मैंने अपने जीवन के. 15 बेहतरीन साल प्रभात खबर में रह कर गुजारे हैं. मैंने प्रभात खबर के विकास, इसके निर्माण की प्रक्रिया व बुरे दौर को बड़े नजदीक से देखा है. मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मैं इस संस्थान के निर्माण से जुड़े निर्णयकर्ताओं व नीति-नियंताओं में से एक रहा हूं. प्रभारत खबर का पुनर्जन्म 1989 में हुआ, जब ऊषा मार्टिन प्रबंधन ने इसका दायित्व ग्रहण किया. 1990 के बाद का दशक प्रिंट मीडिया के लिए बहुत कठिन रहा था.
अंबानी, थापर, डालमियां जैसे विशाल पूंजीवाले घराने अखबार जगत में आये और उन्हें मात खाक.र वापस उल्टे पांव लौटना पड़ा,

केके गोयनका
सबसे मुख्य बात यह कि. पूरे देश के. अखबार जगत में प्रभात खबर की एक विशिष्ट पहचान है. यहां तक कि नेशनल प्रेस भी इसे हिंदी मीडिया में सबसे प्रतिष्ठित अखबर मानता है. गुजरे 15 सालों में हमने उतार-चढ़ाव के कई खट्टे-मीठे दौर को देखा है. इस लंबे सफ़र में कई बार ऐसा भी लगा कि प्रभात खबर अब बंद हो जायेगा, लेकिन ईश्वर की कृपा से न सिर्फ हम इससे उबर पाये, बल्कि हमने चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक किया. हम विजयी हुए.
प्रभात खबर की यात्रा चुनौती भरी व अनोखी रही है. अधिग्रहण के समय किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन यह झारखंड का नंबर वन अखबार बन जायेगा और तीन राज्यों (झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल) के सात शहरों से यह प्रकाशित होगा. ऑडिट ब्यूरो सर्कुलेशन (एबीसी, जुलाई-दिसंबर, 2003) के अनुसार झारखंड में प्रभात खबर की प्रसार संख्या करीब दो लाख है. झारखंड में हमारे चार संस्करण हैं. संभवतः प्रभात खबर इकलौता अखबार है, जो एक साथ दो प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय अखबारों हिंदुस्तान व दैनिक जागरण का सामना कर रहा है और उनसे आज भी लगातार अपनी बढ़त बनाये हुए है.
मैं आज भी सात नवंबर, 1989 के दिन को याद करता हूं, जब मैं प्रभात खबर से जुड़ा. कोलकाता में चार्टर्ड एकाउंटेंसी पूरा करने के बाद मैं एक मेडिसिन कंपनी अलबर्ट डेविड लिमिटेड में फाइनेंस ऑफिसर (वित्तीय अधिकारी) के रूप में काम कर रहा था. तभी अचानक मुझे ऊषा मार्टिन में काम कर रहे मेरे एक संबंधी के द्वारा एक प्रस्ताव आया. मुझे बताया गया कि ऊषा मार्टिन ने हाल में रांची के एक अखबार का अधिग्रहण किया है ओर वे एक फाइनेंस ऑफिसर की तलाश में हैं. उसी समय मुझे इस्पात ग्रुप की ओर से उनकी पुणे स्थित यूनिट से भी प्रस्ताव आया था. चूंकि रांची मेरे पैतृक घर बांकुड़ा (पश्चिम बंगाल) से नजदीक था और रांची में मेरे कई रिश्तेदार रहते थे. इसलिए मैंने रांची स्थित ऊषा मार्टिन ज्वाइन करना ज्यादा बेहतर समझा. ऊषा मार्टिन प्रबंधन ने मुझे प्रभात खबर में डेपुटेशन पर रखा. मैने सात नवंबर 1989 को प्रभात खबर ज्वाइन किया. उस समय मैंने सोचा भी नहीं था कि मैं प्रभात खबर नामक एक संस्थान के निर्माण व उसके सफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा हूं. यह शुरुआत एक कैरियर की तरह थी लेकिन बाद में यह जुनून में बदल गया.
प्रभात खबर झारखंड के एक वरिष्ठ नेता स्व श्री ज्ञानरंजन के द्वारा 1984 में शुरू किया गया था. इसका ऊषा मार्टिन समूह की एक नयी कंपनी न्यूटल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड के द्वारा इसका अधिग्रहण किया गया. यह अखबार एक तरह से बंद ही था और उस समय इसका ठीक ढंग से परिचालन नहीं हो पा रहा था. स्थिति इतनी बदतर थी कि यह लगभग 500 कापियां ही पिंट्र कर रहा था, जो प्रायः मुफ्त बांट जाती थीं. ऐसे विकट समय में श्री डीएस शर्मा ने इस कंपनी के निदेशक का दायित्व संभाला. वे प्रभात खबर में मेरे पहले बॉस भी थे. उन्होंने ऊषा मार्टिन समूह के उस्तरीय प्रबंधन में करीब 30 साल काम करने के बाद प्रभात खबर का काम संभाला था. आज जो भी नाम, यश और प्रसिद्धि प्रभात खबर के खाते में दर्ज है, उसकी बुनियाद उन्हींने ही रखी थी. निजी तौर पर मैंने उनसे काफी कुछ सीखा भी. एक तरह से वे मेरे पिता सरीखे थे.
मुझे अब भी प्रभात खबर में अपना पहला दिन याद है जब मुङो श्री डीएस शर्मा से मिलाया गया. श्री शर्मा ने हरिवंश जी से मेरा परिचय कराया. हरिवंश जी पहले रविवार में थे ओर सितंबर 1989 से प्रभात खबर से जुड़े थे. ऊषा मार्टिन कंपनी के कई अन्य लोग भी प्रभात खबर से जुड़े. ज्ञानरंजन के छोट भाई अलख रंजन हमें कार्यभार सौंप चुके थे लेकिन अब चुनौतियां आनी शुरू हो गयी थीं. खराब आधारभूत संरचना के कारण प्रायः हर दिन कोई न कोई नयी समस्या हमारे स्वागत में खड़ी रहती. कभी कंप्यूटर डिपार्टमेंट से तो कभी मशीन डिपार्टमेंट से ऐसी कठिन परिस्थितियों में इन समस्याओं से निबटने में श्री डीएस शर्मा ने अविस्मरणीय भूमिका अदा की. वे बड़े धैर्य के साथ सबकी समस्याएं सुनते थे. हम सभी लोग इस उद्योग में एकदम नये थे. यहां तक कि हमारी ऊषा मार्टिन समूह ने भी इस तरह के अलग व नये काम में अपना हाथ डाला था. हरिवंश जी ने रविवार छोड़कर प्रधान संपादक का दायित्व संभाला था. बाद में उनके वहां के कुछ सहयोगियों ने भी प्रभात खबर से नाता जोड़ा. हरिवंश जी आनंद बाजार पत्रिका समूह जैसे एक प्रोफेशनल कंपनी के साथ और टाइम्सऑफ इंडिया के साथ भी जुड़े रहे थे. इस लिहाज से अच्छे संस्थानों में पत्रकारिता का खासा अनुभव उनके पास था. उस व उनकी मानसिकता कुछ दूसरी थी. यहां की परिस्थितियां जाहिर तौर पर उनके लिए बेहद कठिन थीं.
1991-92 में हमने अखबार के लेआउट का डिजाइन फिर से करवाया. यह काम एक ऐसे व्यक्ति ने किया, जिसने पूर्व में टेलीग्राफ का डिजाइन तैयार किया था. हमलोगों ने हर विभाग में प्रमुख जगहों पर प्रतिबद्ध,योग्य व गुणवत्तापरक लोगों की ही नियुक्तियां की. श्री डीएस शर्मा के लगातार निर्देश पर कंप्यूटरों, मशीनों वप्लांट की मरम्मती-सुधार के कार्यक्रम जारी रहे. अखबार में हमलोगों ने कई स्थानीय लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दों को पुरजोर ढंग से उठाया. इनमें मार्टिन टेटे कांड, नंदलाल मेडिसिन प्रकरण, पशुपालन घोटाला आदि प्रमुख थे. कुछ समय बाद ही अमृत बाजार पत्रिका समूह के श्री पीके सेन बतौर जनरल मैनजर (मार्केटिंग) प्रभात खबर से जुड़े. श्री श्रीवास्तव थॉम्पसन प्रेस से प्रभात खबर आये. श्री आरके दत्ता कार्मिक प्रबंधक के रूप में प्रभात खबर टीम में शामिल हुए. बाद में श्री श्रीवास्तव की हर्ट अटैक की वजह से असामयिक मृत्यु हो गयी. श्री सेन ने राष्ट्रीय स्तर के विज्ञापन बाजार से प्रभात खबर के लिए विज्ञापन जुटाने व उसे लगातार बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. उस समय रांची एक्सप्रेस मार्केट लीडर हुआ करता था और नेशनल मार्केट से हमारे लिए विज्ञापन शायद ही मिल पाते थे. श्री सेन के प्रयासों से ही विज्ञापन बाजार में हमारी कुछ पहचान बन सकी.कड़े संघर्ष की वजह से अखबार का सर्कुलेशन और विज्ञापन राजस्व बढ़ा, लेकिन अभी भी घाटा काफी ऊंचे दरजे का था. वित्त घाटा पाटने के लिए प्रबंधन पर निर्भर रहना पड़ता था. मुझे उन शुरुआती दिनों की मीटिंग अब भी याद है. मैं डीएस शर्मा के साथ कोलकाता समीक्षा बैठक. (रिव्यू मीटिंग) के लिए अक्सर जाया करता था. चूंकि हम घाटेवाले यूनिट से संबद्ध थे, इसलिए अक्सर हमें अंतिम वरीयता दी जाती थी.
1992 में डी डीएस शर्मा हमें छोड़ कर चले गये. उनके बाद श्री जेपी कसेरा ने थोड़े समय के लिए दायित्व संभाला और उनके बाद श्री वीके मेहता आये. 1995-96 तक सारी जिम्मेवारियां हरिवंश जी के कंधों पर आन पड़ी. इस समय तक उन्होंने सफलता की ऊंचाइयां छू रहे कई क्षेत्रीय अखबारों का दौरा किया. वहां जाकर काम करने की शैली देखी और प्रभात खबर के लिए उन्होंने विशेष रणनीतियां तय की. इधर आरके दत्ता ने श्री एलके दीवान से प्रोडक्शन डिपार्टमेंट की जिम्मेवारियां ले ली थीं. 1995-96 तक श्री दत्ता को सर्कुलेशन डिपार्टमेंट की भी जिम्मेवारी सौंप दी गयी. 1996 तक पीके सेन भी प्रभात खबर छोड़ कर चले गये. उनकी खाली जगह को मुझे भरनी पड़ी, बावजूद इसके कि मुझे अपने लेखा और क्रय (एकाउंट एंड परचेज) कामों को देखना था. 1990-94 का समय आधारभूत संरचना के निर्माण और एक बेहतर टीम के गठन में ही बीता. इस दौरान हमने अखबार उद्योग को समझने की कोशिश की.
1995-96 के बाद से श्री हरिवंशजी के नेतृत्व में हमने कई बड़े व जोखिम भरे निर्णय लेना शुरू कर दिया हमने कार्मिक विभाग (पर्सनल डिपार्टमेंट) में कड़े कदम उठाते हुए मानव संसाधन क्षमता उपयुक्त बनाये रखने के लिए इसमें भारी कटौती की. 1995 से पहले हमने प्रभात खबर के जमशेदपुर संस्करण निकानले का निश्चय किया. 1996 में हमने पटना से संस्करण छापना शुरू किया. इससे पहले हमने 1992 में रोजगार प्रभात खबर निकालना शुरू किया था, जिसका उद्घाटन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद ने किया था. 1999 से प्रभात खबर का धनबाद संस्करण निकला. 1995 से लेकर 2000 का समय हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा था. इस समय हमने अखबार के प्रसार व विज्ञापन बाजार में मजबूती के साथ कदम जमाये. बहुसंस्करण यानी मल्टीएडिशन अखबार निकालने का हमारा कंसेप्ट पूरी तरह सफल रहा. हमने अलग तरह की पत्रकारिता का शुभारंभ करते हुए देश के प्रतिष्ठित व प्रबुद्ध लोगों को बुलाकर प्रभात खबर व्याख्यान माला में ज्वलंत समस्याओं व सामाजिक सरोकारों पर उनकी राय जानी. पाठकों व आमलोगों से उनकी समस्या, प्रतिक्रिया जानने व उसे दूर करने के लिए प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम जैसी गतिविधियां शुरू की. इनसभी सार्थक गतिविधियां व अनथक प्रयासों का ही नतीजा था कि हम प्रभात खबर को झारखंड का नंबर वन अखबार के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहे. हमने ऑडिट ब्यूरो सर्कुलेशन (एबीसी) का सर्टिफकेट 1991 में प्राप्त किया और 1996 तक हमने तब के प्रमुख अखबार रांची एक्सप्रेस को सर्कुलेशन में पछाड़ दिया. इसने हमें नेशनल और लोकल, दोनों विज्ञापन बाजार में आय बढ़ाने में मदद दी.
1995-2000 के दौरान हमने रांची में एक बहुत मजबूत टीम तैयार कर ली थी. श्री आरके दत्ता एक साथ प्रोडक्शन, पर्सनल और सर्कुलेशन का दायित्व संभाल रहे थे. सर्कुलेशन डिपार्टमेंट में उनके हाथ डालने के.बाद से हमारे अखबार की बिक्री और बढ़ती गयी. दो-तीन सालों के भीतर ही हम रांची में अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले भारी अंतर से नंबर वन अखबार बन गये. 1999 में हम जमशेदपुर में नंबर वन अखबार हो गये. वहां अनुज कु.मार सिन्हा ने प्रभात खबर को इस मुकाम तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका अदा की. जुलाई, 1999में धनबाद संस्करण की शुरुआत करते ही हम झारखंड में नंबर वन अखबार बन गये. हमारी विज्ञापन आय भी अच्छी मात्रा में बढ़ी. 1995-2000 के दौरान हमने कई चुनौतियां व संकट झेले. 1998 में कुछ कर्मचारियों के द्वारा हड़ताल भी की गयी. मुझे याद है उन दिनों कुछ ही लोग थे, जिनके सहयोग से हम अखबार निकालने में कामयाब रहे. तभी वर्ष 2000 में प्रभात खबर पर एक बड़ा संकट आन पड़ा जब करीब 40 लोग प्रभात खबर छोड़ कर दूसरे अखबार में चले गये. इनमें हमारे कुछ अच्छे व विश्वासी लोग भी थे. इस तरह की समस्या हमलोगों के लिए अप्रत्याशित थी. प्रभात खबर को बंद करने के हर संभव प्रयास हुए, जिनमें वैसे लोगों की भी भूमिका थी, जो कभी हमारे साथ जुड़े थे और हमारे विश्वासपात्र थे. यह हमारे लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती थी. लेकिन श्री हरिवंश जी के मार्गदर्शन में हम इस संकट से और भी मजबूत होकर बाहर निकल आये. जैसा कि पहले के संकटों से हम उबरतो रहे थे. इसका प्रमाण है कि हिंदुस्तान के आने के बाद वर्ष 2000-2002 के बीच हमने सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की.
एक घाटेवाले यूनिट के फाइनेंस हेड होने के नाते आरंभिक. दिनों में मुझे ढेरों परेशानियों व समस्याओं से जूझना पड़ा. उन दिनों हमारे सप्लायर हमारे सामने पेमेंट के लिए बैठे रहते थे. उन दिनों हम ऐसे दौर से गुजरे, जब हमारे पास शायद ही न्यूज पिंट्र का स्टॉक. था. हमें ये चीजें दूसरे स्थानीय अखबारों से उधार पर लेनी पड़ती थीं. कई बार तो मुझे लगता था कि मुझे कंपनी सप्लायरों को हैंडल करने के लिए ही वेतन देती है. यह मेरे लिए काफी कठिन दौर था. लेकिन श्री डीएस शर्मा के मातहत व मार्गदर्शन में काम करने के अनुभव ने इन समस्याओं से निबटने में भारी मदद की. इनसे निबटने के क्रम में मैंने कभी धैय नहीं खोया. हां, एक बार धैर्य खोते हुए श्रीहरिवंश जी के समक्ष अपनी परेशनियां रखीं. यह खास घटना मुझे अब भी याद है. तब हरिवंश जी का संबल मेरे भी काम आया.
बहरहाल, कई संकटों के बावजूद हम सप्लायरों के बीच विश्वसनीयता बनाये रखने में कामयाब रहे. आज जब मैं इन चीजों के बारे में सोचता हूं तो निजी तौर पर महसूस करता हूं कि हमने इन संकटों से काफी कु.छ सीखा. हमने अपनी विश्वसनीयता न सिर्फ बनायी बल्कि उसे कायम रखा और लंबे समय से हर तबके में प्रभात खबर के बारे में सकारात्मक राय बनाये रखने में भी कामयाब रहे. शायद इसी कारण से हम लगातार तरक्की करते रहे.
पिछले 17 सालों से मैं हरिवंश जी के साथ काम कर रहा हूं. हमलोगों ने लगभग एक साथ ही प्रभात खबर ज्वाइन किया था. हमलोगों के साथ प्रभात खबर से जुड़नेवाले कई लोग हमारा साथ छोड़ चुके हैं. हरिवंश जी के साथ काम करते हुए मैंने उन्हें काफी नजदीक से देखा है. वे बिल्कुल अलग तरह के व्यक्तित्व हैं. शायद ही हमलोग ऐसे व्यक्तित्व वाले किसी व्यक्ति से आज के दिन में मिल पायें. उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे सही व उपयुक्त लोगों को ही उ स्तरीय पदों पर प्रोन्नत करने में समर्थ हैं. प्रतिभा को पहचानने की उनमें अद्भुत क्षमता है. साधारण लोगों से असाधारण काम ले लेना उनकी दूसरी दुर्लभ विशेषता है. उन्होंने हमें स्वतंत्र रूप से काम करने का पूरा मौका दिया. शुरुआती दिनों में वे सिर्फ संपादकीय व्यक्ति थे, लेकिन उन्होंने काफी तेज गति से अखबार उद्योग की बारीकियों को समझा और अपने को उस अनुरूप बदला. उनकी संवाद कौशल (कम्यूनिकेशन स्किल) की क्षमता ही थी, जिससे एक बढ़िया टीम और टीम स्पिरिट पैदा हो सकी. समय-समय पर यह टीम बदली जरूर लेकिन इसमें आत्मविश्वास और स्पिरिट भरने का काम हरिवंश जी ने ही किया. यद्यपि वे वित्तीय मामलों के जानकार आदमी नहीं, लेकिन बावजदू इसके मैंने वित्तीय मुद्दों पर उनसे काफी कुछ सीखा. मैने उनके साथ प्रभात खबर की कई मीटिंग में हिस्सा लिया है और प्राय वहां प्रभात खबर के स्वाभिमान और प्रतिष्ठा के लिए उनको लड़ते-जूझते देखा. इन सबके परिणामस्वरूप वे न सिर्फ प्रबंधन व समूह, बल्कि अखबार व उद्योग जगत में प्रभात खबर को एक विशिष्ट छवि व स्थान दिलाने में कामयाब रहे. उनका सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि वे प्रभात खबर की एक निष्पक्ष छवि निर्मित करने में सफल रहे. आज कोई यह नहीं कह सकता कि प्रभात खबर किसी खास घराने या दल का अखबार है. या किसी खास व्यक्ति को प्रोमोट कर रहा है.
वर्ष 2002 में हुए मार्केटिंग सेमिनार के दौरान अतिथि व इंद्राणी सेन (भारत की नंबर वन एड एजेंसी हिंदुस्तान थॉम्सन एसोशियेट की निदेशिका) प्रभात खबर के बारे में हरिवंश जी द्वारा पढ़े गये भाषण से इतना प्रभावित हुई कि उन्होंने नेशनल मार्केट में प्रभात खबर को प्रोमोट करने के लिए हरिवंश जी के नाम का सहारा लेने का सुझाव दिया. हरिवंश जी के बारे में एक बात और मैंने महसूस की है, वह यह कि वे हमारे निजी समस्याओं व आड़े वक्त में हमारे साथ रहते हैं. मैं ऐसी कई घटनाएं याद कर सकता हूं. इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रभात खबर को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनका सबसे बड़ा योगदान है.
मैं अपने साथी श्री आरके दत्ता के बारे में भी कुछ कहना चाहूंगा. वे ऊषा मार्टिन के मूलतः एक पर्सनल मैनेजर थे. लेकिन उन्होंने अपने आपको समयानुसार तेजी से बदला और निस्संदेह वे प्रभात खबर की टीम के. सबसे महत्वपूर्ण लोगों में शुमार किये जाते हैं. मुझे श्री अनुज कुमार सिन्हा द्वारा पिछले मार्केटिंग सेमिनार में कहे गये वे शब्द याद है कि.- प्रभात खबर में कोई नौकरी नहीं करता, बल्कि इसमें जीता है. निस्संदेह इस प्रेरणादायी विचार से मैं पूरी तरह सहमत हूं. मैं निजी तौर पर महसूस करता हूं कि प्रभात खबर से जुड़े हर छोटे व बड़े कर्मचारियों व अफसरों ने प्रभात खबर को एक अद्वितीय संस्थान बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. मैं ईश्वर का शुक्रगुजार हूं कि जब भी हम मुसीबतों, संकटों में फ़ंसे, हमें कहीं न कहीं से अप्रत्याशित रूप से मदद मिली. मुझे पूरा विश्वास है कि श्री हरिवंशजी के नेतृत्व में प्रभात खबर आने वाले दिनों में नयी ऊंचाइयों को छूयेगा और एक ऐसा अद्वितीय संस्थान बनेगा, जिसे हमेशा याद किया जायेगा. मैं अपने आपको बेहद भाग्यशाली समझता हूं कि प्रभात खबर जैसे संस्थान के निर्माण की विशाल प्रक्रिया में मैंने भी थोड़ा कुछ योगदान दिया.
अंत में, मैं ऊषा मार्टिन प्रबंधन के बारे में कहना चाहूंगा कि उन्होंने प्रभात खबर की टीम पर लगातार विश्वास बनाये रखा और हर संभव सहायता की. हमारा मानना है कि हमने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, प्रतिमान व कीर्तिमान गढ़े हैं, वह सब श्री बसंत बाबू, श्री लाली बाबू, श्री प्रशांत जी, श्री राजीव जी के मार्गदर्शन की बदौलत संभव हो पाया. एक विजनरी होने के नोते श्री बसंत बाबू ने हमेशा हमारा मार्ग दर्शन किया कि कैसे हम अपने अखबार की गुणवत्ता में निरंतर सुधार करते रहें और चुनौतियों से निबटें. श्री लाली बाबू ने हमें पर्सनल और एचआरडी मामलों में अकथनीय सहायता पहुंचाई. हमलोग इनके मार्गदर्शन में ही प्रभात खबारपर आये बड़े संकटों से उबर पाये. हम आशा करते हैं कि श्री हरिवंशजी के नेतृत्व, मार्गदर्शन व प्रबंधन में प्रभात खबर नित नयी ऊंचाइयों को प्राप्त करेगा.
मैं प्रभात खबर की टीम के सभी सदस्यों (जो अब हमारे बीच नहीं हैं, उन्हें भी) को बधाइयां, शुभकामनाएं देता हूं, जिन्होंने प्रभात खबर को इस मुकाम तक पहुंचाया. मैं सभी पाठकों का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने हर समय प्रभात खबर के प्रति लगाव रखा, इसके प्रति अपना विश्वास विपरीत परिस्थितियें में भी कायम रखा. मेरी कामना है कि यह ऐसा संस्थान बने, जिसे लोग ताउम्र याद रखें.
(प्रभात खबर अखबार के महाप्रबंधक कमल कुमार गोयनका से हुई लंबी बातचीत के कुछ
अंश)
Sabhar:- Bhadas4media.com
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