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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

सरकार हमारी दिक्कतें क्यों नहीं समझतीः एल वी कृष्णन- सीईओ, टैम मीडिया रिसर्च

मुंबई में हुए एक्सचेंज4मीडिया कॉनक्लेव में रेटिंग सिस्टम को लेकर होने वाली बहस पर अपनी राय रख रहे हैं टैम मीडिया रिसर्च के सीईओ एल वी कृष्णन, स्टार सीजे इंडिया के सीईओ पारितोश जोशी और मैडिसन वर्ड के सीईओ सैम बलसारा। चर्चा की अध्यक्षता कर रहे है एक्सचेंज4मीडिया समूह के ग्रुप चीफ एडिटर प्रद्युमन माहेश्वरी।
चर्चा की शुरुआत में रेटिंग सिस्टम को लेकर खड़े होने वाले सवाल पर जोर देते हुए प्रद्युमन माहेश्वरी ने पारितोश जोशी से पूछा कि क्या आपको नहीं लगता कि ब्रॉडकास्टर रेटिंग सिस्टम का मिसयूज कर रहे हैं। जैसे अगर कोई चैनल मुंबई में अच्छा कर रहा है, तो वह उसका लाभ दूसरी जगहों पर प्रचार करके लेना चाहते हैं।
इस पर पारितोश का कहना था कि आज का दर्शक बेवकूफ नहीं है और टीआरपी आम बात हो गई है इसलिए इसके माध्यम से मिसयूज नहीं किया जा सकता और वास्तव में टीआरपी से दर्शकों का कोई लेना-देना नहीं है। टीआरपी एडवरटाइजर्स के लिए ऐड देने का मापदंड है। यह हर ब्रॉडकास्टर करता है और इसमें कोई गलत बात नहीं है, क्योंकि हम कम्युनिकेशन बिजनेस में हैं और हम कहां कितना पहुंच रहे हैं यह बताना गलत नहीं है।
प्रद्युमन के अगले सवाल पर कि सरकार इसे एथिकल रूप में ले रही है और उनका आरोप है कि टीआरपी के चलते कंटेंट प्रभावित हो रहा है और टीआरी खींचने वाले प्रोग्राम ही बनाए जा रहे हैं आशुतोष ने बताया कि ऐसी बातें वो कर रहे हैं वास्तव में जो लोग कंटेट देख ही नहीं रहे हैं और वो वही बातें करते हैं जो लोगों से सुन रहे हैं। कनज्यूमर के हाथ में च्वाइस है और कनज्यूमर को वह पंसद आ रहा है। ब्रॉडकास्टर्स किसी पर कोई चीज थोप तो रहे नहीं है। दर्शकों को जो पसंद आ रहा है वह देख रहे हैं।
एक डिप्लोमैटिक सवाल में प्रद्युमन माहेश्वरी से पूछा कि क्या आप रेटिंग की ओर देखते हैं तो आशुतोष का कहना था कि रेटिंग की ओर देखना हमारी मजबूरी है क्योंकि एडवरटाइजर उसी ओर देखते हैं। दूसरी बात आप टेलीविजन बिजनेस में है तो आप चाहेंगे ही लोग आपको देखें। अगर मैं यहां बैठकर कुछ बोल रहा हूं जो जाहिर सी बात है कि मैं चाहूंगा कि लोग मुझे सुनें। आज सारा खेल नंबर्स का हो गया है इसीलिए रेटिंग में विश्वास करना ही होगा।
इसी सवाल के जवाब में मैडिसन वर्ड के सैम बलसारा ने कहा कि बहस यह नहीं कि लोग क्या देख रहे हैं बहस यह है कि लोग जो देख रहे हैं उसका सही आकलन हो। सही आकलन ही यह निश्चित करता है कि एडवरटाइजर कहां जाए। मीडिया एजेंसीज और मीडिया बायर्स के सामने सही आंकलन होना जरूरी है, इसलिए इस बात पर बहस होनी चाहिए कि सही आकलन के क्या उपाय किए जाएं।
प्रद्युमन माहेश्वरी ने सैम के इस जावाब पर सवाल किया कि क्या आपको आज का रेटिंग सिस्टम सही लगता है तो सैम बलसारा ने बताया कि अभी जितनी सुविधाओं के साथ हम हैं उसमें इस सिस्टम के साथ कोई दिक्कत नहीं है। और सरकार साथ ही लोगों को समझना चाहिए कि यह सैंपल सर्वे है, सेंसस नहीं। इस सैंपलिंग को हम बेहतर टेक्नोलॉजी से बेहतर बना सकते हैं, लेकिन सैंपलिंग सिस्टम में थोड़ी-बहुत गलतियां तो होती ही हैं। और हर एक घंटे पर आप सेंसस तो नहीं कर सकते। इस सिस्टम में सुधार कैसे हो इसका हल तो कोई बता नहीं रहा है, जबकि यह बहस पिछले दो सालों से चल रही है।
इसी सवाल का जवाब देते हुए टैम मीडिया रिसर्च के सीईओ एल वी कृष्णन ने कहा कि हम पिछले दो-तीन सालों से यह सुनते आ रहे हैं कि टैम की रेटिंग में कमियां हैं। आखिर इसके मेजरमेंट की जरूरत क्यों पड़ी। जब टेलीविजन का विस्तार होने लगा तो एडवरटाइजर के सामने यह संकट आया कि वह पैसा कहां लगाए। हम एडवरटाइजर के लिए माध्यम बन रहे हैं। मेजरमेंट को लेकर शहरों में कोई समस्या नहीं है। रूरल में है। हमें भी वहां जाने की जरूरत महसूस होती है, लेकिन इसके लिए बड़े फंड की जरूरत है और इस तरफ कोई कदम नहीं बढ़ा रहा है। यह बी-टू-बी बिजनेस है इंडस्ट्री को इसकी जरूरत है इसलिए इंडस्ट्री के लोग इसे इस रूप में स्वीकार भी रहे हैं।
प्रद्युम्न माहेश्वरी ने एल वी कृष्णन की बात को काटते हुए पूछा, लेकिन सरकार तो कहती है कि इंडस्ट्री के लोग या तो कंटेट रेगुलेट करें या फिर रेटिंग सिस्टम बदलें तो एल वी का कहना था कि सवाल यह है कि क्या रेगुलेट हो। अगर साधु बाबा का शो ज्यादा पॉपुलर है तो यह रेगुलेट हो, या फिर दर्शकों को रेगुलेट किया जाए। नॉरमेटिव अच्छा और बुरा क्या है यह दर्शक को भी तो पता है। और अगर सरकार इसे रेगुलेट करना चाहती है और कोई रेगुलेट्री अथॉरिटी बनाना चाहती है तो ऐसी संस्था बने जो बीएससी ( बांबे स्टॉक एक्सचेंज) की तरह ऑटोनॉमस हो। रेटिंग सिस्टम को खत्म नहीं किया जा सकता।
इसी सवाल ते जवाब में सैम बलसारा ने कहा कि इंडस्ट्री एक साल से सरकार को समझाने की कोशिश कर रही है कि हम खुद रेगुलेट कर सकते हैं, लेकिन हमारी जो जरूरतें हैं सरकार को वह भी तो समझना चाहिए।
टैंम खुद क्या कोई गाइड लाइन बना रहा है प्रद्युमन माहेश्वरी के इस सवाल पर एल वी कृष्णन का कहना था कि अभी भी हम एक निश्चित गाइडलाइन पर चल रहे हैं। और अगर सरकार कोई गाइडलाइन तय करती है तो उसका भी स्वागत है। सरकार भी हमारी मदद कर सकती है और सरकार को हमारी दिक्कतों को समझना चाहिए। 2010 में सेंसस हो रहा है अगले 10 सालों तक हम यही डाटा इस्तेमाल करेंगे, तब तक काफी चींजें बदल जाएंगी। इसी तरह हम भी जो डाटा देते हैं वह सैंपलिंग पर होता है इसलिए सरकार का उस पर सवाल खड़ा करना उचित नहीं है।
आखिर में सैम बलसारा ने एक हल सुझाते हुए कहा कि हमारे यहां का टेलीविजन मॉडल पूरी तरह से एडवरटीजमेंट पर डिपेंड है। ज्यादा से ज्यादा पैसा ऐड से आता है। अभी हमारे यहां 80% पैसा ऐड से और 20 % सब्सक्रिप्शन से आता है। ब्रिटेन में इसका उल्टा है, वहां 80 % रेवेन्यू सब्क्रिप्शन से आता है। ऐड पर डिपेंड हो जाने से ही समस्या हल नहीं होगी, इसके अलावा दूसरे उपाय करने होंगे औऱ सरकार इसमें मददगार हो सकती है।
साभार - समाचार ४ मीडिया डाट.कॉम

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