सोनिया सिंह आजतक की पुरानी और बेहतर मानी जानेवाली एंकर है। अपनी सीमित और कम जानकारी के बावजूद अच्छी बुलेटिन कर जाना उनकी खास पहचान है। हम उन्हें पिछले छह-सात सालों से आजतक के पर्दे पर देखते आए हैं और कई
बार चक्के पे चक्का कार्यक्रम में दिखाई जानेवाली गाड़ियों जैसी स्पीड से किन्तु स्पष्ट तरीके से खबरें पढ़ने को लेकर प्रभावित भी हुए। लेकिन आज उन्होंने बुलेटिन के दौरान जो काम किया,अगर किसी दूसरी या नई एंकर ने किया होता तो आजतक उन्हें हिदायत या फिर छुट्टी तक पर जाने की बात कर देता। चैनल शायद ही उसकी इस लिजलिजेपन को बर्दाश्त कर पाता। मामला साहित्यकार और राग दरबारी उपन्यास के लेखक श्रीलाल शुक्ल के निधन पर पढ़ी जानेवाली खबर को लेकर है। आगे बातचीत करने के पहले ये कहना जरुरी होगा कि किसी भी चैनल के मीडियाकर्मी और एंकर के लिए साहित्य के प्रति गहरी समझना उसके बेहतर होने का पैमाना शायद नहीं हो सकता और वो भी तब जबकि खुद न्यूज चैनलों में साहित्य से जुड़ी खबरों का कोई मतलब नहीं रह गया है। साहित्य के लोग बस इस बात पर खुश हो सकते हैं कि चलो कहीं कोई तो खबर आयी। नहीं तो साहित्यकारों को कौन पूछता है। ऐसे में आजतक ने श्रीलाल शुक्ल के निधन पर खबर प्रसारित की इसके लिए शुक्रिया। हां ये जरुर है कि श्रीलाल शुक्ल को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रशासनिक स्तर पर थोड़ी बहुत ही सही चहल कदमी नहीं होती तो श्रीलाल शुक्ल के अंतिम संस्कार होने तक भी शायद ही कोई खबर बनने पाती या फिर अगर उन्हें हाल ही में ज्ञानपीठ न मिला होता तो भी शायद सुध न ली जाती। हो सकता है कि राग दरबारी की वजह से ही दो लाइन की ही सही,खबर चल जाती। खैर, श्रीलाल शुक्ल के निधन की खबर को लेकर आजतक की स्क्रीन पर ग्राफिक्स मौजूद थे। एक तरह श्रीलाल शुक्ल की एक स्टिल और दूसरी तरफ उनसे संबंधित कुछ जानकारियां। इन जानकारियों में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसके आधार पर आप कह सकें कि चैनल ने इस खबर के पीछे कोई अतिरिक्त मेहनत की हो। गूगल सर्च(हिन्दी में श्रीलाल शुक्ल टाइप करने के बाद) से उनके बारे में जो कुछ भी मिला,वो चैनल के लिए पर्याप्त था। इससे कहीं अधिक जानकारी उनकी किताबों की फ्लैप पर हुआ करती हैं। बहरहाल,सोनिया सिंह का काम बस इतना भर का था कि उस ग्राफिक्स को ठीक-ठीक पढ़ जाए और फिर ग्राफिक्स जो थोड़े समय के लिए स्टिल तरीके से स्थिर हैं और समय का गैप बना है,उसमें लिखे के अलावे या तो कुछ बोले या फिर उसे ही आगे -पीछे करके दोहराए। लेकिन हमें लगा कि आतंकवाद से लेकर पूजा-पाठ,खेल-खिलाड़ी,गाड़ी-घोड़े पर धुंआधार बोलनेवाली सोनिया सिंह के प्रति इतनी भी उम्मीद करके कुछ ज्यादा ही गुनाह कर गए। स्क्रीन पर साफ लिखा था- 2009 के लिए मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार। सोनिया सिंह ने पढ़ा- 2009 में मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार। उसके बाद वो ग्राफिक्स स्थिर रहता है। सोनिया सिंह इस बीच लोलिआने लग जाती है। वो इतना भी नहीं कर पाती कि अब तक जो जानकारी उसके पास है,उसे क्रम से दोहरा ही दें। चैनल के पास न तो कोई विजुअल्स थे और न ही स्टिल को जोड़कर ही कुछ बनाने में वो समर्थ नजर नहीं आया। हद तो तब हो गई जब करीब 12 सेकेंड के लिए सोनिया सिंह एकदम से चुप्प हो गई। सोनिया सिह जब चुप्प थी और मुंह से बकार तक नहीं निकल रही थी तो उस समय स्टूडियो के आसपास की आवाज बहुत ही तेज और साफ सुनाई पड़ रही थी जिससे कि खबरों के प्रति न सिर्फ गंभीरता खत्म हो रही थी बल्कि बहुद ही भौंड़ापन लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि इधर पान-बीड़ी की दूकानों पर कोई हील-हुज्जत चल रही हो। कुछ भी नहीं बोला। पहले तो अssssss किया और फिर मुंह से बकार तक नहीं निकली। हम उम्मीद कर रहे थे कि हो सकता है इसके बाद कुछ बोले क्योंकि स्कूल के जमाने में हमने देखा था कि कई बार बच्चे रटकर भाषण देते थे तो अचानक से भूल जाते थे और फिर जैसे ही याद आया,फिर से रौ में शुरु हो जाते थे। लेकिन सोनिया सिंह एक बार चुप हुई तो करीब 12 सेकेंड बाद धमाकेदार तरीके से हमें सुनाई और दिखाई दिया- आजतक,दमदार 10 साल।
वैसे सोनिया सिंह और खुद आजतक के लिए ये कोई बड़ी बात न हो लेकिन हम जैसे दर्शकों के सामने इस बात को लेकर दो-तीन स्तरों पर गंभीरता से सोचने की जरुरत बनती है। पहली बात तो ये कि क्या ये मामला किसी न्यूज एंकर के साहित्यकारों के बारे में जानने और न जाननेभर से हैं? अगर ऐसा है तो फिर एंकर तो देश और दुनिया के कई लेखकों,चित्रकारों,कलाकारों और व्यक्तित्वों के बारे में नहीं जानता तो क्या इसका मतलब ये हो कि वो इसी तरह लोलिआने लग जाए? क्या टेलीविजन के भीतर इस बात की अनिवार्यता नहीं बनती कि चीजों को लेकर एंकरों के पास कम से कम बेसिक समझ और जानकारी तो हो ही। न भी हो तो स्क्रीन पर उतरने के पहले उसे दुरुस्त कर ले। दूसरी बात कि ये मामला एक लेखक से जुड़ा है और चूंकि इनके बीमार रहने की खबर पिछले कई दिनों से अलग-अलग माध्यमों से हम तक आ रही थी तो हमने पकड़ लिया कि सोनिया सिह की खबर पढ़े जाने में क्या खोट थी? लेकिन क्या ये अकेला मामला है जिसमें वो भारी फम्बल और लोलिआने के बीच निकल गई। ऐसा भी तो होता होगा कि जिस धुंआधार तरीके से खबरें पढ़ी जाने के कारण हम प्रभावित होते रहे हैं,उसके बीच बहुत कुछ ऐसा अल्ल-बल्ल बोल जाया करतीं होगी जिसका कि तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं होता होगा। अगर ऐसा है जिसकी कि बहुत अधिक गंजाईश है तो सचमुच ये कितना खतरनाक है। टेलीविजन में आए नए लोगों को अक्सर कोसा जाता है कि उन्हें चीजों के प्रति कोई समझ नहीं है। लेकिन सोनिया सिंह जैसी सालों से टेलीविजन पर बना रहनेवाली एंकर की ये हालत है तो आपको नहीं लगता कि नए लोगों को कोसना,दरअसल उनकी कमियों को अपने उपर पर्दे की तरह इस्तेमाल करने जैसा है? ये वो मौका है,जहां नए लोगों को नसीहतें देने के पहले पुराने और सालों से जमें एंकरों को अपने भीतर के खोखलेपन और भुरभुरी जानकारी को देखने-परखने की जरुरत है?
विनीत कुमार : टेलीविजन के कट्टर दर्शक। एमए हिन्दी साहित्य (हिन्दू कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय)। एफ.एम चैनलों की भाषा पर एम.फिल्। सीएसडीएस-सराय की स्टूडेंट फैलोशिप पर निजी समाचार चैनलों की भाषा पर रिसर्च(2007)। आजतक और जनमत समाचार चैनलों के लिए सालभर तक काम। टेलीविजन संस्कृति,यूथ कल्चर,टीवी सीरियलों में स्त्री छवि पर नया ज्ञानोदय,वसुधा,संचार, दैनिक जागरण में लगातार लेखन। ‘हुंकार’ ब्लॉग के जरिए मीडिया के बनते-बदलते सवालों पर नियमित टिप्पणी। सम्प्रति- मनोरंजन प्रधान चैनलों में भाषा एवं सांस्कृतिक निर्मितियां पर दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएच.डी. सम्पर्क- vineetdu@gmail.com , Blog : Hunkaar.com.
Sabhar:- Mediakhabar.com
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