धन-बल को मिलने वाला मान है भ्रष्टाचार की जड़ ....!
भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण हम सब की, समग्र रूप से हमारे समाज की वो मानसिकता है जिसमें धन का, धनी व्यक्ति का मान बहुत ऊँचा बना कर रखा है | हमारे समाज में धनी व्यक्ति को कभी भय तो कभी लोभ-लालच के चलते जनता हमेशा श्रेष्ठ स्थान देकर पूजनीय बना देती है | इसी सोच ने आज हमारे जीवन में धनार्जन को सर्वोपरि बना दिया है | जो जितना धनी उसका जीवन उतना ही आसान और उसके हिस्से उतना ही मान सम्मान | मुझे लगता है कि जब तक यह सोच हमारे परिवारों और समाज में मौजूद है हम चाहे जितने अनशन कर लें, मोर्चे निकाल लें , भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करने का मार्ग मिल ही नहीं सकता | जब हम उन विषयों पर गंभीरता से विचार करते हैं जिनसे यह स्पष्ट हो सके कि भ्रष्टाचार आखिर हमारे सिस्टम में है, तो है क्यों ...? तो धन-बल को दिया जाने वाला मान एक प्रमुख कारण के रूप में सामने आता है |
भ्रष्टाचार का मुद्दा सिर्फ नेताओं और सरकारी अफसरों तक ही सीमित नहीं है | हमारे समाज में हर व्यक्ति को लगता है कि धन अर्जित कर लिया तो बल आसानी से जुटाया जा सकता है | पैसा और पावर हाथ आया तो फिर सब कुछ उनकी मुठ्ठी में | इसीलिए हर व्यक्ति के मन में अधिक से अधिक धनार्जन की सोच पनपती है | यह इच्छा बलवती हो उठती है कि बस पैसा कमाया जाय बाकि सब मुश्किलें तो फिर यूँ ही हल हो जायेंगीं | ज़ाहिर सी बात है कि ईमानदारी के मार्ग पर चलकर जीवन की ज़रूरतें तो पूरी हो सकती हैं पर धन-बल जुटाने की इच्छाएं नहीं | बस....यहीं से भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है कभी न ख़त्म होने वाले अभिशाप के सामान |
भ्रष्टाचार कोई रोग नहीं है जिससे हमारा देश जाने अनजाने संक्रमित हो गया है | यह तो सीधे सीधे उस धन को जुटाने की तरकीब है जिसके बल पर हमारे सामजिक-पारिवारिक वातावरण में कोई व्यक्ति सम्मान अर्जित करता है, स्वयं को स्थापित कर पाता है | आज के दौर में हमारे समाज में धन का मान सद्गुणों से कहीं ज्यादा है | पैसे के आते ही अवगुण भी गुण बन जाते हैं , यह समझना कठिन नहीं है कि जिस धन को एकत्रित करने से समाज में इन्सान की प्रतिष्ठा बढती हो, उसे मान सम्मान मिलता हो, उसे जुटाने में वो किस हद तक जायेगा , या फिर जा रहा है ?
ऐसे देश में भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है , जहाँ किसी व्यक्ति का मान उसकी बेटी की शादी में खर्च किये गए धन से निर्धारित होता है | जहाँ समाज की नज़र में किसी एक मनुष्य की मनुष्यता बौनी हो जाती है दूसरे के आलीशान मकान के आगे | किसी घर के आगे खड़ी महँगी गाड़िया तय करती हैं कि उसे कितना सम्मान मिलेगा ? किसी परिवार की महिलाओं के झाले-झुमकों का वज़न तय करता है कि उन्हें मिलने वाले मान-सम्मान का माप-तौल क्या होगा ?
ऐसे देश में भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है , जहाँ किसी व्यक्ति का मान उसकी बेटी की शादी में खर्च किये गए धन से निर्धारित होता है | जहाँ समाज की नज़र में किसी एक मनुष्य की मनुष्यता बौनी हो जाती है दूसरे के आलीशान मकान के आगे | किसी घर के आगे खड़ी महँगी गाड़िया तय करती हैं कि उसे कितना सम्मान मिलेगा ? किसी परिवार की महिलाओं के झाले-झुमकों का वज़न तय करता है कि उन्हें मिलने वाले मान-सम्मान का माप-तौल क्या होगा ?
जब अच्छा मनुष्य होने के प्रमाण भी धन ही देने लगे तो पैसा बटोरने की मानसिकता को तो बढ़ावा मिलेगा ही | समाज ही नहीं हमारे यहाँ तो परिवार और नाते रिश्तेदारों में भी उसी में भी उसी की पूछ-परख होती है जो अच्छा कमाता खाता है | कौन कितना सफल या असफल है यह भी उसकी कमाई के आधार ही आँका जाता है | कई बार धार्मिक, सामाजिक आयोजनों में तन-मन से सहयोग देने वालों के बजाय धन से सहयोग करने वालों कहीं ज्यादा माननीय बनते देखा है | यह दुखद है कि धन-बल के इस खेल में मनुष्यता और मौलिक प्रतिभा कहीं खो गए हैं | हर एक व्यक्ति इस भागदौड़ भरे जीवन में सिर्फ पैसा बटोरने के पीछे लगा है | ताकि वो भी अधिक से अधिक धन जुटा कर उस संभ्रांत वर्ग का हिस्सा बन सके जिसे हर सुख और सम्मान का अधिकारी माना जाता है | बस ...यही सोच भ्रष्टाचार को जन्म भी देती है और बढ़ावा भी |
Sabhar:- http://meri-parwaz.blogspot.com/
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