उभारो की सनक इंडिया टुडे में तेज गति से फ़ैल रही है । आखिर क्या मकसद है थोडा सा समझ से परे है । मीडिया का गिरता ग्राफ -घटिया सोच उभारो की सनक पैदा कर रहा है । ऐसे लेखो का जन्मदाता कौन है । आखिर क्यों सनक पैदा हो जाती है । क्या यह पागलपन है । जब मैंने मीडिया दलाल शुरू किया , देश के बड़े बड़े पत्रकारों के फ़ोन आये अरे यार ये मीडिया के आगे दलाल क्यों लगा दिया कुछ और लगा लेते तो अच्छा भी लगता है आपने तो पूरी पत्रकार जगत को दलाल बना दिया ।.
जब मीडिया दलाल के बारे में विचार कर रहा था तभी दिमाग में मीडिया के धूर्त पत्रकारों की छवि उभर कर सामने आयी थी जो पैसे के लिए अपने जमीर को नीलाम करने पर उतारू है । नेताओ ने तो देश को बेच रहे है मगर मीडिया अपने आप को ही बेच रहा है । हर बार बेचने का रूप बदलता रहा है । मीडिया की बाजार में हर बिकने को तैयार है मगर ग्राहक तो मिले यार? खैर शुक्रगुजार हु उन पत्रकारों का जो अपना जमीर नहीं बेच रहे है कम पैसे में जिन्दगी बसर कर रहे है?
मुझे मालूम है आने वाला समय पत्रकारिता का नहीं बल्कि दलालों का होगा जो खुले आम मीडिया की कालाबाजारी करेगे ,चाहे उसके लिए अपना घर - सम्मान सब कुछ खोना पड़े । आखिर वो है तो दलाल पत्रकार ।
Editor - Sushil Gangwar
Mediadalal.com
इंडिया टुडे में दिलीप मंडल के ‘उभार’ पर चौंकाता है अजीत अंजुम का व्यंग्यबाण
Sabhar- Mediadarbar.com
दिलीप मंडल इन दिनों एक बार फिर चर्चा में हैं। पत्रकार नहीं, फेसबुक ऐक्टिविस्ट नहीं संपादक दिलीप मंडल। देश की सबसे ज्यादा बिकने वाली पत्रिका के संपादक की कुर्सी पर बैठने के बाद वे एक बार फिर थर्ड मीडिया के निशाने पर हैं। इंडिया टुडे के ताज़ा अंक के कवर पर उन्होंने एक महिला के वक्ष की तस्वीर क्या लगा दी, बवाल मच गया।
फेसबुक पर तथाकथित मनुवादी (अभिसेक्स मनु से संबंधित नहीं) मीडिया का असली चेहरा सामने लाने के बाद और मीडिया का अंडरवर्ल्ड जैसी किताब लिखने के कारण दिलीप मंडल ने जो पहचान बनाई थी उसे उन्होंने खुद ही बदल डाला था इंडिया टुडे के संपादक की कुर्सी संभाल कर।
हमेशा 5000 मित्रों (निंदक भी) और हजारों फॉलोवर्स से लबालब भरे रहने वाला उनका फेसबुक अकाउंट जिसपर वे दिनरात अकड़ के साथ अपने मित्रों को अनफ्रेंड करने की धमकी देते, क्रांतिकारी बहस करते रहते थे, वो रातोंरात लापता हो गया। किसी ने कहा, हैक हो गया, किसी ने कहा फेसबुक ने बैन कर दिया तो किसी ने राज खोला कि दिलीप मंडल ने खुद ही उसे खत्म कर दिया। जितने अकाउंट उतनी चर्चाएं। उनके निंदकों ने तो यहां तक कह डाला कि जिस ब्राह्मणवाद के विरोध के दम पर उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी, उसी के प्रतीक एक ब्राह्मण संपादक की सिफारिश हासिल कर उन्होंने इंडिया टुडे में नौकरी पाई।
खैर तब की तब थी, अब ताज़ा खबर ये है कि दिलीप मंडल के संपादकीय नेतृत्व में इंडिया टुडे ने देश में तेजी से बढ़ते ब्रेस्ट इंप्लांट या प्लास्टिक सर्जरी के ट्रेंड पर एक अंक प्रकाशित किया है। खबर सरसरी तौर पर कुछ डॉक्टरों के ऐडवरटोरियल जैसा है, जिसमें मुद्दे पर कम, और डॉक्टरों के क्लीनिक पर ज्यादा चर्चा की गई है। ज़ाहिर सी बात है कि जब ब्रेस्ट सर्जरी की बात होगी तो फूल-पत्तियों या फिल्मस्टार अथवा संसद की तस्वीर तो नहीं ही छपेगी। उधर थर्ड मीडिया में ये अंक खूब प्रचारित है।
यहां तक कि न्यूज़-24 के सर्वेसर्वा अजीत अंजुम भी उनपर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने से पीछे नहीं रह पाए। अजीत अंजुम ने फेसबुक पर लिखा है, ‘‘आप क्यों चाहते हैं कि केबिन और कुर्सी से दूर रहने पर दिलीप जी जो बोलते रहे हैं , वहीं संपादक के पद पर पदायमान होने पर भी बोलें ….उनकी चिंता और चिंतन में देश है ..समाज है ..दलित विमर्श है …मीडिया का पतन है …कॉरपोरेटीकरण है …लेकिन आप क्यों चाहते हैं कि जब वो इंडिया टुडे निकालें तो इन्हीं बातों का ख्याल भी रखें ….और आप कैसे मानते हैं कि ‘उभार की सनक’ जैसी कवर स्टोरी इन सब पैमाने पर खड़ी नहीं उतरती….”
उन्होंने आगे लिखा है, ‘‘वैसे भी दिलीप जी इसमें क्या कर लेते …इंडिया टुडे में नौकरी करते हैं न , फेसबुक पर ज्ञान वितरण समारोह थोड़े न कर रहे हैं …हद कर रखी है लोगों ने ….विपक्ष से सत्ता पक्ष में आ गए हैं लेकिन आप चाहते हैं कि अभी भी नेता विपक्ष की तरह बोलें -लिखें …गलती तो आपकी है कि आप दुनियादारी समझने को तैयार नहीं …दिलीप जी का क्या कसूर ….. हमने तो दिलीप जी रंग बदलते देखकर भी कुछ नहीं देखा है और आप हैं कि पुराने रंग भूलने को तैयार ही नही हैं ….अरे भाई , वक्त बदलता है …मौसम बदलता है …मिजाज बदलता है …रंग बदलता है तो दिलीप जी न बदलें”
ये कमेंट थोड़ा चौंकाने वाला था। ये वही अजीत अंजुम हैं जो कभी अपने कार्यक्रम ‘सनसनी’ में देश भर के ढोंगी बाबाओं की पोल खोल कर भारी प्रशंसा बटोर चुके थे और अब अपने चैनल के लिए निर्मल बाबा की टीआरपी के साथ-साथ विज्ञापन की भी ‘किरपा’ बटोर रहे हैं। कहने का यतलब ये नहीं कि अजीत अंजुम का व्यंग्य गंभीर नहीं था, लेकिन ये हर पाठक को सोचने को मजबूर जरूर कर रहा है कि खुद मौकापरस्ती की नाव पर सवार होने वाले को दूसरे की ‘अवसरवादिता’ पर उंगली उठाने का क्या हक़ है?
दिलीप मंडल पत्रकारिता ही नहीं, फेसबुक और सोशल नेटवर्किंग साइटों के पुराने खिलाड़ी हैं। वे तीनों मीडिया में काम कर चुके हैं। इंडिया टुडे में यह उनकी दूसरी पारी है। वे सीएनबीसी चैनल और एक बड़े मीडिया घराने के पोर्टल के लांचिंग टीम में अहम भूमिकाएं निभा चुके हैं। सूत्रों का कहना है कि इस बार भी ये खेल बिना उनकी मर्ज़ी के नहीं हो रहा है। चाहे निंदा के तौर पर ही सही, इंडिया टुडे के इस ताज़ा अंक ने वो लोकप्रियता बटोर ली है जो पाठकों को बुक स्टॉल से पत्रिका खरीदने पर मज़बूर जरूर कर रही है। शायद यही दिलीप मंडल भी चाहते हैं।
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