प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
जब कभी एकांत में फुरसत में बैठता हूँ तो बचपन के सुहाने पल याद आ जाते है. वो मस्ती वो अपने नन्हे-मुन्हें दोस्तो के साथ की गई धमा-चौकड़ी भूले नहीं भूलती. आज के स्वार्थी संसार को देखकर मन करता है कि काश फिर से उसी बाल संसार में वापस गुलाटी मारकर पहुँच जाऊं और कुछ पल जी लूँ उस अनमोल जीवन को. यदि किसी ने “बच्चों को भगवान का रूप” कहा है तो ठीक ही कहा है. वास्तव में बच्चों में भगवान की भांति ही सबके लिए प्रेम, भोलापन और अपनापन होता है. चलिए आज मिलते हैं एक ऐसे हिन्दी ब्लॉगर से जिनका संसार बच्चों का संसार है. वह बच्चों से बहुत प्रेम करते हैं और अपने इसी बाल प्रेम के कारण उन्होंने बाल साहित्य को समर्पित एक ब्लॉग भी बना रखा है.जी हाँ इनका नाम है श्री कैलाश शर्मा.
कैलाश शर्मा जी का जन्म 20 दिसम्बर, 1949 को मथुरा (उ.प्र.) के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ. इनका बचपन और कॉलेज जीवन बहुत खुशहाल रहा. अंग्रेजी साहित्य और अर्थशास्त्र में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर शिक्षा के उपरांत संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा केन्द्रीय सचिवालय सेवा में चयन के बाद, 1970 में संघ लोक सेवा आयोग, नयी दिल्ली में नियुक्ति होने पर विभिन्न राजपत्रित पदों पर कार्य किया. 1985 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के सतर्कता विभाग में विशेषज्ञ श्रेणी में ज्वाइन किया और पूर्व, उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत मुख्य रूप से इनका कार्य क्षेत्र रहा. सम्प्रति यह सेवानिवृत के पश्चात दिल्ली में रह रहे हैं. कैलाश शर्मा जी नन्हें-मुन्ने बच्चों के बीच मस्त हैं चलिए हम भी उनकी टोली में शामिल हो जाते हैं.
सुमित प्रताप सिंह- कैलाश शर्मा जी नमस्कार! आप और आपका बाल संसार दोनों कैसे हैं?
कैलाश शर्मा- नमस्कार सुमित जी! मैं और मेरा बाल संसार दोनों ही अच्छे हैं. आप कैसे हैं?
सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी ठीक हूँ. कुछ प्रश्न लाया हूँ आपके लिए.
कैलाश शर्मा- जी पूछिए.
( कैलाश जी ने मुझसे बतियाने के लिए नन्हे-मुन्हों को बाहर खेलने को कह दिया. वे सभी दुखी हो मेरी ओर निराशा से देखते हुए बाहर की ओर चल दिए)
सुमित प्रताप सिंह- जिस समय सभी हिंदी ब्लॉगर व्यंग, कहानी अथवा कविताओं द्वारा हिंदी ब्लॉग जगत को समृद्ध करने में लगे हुए हैं वहीं आप बाल लेखन में मस्त हैं. ऐसा क्यों?
कैलाश शर्मा- ऐसा नहीं है. मैं केवल बाल लेखन में ही नहीं बल्कि अन्य लेखन में भी व्यस्त हूँ. वास्तव में बाल लेखन मैंने बहुत बाद में शुरू किया. मेरा पहला और मुख्य ब्लॉग Kashish-MyPoetry जुलाई, २०१० में शुरू किया था जिस पर मेरी कवितायें उपलब्ध हैं. यह कहना गलत न होगा कि में इस ब्लॉग पर ज्यादा सक्रिय हूँ. बच्चों से मुझे बहुत लगाव है क्योंकि उनका साथ जीवन को एक सात्विकता और निस्वार्थ प्रेम देता है. बच्चों के लिये लिख कर एक अद्भुत शान्ति और सुकून का अनुभव होता है, इस लिये जनवरी, २०११ में मैंने बच्चों के लिये ब्लॉग ‘बच्चों का कोना’ शुरू किया. इसके अलावा समसामयिक विषयों पर लेखन के लिये मैंने जुलाई, २०११ में मैंने एक और ब्लॉग ‘बातें – कुछ दिल की, कुछ जग की’ शुरू किया.
(तभी मुझे किसी ने पीछे से गुदगुदी की. पीछे की ओर झाँका तो एक नन्हें मुस्काते दिखे. उसकी इस शरारत को देख सोचा बच्चे बहुत शरारती होते हैं)
सुमित प्रताप सिंह- ब्लॉग पर हिंदी लेखन करने के विषय में कब, क्यों और कैसे सूझा?
कैलाश शर्मा- लिखने का शौक कॉलेज जीवन से ही था, लेकिन कार्य की व्यस्तता की वज़ह से समय नहीं निकाल पाता था. फिर भी जब समय मिलता लिखता रहता था. सेवा निवृति के बाद लेखन को अधिक समय मिलने लगा. इस दौरान ब्लॉग जगत से परिचय हुआ और सोचा कि मैं भी अपना ब्लॉग क्यों न शुरू करूँ. ब्लॉग जगत में इतना प्रोत्साहन और स्नेह मिला कि फ़िर वापिस मुड कर देखने की ज़रूरत नहीं पडी और यह सफ़र आज भी चल रहा है.
(अचानक किसी ने पीठ में बुरी तरह नोंचा. पीछे मुड़कर देखा तो दूसरे नन्हें अपनी बत्तीसी दिखाते दिखे तो सोचा अपन भी बचपन में ऐसे ही शरारत किया करते थे )
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
कैलाश शर्मा- पहली रचना तो अब याद नहीं लेकिन कॉलेज जीवन में लिखना शुरू किया था और पहली रचना जिसने मुझे पहचान दी वह एक लंबी कविता ‘ताज महल और एक कब्र’ थी. संघ लोक सेवा आयोग में मेरे कार्यकाल के दौरान हिंदी दिवस पर कविता प्रतियोगिता में इस रचना के लिये आदरणीय बालकवि बैरागी जी के कर कमलों से प्रथम पुरुस्कार पाना मेरे लिये एक अविस्मरणीय पल रहा.
(अबकी बार पीठ पर किसी ने कंकड़ दे मारा पीछे मुढ़कर देखा तो खिड़की में तीसरे नन्हें खिलखिला रहे थे तो सोचा कि बच्चे कुछ अधिक ही शैतान हैं)
सुमित प्रताप सिंह- क्या वाकई लिखना बहुत ज़रूरी है? वैसे आप लिखते क्यों हैं?
कैलाश शर्मा- कार्यकाल में देश के सुदूर जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण के दौरान असीम गरीबी,शोषण,भ्रष्टाचार और मानवीय संबंधों की विसंगतियों से निकट से सामना हुआ, जिसने मन को बहुत उद्वेलित किया. समाज में व्याप्त विसंगतियाँ जब मन को बहुत उद्वेलित कर देती हैं, तो अंतस के भाव कागज़ पर उतर आते हैं. लेखन मेरे लिये अंतस के भावों को आत्मसंतुष्टि के लिये अभिव्यक्त करने का माध्यम है.
( अचानक पीठ पर पानी का गुब्बारा आकर लगा. गुस्से में पीछे मुड़कर देखा तो चौथे नन्हें चेहरा रंगे बाहर पेड़ पर टंगे हुए हँस रहे थे तो विचार किया कि ये बच्चे तो महाशैतान हैं)
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है और क्यों?
कैलाश शर्मा- कवितायेँ. अंतस के भावों को कम शब्दों में प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम होने की वजह से.
(तभी मेरी नज़र अपने जूतों पर गई. दोनों जूतों के फीते किसी ने एक साथ बाँध दिए थे. मैं शुक्र मना रहा था कि उठकर खड़ा नहीं हुआ. वर्ना गिरता धड़ाम से नीचे. कुर्सी के नीचे झुककर देखा तो पांचवें नन्हें जीभ चिड़ा रहे थे. सोचा ये बच्चे तो शैतानों के भी बाप हैं)
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
कैलाश शर्मा- सन्देश देना तो नेताओं का काम है. मानवीय संबंधों की विसंगातियों और समाज में व्याप्त बुराइयों को इंगित करना और अपने मन के भावों की अभिव्यक्ति ही मेरे लेखन का कारण है. बाल कविताओं के माध्यम से रोचक ढंग से बच्चों में अच्छे विचार डालना बच्चों के लिये लिखने का उद्देश्य है.
(अब मेरे कानों की शामत आई. छठे नन्हें मेरे कान खींचकर वहाँ से रफू-चक्कर हो गए. मन दुखी हो विचार करने लगा कि आज कहाँ से इन शैतान के रूपों के बीच फंस गया)
सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न."ब्लॉग पर हिंदी लेखन द्वारा क्या बच्चे, जो कल के युवा हैं, हिंदी की ओर आकर्षित होंगे?" इस विषय पर आप अपने विचार रखेंगे?
कैलाश शर्मा- अगर बाल मनोविज्ञान को समझते हुए बच्चों के लिये रोचक विषयों पर सृजन किया जाये तो यह निश्चय ही उन्हें हिंदी की ओर आकर्षित करेगा.
(अब मन में विशवास हो चुका था कि बच्चे भगवान के नहीं बल्कि शैतान के रूप हैं. कैलाश शर्मा जी विदा लेने के लिए खड़ा ही होनेवाला था कि सारे शैतान एक साथ हाज़िर हो गए और मेरे सीने से लिपट गए और तोतली जबान में बोले "भैया बुला न मानो ओली है." उनका निश्छल प्रेम देखकर फिर अनुभव होने लगा कि बच्चे भगवान का रूप ही होते हैं. कैलाश जी व बच्चों से रंगों का आदान-प्रदान कर उन्हें आगामी होली की शुभकामनाएँ दीं तथा कैलाश शर्मा जी को उनके बाल संसार में छोड़कर चल दिया किसी और हिन्दी ब्लॉगर के संसार में घुसपैठ करने को)
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