सुप्रिया रॉय
नई दिल्ली, 30 जून- अभी तक माओवादियों ने तीन सौ से ज्यादा सुरक्षाकर्मी मार दिए हैं मगर मारे गए माओवादियों की संख्या 110 से ज्यादा नहीं है। ऑपरेषन ग्रीन हंट फेल हो गया है और सबसे खतरनाक बात यह है कि सीआरपीएफ के हजारों जवानों और अधिकारियों ने एक साथ छुट्टी के आवेदन और उनकी मंजूरी नहीं होने पर त्याग पत्र तक की धमकी दे डाली है। यह संयोग नहीं हैं कि माओवादियों के सबसे ज्यादा हमले छत्तीसगढ़ में हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ की पुलिस और सीआरपीएफ का तालमेल सबसे दयनीय है और राज्य पुलिस के सिपाही सबसे कम मारे गए हैं। माओवादियों की तरह से खबर दी गई है कि उन्होंने लालगढ़ की मुठभेड़ का बदला लिया है। बस्तर इलाके में दंतेवाड़ा से 175 किलोमीटर दूर माओवादियों ने अपने शिविर में वापस लौट रही सीआरपीएफ टुकड़ियों पर दो हमले किए। इतनी बार मार खाने के बावजूद सीआरपीएफ के लोगों ने अब तक यह सबक नहीं लिया हैं कि वे आने जाने में सावधानी बरते। ये दोनों टुकड़िया भी जिस रास्ते से गई थी उसी से वापस लौट रही थीं।इन दोनों मुठभेड़ो मे छत्तीसगढ़ पुलिस का एक 3500 रुपए महीने पाने वाला स्पेशल पुलिस ऑफिसर गाइड था और वह भी मारा गया। माओवादियों ने पहली बार दोपहर में सीआरपीएफ टुकड़ियों पर हमला किया है। यह भी पहली बार हुआ है कि इस हमले में सुरंग बिछा कर विस्फोट करने का सहारा नहीं लिया गया। मुठभेड़ों के बाद जरूर इलाके में सुरंगों की तलाशी की जानी शुरू थी। छत्तीसगढ के गृह मंत्री ननकी राम, राम कवंर इतने लापरवाह निकले की यह सूचना खुद मुख्यमंत्री रमन सिंह ने फोन कर के दी। उधर देश के गृह मंत्री पी चिदंबरम को कश्मीर में सीआरपीएफ जानवर नजर आ रही है और झूठी मुठभेड़ो के मामले में वे वही भाषा बोल रहे हैं जो कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला बोल रहे थे। अभी अभी पाकिस्तान से लौटे चिदंबरम ने सबसे पहले तिरुपति और उसके बाद मदुरै और उसके बाद श्रीनगर और सोपोर जाने का फेैसला तो कर लिया मगर नारायणपुर उनकी सूची में कहीं नहीं था जहां माओवादियों ने इतना बड़ा तमाशा खड़ा किया है और लाशे गिराई हैं।
साभार -www.datelineindia.com
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