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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

नए पत्रकारों की जमात - सुशील गंगवार

नए पत्रकार नहीं जानते कि लेख कैसे लिखा जाता है ,जो मन में आता लिख देते है ऐसे ही एक युवा पत्रकार है राहुल कुमार जो बिहार के बेगुसराय ज़िले के निवासी हैं पिछले कुछ सालो से डेल्ही में रह रहे है । अभी दो महीने पहले इनके दिल दिमाग में पत्रकार बनने का सपना आया । आवेश में आकर http://www.vichar.bhadas4media.com/ को एक लेख लिखकर भेज दिया ।
लेख का शीर्षक रखा है मैं मर्द हूं, तुम औरत, मैं भूखा हूं, तुम भोजन!! लेख कि भाषा इतनी घटिया है कि कुछ नहीं कहा जा सकता है । लेख का सारांश निकाला जाये तो ये जनाव तो औरतों को पैर की जूती समझते है । लेख का मजबून कुछ इस तरह है
मैं भेड़िया, गीदड़, कुत्ता जो भी कह लो, हूं। मुझे नोचना अच्छा लगता है। खसोटना अच्छा लगता है. मुझसे तुम्हारा मांसल शरीर बर्दाश्त नहीं होता. तुम्हारे उभरे हुए वक्ष॥ देखकर मेरा खून रफ़्तार पकड़ लेता हूं. मैं कुत्ता हूं. तो क्या, अगर तुमने मुझे जनम दिया है. तो क्या, अगर तुम मुझे हर साल राखी बांधती हो. तो क्या, अगर तुम मेरी बेटी हो. तो क्या, अगर तुम मेरी बीबी हो. तुम चाहे जो भी हो मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता. मेरी क्या ग़लती है? घर में बहन की गदरायी जवानी देखता हूं, पर कुछ कर नहीं पाता. तो तुमपर अपनी हवस उतार लेता हूं. घोड़ा घास से दोस्ती करे, तो खायेगा क्या? मुझे तुम पर कोई रहम नहीं आता. कोई तरस नहीं आता. मैं भूखा हूं. या तो प्यार से लुट जाओ, या अपनी ताक़त से मैं लूट .
राहुल ने अपनी भड़ास रिश्तो को भूल कर निकाली है । आगे लिखते है..............
पिछले साल तुम जैसी क़रीब बीस बाईस हज़ार औरतॊं का ब्लाउज़ नोचा हम मर्दों नें। तुम जैसे बीस बाईस हज़ार औरतों का अपहरण किया। अपहरण के बाद मुझे तो नहीं लगता हम कुत्तों, शेरों या गीदड़ों ने तुम्हे छोड़ा होगा. छोड़ना हमारे वश की बात नहीं. तुम्हारा मांस दूर से ही महकता है. कैसे छोड़ दूं. क़रीब अस्सी-पचासी ह़ज़ार तुम जैसी औरतों को घर में पीटा जाता है. हम पति, ससुर तो पीटते हैं ही, साथ में तुम्हारी जैसी एक और औरत को साथ मिला लिया है जिसे सास कहते हैं. और ध्यान रहे ये सरकारी रिपोर्ट है. तुम जैसी लाखों तो अपने तमीज़ और इज्ज़त का रोना रोते हो और एक रिपोर्ट तक फ़ाईल करवाने में तुम्हारी…. फट जाती है. तुम्हारे मां-बाप, भाई भी इज्ज़त की दुहाई देकर तुम्हे चुप करवाते हैं और कहते हैं सहो बेटी सहो. तुम्हारे लिये सही जुमला गढ़ा गया है, “नारी की सहनशक्ति बहुत ज़्यादा होती है.” तो फिर सहो।
मै ये कहना चाहुगा आजकल औरते मर्दों की गुलाम नहीं रही है वह सब जानती है अगर वह अपने पर आ जाये कुछ भी कर सकती है । औरत शक्ति का दूसरा रूप है । वह हमारी माँ - बहन भी हो सकती है । औरतों को कमजोर समझने वाला ही खुद मानसिक रूप से कमजोर है।
साक्षात्कार डाट काम

2 comments:

  1. Hame lagta hai aaj ke yuva patraakar aakhir kya likhna chahte hai.

    Rubi
    Journalist

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  2. Are Rahul ye kya likhte ho jo es kadar aurato ke khilap ho gaye ho. Kya naya Patrakaar bana hai . Bhai es roko likhne se ?

    Sanjeev Singh
    Mumbai

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