाकों में तंबाकू घिसकर उसके मुंह में रख दी जाती थी। इस पर भी वह बच जाए तो खाट के पांव के नीचे उसे दबा दिया जाता था। इसके अलावा उसके पैर या सिर पकड़कर जोर से झटककर मारने के बेहद घृणित तरीके प्रचलन में थे। इनसे संबंधित कई किस्से इधर प्रचलित हैं। जैसे ही जननी ने कन्या को जन्मा तो बाहर बैठा परिवार का पुरुष सदस्य जोर से दाई से पूछता- काए का भयो? मोड़ा कै मोड़ी? जैसे ही दाई बोलती कि लड़की पैदा हुई है तो उक्त पुरुष कहता- ला देखें तो बाकी नार (गर्दन) पक्की है कै कच्ची? पुरुष कन्या शिशु का सिर दोनों हाथों से थामता और जोर से झटका देता। इतने में बेचारी का दम निकल जाता। दुनिया में आते ही उसे दुनिया से रुखसत करना पड़ता। मां प्रसव कक्ष में प्रसव पीड़ा से अधिक अपने शरीर के अंश की इस दर्दनाक मौत से अधिक तड़पती। प्रसव से पूर्व वह लगातार भगवान से यही प्रार्थना करती कि ये प्रभु या तो लड़का भेजना नहीं तो मेरी ही जान ले लेना।
यह सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है। फर्क कन्या हत्या के तरीकों में आया है। अब तो क्षणभर के लिए भी उसे यह दुनिया नहीं देखने दी जाती है। उसके लिए सबसे सुरक्षित जगह मां के पेट में ही उसकी हत्या कर दी जाती है। २०११ के जनगणना के आंकड़े भी यही बयां करते हैं कि २००१ की तुलना में लिंगानुपात में अंतर बढ़ा है। २०११ की जनगणना के मुताबिक मुरैना ही मध्य प्रदेश में सबसे कम लिंगानुपात वाला जिला है। यहां छह साल तक की उम्र के बच्चों में १००० लड़कों पर महज ८२५ लड़कियां हैं। जनगणना २००१ के मुताबिक यहां इस आयु वर्ग का लिंगानुपात ८३७ था। यानी एक दशक में यहां लिंगानुपात में १२ अंकों की गिरावट दर्ज हुई। जो निश्चिततौर पर चिंतनीय है। वैसे प्रदेश के हाल भी खराब ही हैं। जनगणना २०११ के आकंड़ों के मुताबिक प्रदेश में शून्य से छह वर्ष तक के आयु समूह का लिंगानुपात ९१२ है। यह २००१ की जनगणना के मुताबिक ९३२ था। यानी इस एक दशक में प्रदेश में भी २० अंक की गिरावट हुई।
इस बात की चर्चा इसलिए कर रहा हूं क्योंकि हाल ही में सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने बेटी बचाओ अभियान शुरू किया है। वहीं नवदुर्गा महोत्सव के दौरान ढूंढऩे से भी नौ-नौ कन्याएं पूजने के लिए नहीं मिलीं। वैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि लाड़ली लक्ष्मी योजना शुरू करने से ही बेटी हितैषी बन गई थी। बेटी बचाओ अभियान से उसमें बढ़ोतरी हुई है। अपनी इन लोक-लुभावन योजनाओं से सीएम शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रीय मंच पर भी खरी-खरी तारीफ मिली है। भारतीय जनता पार्टी में भी उनका कद ऊंचा हुआ है। वे भाजपा के टॉप सीएम की सूची में शामिल हैं। यूं तो अभियान के माध्यम से प्रदेश भर में बेटियों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाने के प्रयास किए ही जाएंगे। फिर भी मेरी निजी राय है कि इस अभियान के एजेंडे में ग्वालियर-चंबल संभाग प्रमुखता से होना चाहिए। यहां अब भी लोगों की सोच में बदलाव लाने के लिए काफी प्रयास किए जाने हैं। अंत में आमजन से भी यही अपील है कि कोख में ही बेटी की कब्र बनाने की जगह उसका इस खूबसूरत जहां में भव्य स्वागत हो। उसके जनम पर विलाप न हों। बधाइयां गाईं जाएं। खील-बताशे बांटे। ढोल-ढमाके बजने दें।
लेखक लोकेन्‍द्र सिंह राजपूत पत्रिका, भोपाल में सब एडिटर हैं. यह लेख उनके ब्‍लॉग अपना पंचू से साभार लेकर प्रकाशित किया गया है.
Sabhar:- Bhadas4media.com

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