जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित त्रैमासिक पत्रिका मीडिया विमर्श के पांच साल पूरे होने पर निकाला गया वार्षिकांक सोशल नेटवर्किंग साइट्स और उनके सामाजिक प्रभावों पर केंद्रित है। पत्रिका के ताजा अंक की आवरण कथा इसी विषय पर केंद्रित है। इस आवरण कथा का प्रथम लेख माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने लिखा है, जिसमें उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट्स के सकारात्मक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए इसके सार्थक उपयोग की चर्चा की है।
इसके साथ ही इस चर्चा में शामिल होकर अनेक वरिष्ठ पत्रकारों, मीडिया प्राध्यापकों, चिंतकों एवं शोध छात्रों ने अलग-अलग विषय उठाए हैं। जिनमें प्रमुख रूप से प्रकाश दुबे, मधुसूदन आनंद, कमल दीक्षित, वर्तिका नंदा, विजय कुमार, प्रकाश हिंदुस्तानी, राजकुमार भारद्वाज,डा.सुशील त्रिवेदी,विनीत उत्पल,शिखा वाष्णेय, धनंजय चोपड़ा, संजय कुमार, अंकुर विजयवर्गीय, संजना चतुर्वेदी,कीर्ति सिंह, संजय द्विवेदी, आशीष कुमार अंशू, सी. जयशंकर बाबू ,बबिता अग्रवाल, रानू तोमर, अनुराधा आर्य, शिल्पा अग्रवाल, जूनी कुमारी, एस.स्नेहा, तृषा गौर के नाम शामिल हैं।
इसके अलावा इस अंक में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू के बयानों से उत्पन्न विवाद पर एनके सिंह और डा. श्रीकांत सिंहकी महत्वपूर्ण टिप्पणी प्रकाशित की गयी है। हिंदी को सरल बनाने के भारत सरकार के गृहमंत्रालय की पहल पर प्रभु जोशी की एक विचारोत्तेजक टिप्पणी भी इस अंक की उपलब्धि है, जो सरलता के बहाने हिंदी पर अंग्रेजी के हमले की वास्तविकता को उजागर करती है।
पत्रिका के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने बताया कि विगत पांच वर्षों से निरंतर प्रकाशित पत्रिका मीडिया विमर्श ने अपने विविध अंकों के माध्यम से एक सार्थक विमर्श की शुरूआत की है। पत्रिका के प्रत्येक अंक का मूल्य 50 रूपए है और वार्षिक शुल्क 200 रूपए है।
Sabahar:- samachar4media.com
सुशिल जी .....ख़बरों की असलियत को पहले जानिए फिर प्रकाशित करे ...
ReplyDeleteyeh kis dalal ki suruaat hai jo itni gandi hai media kamatlab samajhta hai
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