मित्रों, आपने पहले के तीन प्रमाणों को पढ़ा होगा। घोटालों की श्रृंखला में चौथे प्रमाण में गंगा पुल परियोजना प्रमंडल, गुलजारबाग, पटना में पिछले माह हुए 15 लाख के टेंडर मैनेजमेंट और घोटाले का दिलचस्प खुलासा जानें……..
इस प्रमंडल के अनेकों घोटाले की लगातार खबरें सुन गया के श्री प्रदीप कुमार सिन्हा, सहायक अभियंता से न रहा गया। मन इतना मचला कि विशेष पैरवी लगा बीते कुछ माह पहिले इस प्रमंडल में अपनी पोस्टिंग करवा ली। घोटाले की इतनी मुफीद जगह और ऊपर से घोटालेबाजों के इतने बड़े संरक्षक (मुख्य अभियंता, गंगा पुल परियोजना) के क्षेत्राधिकार में आकर उनका मन गदगद हो गया। घोटाले की पृष्ठभूमि तलाशने लगे। बाज की सी पैनी नजर से शिकार खोज ही लिया।
शिकार बना गंगा पुल परियोजना प्रमंडल, गुलजारबाग, पटना का सरकारी आवास संख्या ए / ए । आनन-फानन में इस आवास में पूर्व से रह रही एक सरकारी सेवक की विधवा को इस आवास को खाली करने का फरमान जारी किया (क्या हुआ जो उन्हें पूरी कोलोनी के अनेकों आवासों में रह रहे अवैध लोगों को भी निकाल बाहर करने की याद नहीं आई। क्या हुआ जो उन्हें सेवानिवृति के बाद भी आवासों मे रह रहे लोगों को भी निकाल बाहर करने की याद नहीं आई। क्या हुआ जो उन्हें अपने ही बॅास के भाई के ससुर श्री रमेश मिश्रा को सरकारी आवास से निकाल बाहर करने की याद नहीं आई जबकि वे काफी पहले ही सेवानिवृत हो चुके थे आखिर बॅास के भाई के ससुर भी तो अपने ससुर की ही तरह पूज्यनीय जो होते हैं।) और फिर कुछ ही दिनों मे इस आवास संख्या ए / ए को मुख्य अभियंता, राष्ट्रीय उच्च पथ के तकनीकी सलाहकार को आवंटित करवा दिया। राष्ट्रीय उच्च पथ के मुख्य अभियंता ने भी अपने तकनीकी सलाहकार को इस आवास को आवंटित करने में तनिक भी विलंब नहीं किया क्योंकि ये मुख्य अभियंता महाशय गंगा पुल परियोजना के भी मुख्य अभियंता हैं (अब क्या हुआ जो इन्होंने कई छोटे स्तर के कर्मचारियों के आवास आवंटन का आज तक अनुमोदन नहीं किया)
खैर आनन-फानन में श्री सिन्हा जी ने इस आवास का मरम्मति का इस्टीमेट बनाया – वह भी 15 लाख का, और चंद ही दिनों में कार्यपालक अभियंता से मुख्य अभियंता तक की सभी स्वीकृतियाँ प्राप्त कर ली। पर मामला टेंडर पर आकर फँस गया।
15 लाख के काम का टेंडर ओपेन रूप से समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाना था। सारे लोग सांसत मे थे कि संकटमोचक की भूमिका में गंगा पुल परियोजना प्रमंडल, गूलजारबाग, पटना के महान घोटालेबाज और गंगा पुल परियोजना के मुख्य अभियंता के अनन्य भक्त बंधु श्रीमान शकील अहमद, श्रीमान बृजकिशोर सिंह और श्रीमान सुनील सिंह सामने आए। चुटकी बजाते हल निकाला।
अगले ही घंटे गंगा पुल परियोजना के मुख्य अभियंता ने आदेश जारी किया कि इस आवास का मरम्मति आपातकालीन श्रेणी में आती है और इसी माह इसकी मरम्मति नही होने से किसी बड़े वज्रपात की संभावना हो सकती है सो इस टेंडर को बिना समाचार पत्रों में प्रकाशित किए ही इच्छुक संवेदकों से टेंडर ले लिया जाए। (क्या हुआ जो ना तो सरकारी नियम ऐसा कहतें हैं और ना उन्हें ऐसा करने का पावर है)
अगले ही दिन बिना किसी को जाने सिन्हा जी ने अपने गया के साथी ठेकेदार को 2 सेट टेंडर पेपर दिए जिसे उस ठेकेदार ने बड़ी शालीनता से एक अपने और एक डमी नाम से भरकर उन्हें थमा दिया। सिन्हा जी के बॅास ने भी सच्चे सरकारी सेवक का परिचय देते हुए अगले ही दिन तुलनात्मक विवरणी मुख्य अभियंता तक भिजवा दी और मुख्य अभियंता ने त्वरित निष्पादन की मिसाल कायम कर उस ठेकेदार को काम आवंटित कर दिया (क्या हुआ जो उन्हें गंगा पुल परियोजना प्रमंडल, गुलजारबाग, पटना के महान घोटालेबाजों पर आजतक कारवाई करने की सुध नहीं रही, आखिर बडे़ आदमी जो ठहरे—छोटे-मोटे घोटालेबाजों पर कारवाई का ध्यान ही कहाँ रह पाता है)। और सिन्हा जी के बॅास ने भी आदेश का सादर पालन करते हुए एग्रीमेंट कर दिया।
पर इसी बीच भारी गड़बड़ कर दी श्रीमान शकील अहमद ने। उन्हें ना तो माया मिली और ना राम – संकटमोचक की क्रेडिट भी हाथ से फिसलती लगी। इसी को लेकर शाकीर हुसैन से भी झगड़ा कर बैठे। अंत में अंगूर नही मिले तो खट्टे की तर्ज पर कोलोनी में यह रहस्योदघाटन करते फिर रहें हैं कि बड़ा भारी घोटाला हुआ है। टेंडर में भाग लेने वाले दोनो ठेकेदार तृतीय श्रेणी में निबंधित हैं जबकि यह काम 25 लाख से कम का होने के कारण केवल और केवल पटना जिला में निबंधित और केवल चतुर्थ श्रेणी में निबंधित ठेकेदार ही कर सकते हैं (पथ निर्माण विभाग, बिहार, पटना की अधिसूचना संख्या – 13589 (एस) दिनांक – 13.12.2011 के अनुसार)।
एक अन्य सूत्र के अनुसार इस मामले में बिहार प्रशासनिक सुधार मिशन मिशन सोसाइटी, बिहार सरकार के पत्र संख्या-964 दिनांक 14.12.211 के अनुसार सरकार के काम में पारदर्शिता लाने हेतु 10 लाख से ऊपर के एग्रीमेंट / वर्क और्डर को वेब साईट पर प्रकाशित करने की कारवाई भी नहीं की गई है।
रही बात कोलोनी में रहने वाले अन्य लोगों की तो वे बेचारे आज भी अपने-अपने सरकारी आवासों की कई वर्षों से मरम्मति हेतु दिए गए आवेदनों पर कारवाई की आस में बैठकर सिर धुन रहें हैं।
(रिपोर्ट खत्म हुई…रिपोर्ट तैयारी में गंगा पुल परियोजना प्रमंडल के श्री अरिवंद कुमार, कोषरक्षक और कुंदन कुमार, चौकीदार के असीम सहयोग के लिए धन्यवाद)
इस प्रमंडल के अनेकों घोटाले की लगातार खबरें सुन गया के श्री प्रदीप कुमार सिन्हा, सहायक अभियंता से न रहा गया। मन इतना मचला कि विशेष पैरवी लगा बीते कुछ माह पहिले इस प्रमंडल में अपनी पोस्टिंग करवा ली। घोटाले की इतनी मुफीद जगह और ऊपर से घोटालेबाजों के इतने बड़े संरक्षक (मुख्य अभियंता, गंगा पुल परियोजना) के क्षेत्राधिकार में आकर उनका मन गदगद हो गया। घोटाले की पृष्ठभूमि तलाशने लगे। बाज की सी पैनी नजर से शिकार खोज ही लिया।
शिकार बना गंगा पुल परियोजना प्रमंडल, गुलजारबाग, पटना का सरकारी आवास संख्या ए / ए । आनन-फानन में इस आवास में पूर्व से रह रही एक सरकारी सेवक की विधवा को इस आवास को खाली करने का फरमान जारी किया (क्या हुआ जो उन्हें पूरी कोलोनी के अनेकों आवासों में रह रहे अवैध लोगों को भी निकाल बाहर करने की याद नहीं आई। क्या हुआ जो उन्हें सेवानिवृति के बाद भी आवासों मे रह रहे लोगों को भी निकाल बाहर करने की याद नहीं आई। क्या हुआ जो उन्हें अपने ही बॅास के भाई के ससुर श्री रमेश मिश्रा को सरकारी आवास से निकाल बाहर करने की याद नहीं आई जबकि वे काफी पहले ही सेवानिवृत हो चुके थे आखिर बॅास के भाई के ससुर भी तो अपने ससुर की ही तरह पूज्यनीय जो होते हैं।) और फिर कुछ ही दिनों मे इस आवास संख्या ए / ए को मुख्य अभियंता, राष्ट्रीय उच्च पथ के तकनीकी सलाहकार को आवंटित करवा दिया। राष्ट्रीय उच्च पथ के मुख्य अभियंता ने भी अपने तकनीकी सलाहकार को इस आवास को आवंटित करने में तनिक भी विलंब नहीं किया क्योंकि ये मुख्य अभियंता महाशय गंगा पुल परियोजना के भी मुख्य अभियंता हैं (अब क्या हुआ जो इन्होंने कई छोटे स्तर के कर्मचारियों के आवास आवंटन का आज तक अनुमोदन नहीं किया)
खैर आनन-फानन में श्री सिन्हा जी ने इस आवास का मरम्मति का इस्टीमेट बनाया – वह भी 15 लाख का, और चंद ही दिनों में कार्यपालक अभियंता से मुख्य अभियंता तक की सभी स्वीकृतियाँ प्राप्त कर ली। पर मामला टेंडर पर आकर फँस गया।
15 लाख के काम का टेंडर ओपेन रूप से समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाना था। सारे लोग सांसत मे थे कि संकटमोचक की भूमिका में गंगा पुल परियोजना प्रमंडल, गूलजारबाग, पटना के महान घोटालेबाज और गंगा पुल परियोजना के मुख्य अभियंता के अनन्य भक्त बंधु श्रीमान शकील अहमद, श्रीमान बृजकिशोर सिंह और श्रीमान सुनील सिंह सामने आए। चुटकी बजाते हल निकाला।
अगले ही घंटे गंगा पुल परियोजना के मुख्य अभियंता ने आदेश जारी किया कि इस आवास का मरम्मति आपातकालीन श्रेणी में आती है और इसी माह इसकी मरम्मति नही होने से किसी बड़े वज्रपात की संभावना हो सकती है सो इस टेंडर को बिना समाचार पत्रों में प्रकाशित किए ही इच्छुक संवेदकों से टेंडर ले लिया जाए। (क्या हुआ जो ना तो सरकारी नियम ऐसा कहतें हैं और ना उन्हें ऐसा करने का पावर है)
अगले ही दिन बिना किसी को जाने सिन्हा जी ने अपने गया के साथी ठेकेदार को 2 सेट टेंडर पेपर दिए जिसे उस ठेकेदार ने बड़ी शालीनता से एक अपने और एक डमी नाम से भरकर उन्हें थमा दिया। सिन्हा जी के बॅास ने भी सच्चे सरकारी सेवक का परिचय देते हुए अगले ही दिन तुलनात्मक विवरणी मुख्य अभियंता तक भिजवा दी और मुख्य अभियंता ने त्वरित निष्पादन की मिसाल कायम कर उस ठेकेदार को काम आवंटित कर दिया (क्या हुआ जो उन्हें गंगा पुल परियोजना प्रमंडल, गुलजारबाग, पटना के महान घोटालेबाजों पर आजतक कारवाई करने की सुध नहीं रही, आखिर बडे़ आदमी जो ठहरे—छोटे-मोटे घोटालेबाजों पर कारवाई का ध्यान ही कहाँ रह पाता है)। और सिन्हा जी के बॅास ने भी आदेश का सादर पालन करते हुए एग्रीमेंट कर दिया।
पर इसी बीच भारी गड़बड़ कर दी श्रीमान शकील अहमद ने। उन्हें ना तो माया मिली और ना राम – संकटमोचक की क्रेडिट भी हाथ से फिसलती लगी। इसी को लेकर शाकीर हुसैन से भी झगड़ा कर बैठे। अंत में अंगूर नही मिले तो खट्टे की तर्ज पर कोलोनी में यह रहस्योदघाटन करते फिर रहें हैं कि बड़ा भारी घोटाला हुआ है। टेंडर में भाग लेने वाले दोनो ठेकेदार तृतीय श्रेणी में निबंधित हैं जबकि यह काम 25 लाख से कम का होने के कारण केवल और केवल पटना जिला में निबंधित और केवल चतुर्थ श्रेणी में निबंधित ठेकेदार ही कर सकते हैं (पथ निर्माण विभाग, बिहार, पटना की अधिसूचना संख्या – 13589 (एस) दिनांक – 13.12.2011 के अनुसार)।
एक अन्य सूत्र के अनुसार इस मामले में बिहार प्रशासनिक सुधार मिशन मिशन सोसाइटी, बिहार सरकार के पत्र संख्या-964 दिनांक 14.12.211 के अनुसार सरकार के काम में पारदर्शिता लाने हेतु 10 लाख से ऊपर के एग्रीमेंट / वर्क और्डर को वेब साईट पर प्रकाशित करने की कारवाई भी नहीं की गई है।
रही बात कोलोनी में रहने वाले अन्य लोगों की तो वे बेचारे आज भी अपने-अपने सरकारी आवासों की कई वर्षों से मरम्मति हेतु दिए गए आवेदनों पर कारवाई की आस में बैठकर सिर धुन रहें हैं।
(रिपोर्ट खत्म हुई…रिपोर्ट तैयारी में गंगा पुल परियोजना प्रमंडल के श्री अरिवंद कुमार, कोषरक्षक और कुंदन कुमार, चौकीदार के असीम सहयोग के लिए धन्यवाद)
लेखक – लाल बहादूर बिहार
Sabhar:-http://www.janokti.com/
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