जयश्री राठौड़-----
पंचकूला के सेक्टर-१४ स्थित अकादमी भवन के सभागार में हरियाणा ग्रन्थ अकादमी की ओर से समकालीन कविता पर राष्टï्रीय संगोष्ठïी आयोजित की गई। संगोष्ठïी में वक्ताओं ने कविता को जनमानस से जोडऩे का आह्वïान किया। संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि कविता को बौद्धिक बना देने से कविता जनमानस से दूर होती जा रही है। कविता को समकालीन संदर्भो से जोडऩे पर वक्ताओं ने बार-बार बल दिया। इस राष्टï्रीय संगोष्ठïी की अध्यक्षता वरिष्ठï पत्रकार व दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने की। जबकि समकालीन कविता पर दिल्ली से आये प्रसिद्ध रचनाकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी व $गज़ल पर वरिष्ठï कवि डॉ. चन्द्र त्रिखा ने व्या्यस्रयान दिया। हरियाणा के वित्तायुक्त रमेन्द्र जाखू साहिल व श्रीमती धीरा खंडेलवाल का श्रोताओं से रू-ब-रू करवाया गया। लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने कहा कि कविता के माध्यम से सकारात्मक हस्तक्षेप किया जाना चाहिए और कविता व कवि अपने मोर्चों पर डट जाना चाहिए। कहा कि कविता को बौद्धिक बना दिया गया जिस कारण इसकी संपे्रषणीयता कम होती चली गई और आम आदमी से कटती जा रही है। कविता जनमानस दूर क्यों हुई यह चिंता का विषय है और बहस का मुद्दा है। इसके विपरीत $गज़ल लोगों को जोड़ रही है। उन्होंने आह्वïान किया कि सच्ची व अच्छी कविता लोगों तक पहुंचे। वरिष्ठï कवि डॉ. चन्द्र त्रिखा ने $गज़ल पर बातचीत करते हुए कहा कि सामंती परिवेश से निकल कर $गज़ल आम आदमी के सरोकारों से जुड़ गई है। इसकी लोकप्रियता का यह आलम है कि प्रादेशिक भाषाओं में भी $गज़ल लिखी जाने लगी है। उन्होंने कहा कि कविता में गहरी बात को सहज ढंग से कहा जा सकता है। बुलगारिया से आई रचनाकार मोना कौशिक ने विदेशों में हिन्दी की स्थिति पर प्रकाश डाला। वरिष्ठï रचनाकार रघुनाथ प्रियदर्शी की पुस्तक हरिहर की धरती का विमोचन भी किया गया। दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हरियाणा ग्रन्थ अकादमी की यह राष्टï्रीय संगोष्ठïी सिर्फ समकालीन कविता तक सीमित नहीं रही, इसमें सभी काव्य विधाओं पर विचार चर्चा की गई। उनके अनुसार रामायण व गीता आज भी समकालीन हैं। रचनाकार संवेदनशील होता है। उसमें चित्रकार व छायाकार भी छिपे होते हैं। रचनाकार सामाजिक सरोकारों से जुड़ा होता है। उन्होंने कहा कि हिन्दी का आदर भाषा के तौर पर कम और व्यवसाय के तौर पर ज्यादा हो रहा है। कहा कि अभिनेता हिन्दी फिल्मों में काम करते हैं और साक्षात्कार के समय अंग्रेजी बोलते हैं। इस तरह वे खाना तो हिन्दी का खाते हैं लेकिन जुगाली अंग्रेजी की करते हैं। कौशल ने सुझाव दिया कि पाठ्यपुस्तकों में पुराने रचनाकारों के साथ साथ नये रचनाकरों की रचनाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। हिन्दी का स्वरूप न बिगाडऩे का आग्रह भी किया। हरियाणा की वित्तायुक्त धीरा खंडेलवाल ने अपनी रचना प्रक्रिया से परिचित करवाते हुए, हाइकू, मुकरियां व त्रिवेणी के साथ साथ मुक्तक भी प्रस्तुत किये। अपनी काव्य पुस्तकों मुखर मौन व तारों की तरफ में से रचनायें प्रस्तुत की और इनमें ये पंक्तियां खूब सराही गईं:
अबकी आना तो मुट्ठी भर हंसी ले आना
यह भी क्या जब भी आना, खाली हाथ आना
इसी प्रकार धीरा खंडेलवाल की ये पंक्तियां ध्यान आकर्षित कर गईं:
जो कह के गया, लौटूंगा तेरे पास हरदम
जाते वक्त तो मुड़ कर भी न देखा उसने।
वक्त चुराकर मिलते थे पहले,
अब मिले तो वक्त बर्बाद है।
हरियाणा के वित्तायुक्त व $गज़लकार रमेन्द्र जाखू ने रू-ब-रू में कहा कि कविता लिखना सीखने की नहीं बल्कि अहसास व अ यास की बात है। कविता लिखना सीख नहीं सकते। उन्होंने कहा कि सच व शायरी का आपस में सीधा सीधा संबंध है। उन्होंने अपना चर्चित शेर कहा:
जब दोस्त कह दिया है तो
फिर खामियां न देख
टुकड़ों में जो कुबूल हो
वो दोस्ती नहीं।
इसी प्रकार उन्होंने कहा:
मैं इतना खो गया था
खुदाओं की भीड़ में
असली खुदा पर
मेरी नज़र पड़ी ही नहीं।
डॉ. मुक्ता ने बताया कि ग्रन्थ अकादमी हरियाणा के अनेक नगरों में संगोष्ठिïयां आयोजित कर चुकी है जबकि पंचकूला में अकादमी भवन में पहली राष्टï्रीय संगोष्ठïी है। संगोष्ठïी में राजवीर देसवाल, राधेश्याम शर्मा, सुधीर शर्मा, डॉ. श्याम सखा श्याम, सुखचैन सिंह भंडारी, सुभाष रस्तोगी, रघुनाथ प्रियदर्शी, ज्ञान चन्द्र शर्मा, योजना रावत, बी.डी.कालिया हमदम, रश्मि, नीलम, मोनिका, उर्मिल सखी, एस कौशिक, प्रेम विज, इन्द्रा रानी राव, वी.पी.एस. राव आदि रचनाकार मौजूद थे।
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