मशहूर कवि, वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षक, बेहतरीन इंसान यानी बहुमुखी प्रतिभा के धनी वीरेन डंगवाल एक बार फिर अमर उजाला परिवार से जुड़ गए हैं. दो साल पहले अमर उजाला, बरेली के संपादक के पद से इस्तीफा देने वाले वीरेन दा को अमर उजाला का डाइरेक्टर बना दिया गया है. वे इसके पहले लगभग 27 वर्ष से अमर उजाला के ग्रुप सलाहकार, संपादक और अभिभावक के तौर पर जुड़े रहे हैं. उनका अमर उजाला से अलग होना एक बड़ा झटका माना गया था.
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बिना अमर उजाला से इस्तीफा दे दिया था. मनुष्यता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र में अटूट आस्था रखने वाले वीरेन डंगवाल ने इन आदर्शों-सरोकारों को पत्रकारिता और अखबारी जीवन से कभी अलग नहीं माना. वे उन दुर्लभ संपादकों में से रहे हैं जो सिद्धांत और व्यवहार को अलग-अलग नहीं जीते. अतुल माहेश्वरी के गुरू रहे वीरेन डंगवाल का उजाला परिवार में हमेशा से काफी इज्जत और सम्मान की नजरों से देखा जाता रहा है. उनका जुड़ना एक अभिभावक के आ जाने के रूप में देखा जा रहा है.5 अगस्त सन 1947 को कीर्तिनगर, टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) में जन्मे वीरेन डंगवाल साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि हैं. उनके जानने-चाहने वाले उन्हें वीरेन दा नाम से बुलाते हैं. उनकी शिक्षा-दीक्षा मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल और अन्त में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वर्ष 1968 में एमए फिर डीफिल करने वाले वीरेन डंगवाल 1971 में बरेली कालेज के हिंदी विभाग से जुड़े. उनके निर्देशन में कई (अब जाने-माने हो चुके) लोगों ने हिंदी पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर मौलिक शोध कार्य किया. इमरजेंसी से पहले निकलने वाली जार्ज फर्नांडिज की मैग्जीन प्रतिपक्ष से लेखन कार्य शुरू करन वाले वीरेन डंगवाल को बाद में मंगलेश डबराल ने वर्ष 1978 में इलाहाबाद से निकलने वाले अखबार अमृत प्रभात से जोड़ा. अमृत प्रभात में वीरेन डंगवाल 'घूमता आइना' नामक स्तंभ लिखते थे जो बहुत मशहूर हुआ. घुमक्कड़ और फक्कड़ स्वभाव के वीरेन डंगवाल ने इस कालम में जो कुछ लिखा, वह आज हिंदी पत्रकारिता के लिए दुर्लभ व विशिष्ट सामग्री है. वीरेन डंगवाल पीटीआई, टाइम्स आफ इंडिया, पायनियर जैसे मीडिया माध्यमों में भी जमकर लिखते रहे. वीरेन डंगवाल ने अमर उजाला, कानपुर की यूनिट को वर्ष 97 से 99 तक सजाया-संवारा और स्थापित किया. इसके बाद बरेली में भी अमर उजाला को एक पहचान दी.
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sabhar:- Bhdas4media.com
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