डा. संतोष मानव
अपन इतनी अंग्रेजी तो जानते ही हैं कि कह सकें - शटअप, मिस्टर जेठमलानी! : छोटा था। चौथी-पांचवीं का स्टूडेंट। पांच-छह किलो का बोझ लादे स्कूल जाता। लौटता। बस्ता पटकता, और भागता। अपने सहपाठियों, दोस्तों की महफिल में शामिल होने। घंटों की बैठक, जिसका कोई एजेंडा नहीं होता था। बस, बतकही-दुनिया भर की बातें। अपन राम ज्ञानी अब भी नहीं हैं। उस समय तो खैर पूरे अज्ञानी थे। ऐसे कि हमारे लिए दुनिया का सबसे अमीर आदमी बिल गेटस या वारेन बफेट, ब्रुनेई का सुल्तान, टाटा, बिड़ला, अंबानी जैसे लोग कतई नहीं थे।
दुनिया का बड़ा आदमी हमारे लिए हमारे शहर के दो-चार करोड़ की हैसियत वाले सेठ मुरली भदानी या सुरेश झांझरी थे। तब भी अपन राम, राम जेठमलानी को जानते थे। सोचते थे कि आखिर श्री जेठमलानी कितने बड़े वकील होंगे, अपने शहर से थोड़ी दूर स्थित कोडरमा अनुमंडल कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले यमुना बाबू वकील या पन्नालाल जोशी जैसे। तब अनुमान नहीं लगा पाता था, पूरा, सटीक अनुमान तो खैर आज भी नहीं है, लेकिन पत्रकारिता में 25 साल चप्पल रगडऩे के बाद इतना तो पता हो गया है कि जेठमलानी साहब वकील चाहे जितने बड़े हों, नेक इंसान कतई नहीं हैं। ऐसे हैं कि जिनके लिए पैसा ही भगवान है। अपनी गंवई भाषा में कहें तो कफनचोर।
अपन विषयांतर नहीं होते, मूल बात यह कि श्री जेठमलानी को दुनिया जानती है, वे नामी वकीलों महेश और रानी जेठमलानी के पिता, खुद बेटा-बेटी से भारी वकील, पार्ट टाइम राजनेता और न जाने क्या-क्या हैं? अपराधियों-आतंकवादियों के पैरौकार। माफियाओं के वकील। हर्षद मेहताओं, इंदिरा गांधी के हत्यारों के पैरवीकार। कभी भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष भी थे। उस समय उपाध्यक्ष थे, जब अध्यक्ष अपने अटलजी हुआ करते थे। संसद में रहे, कभी इस तो कभी उस पार्टी से। स्टांप घोटाले में जेल की हवा खा रहे अनिल गोटे के सलाहकार भी थे। अपन ने दोनों की संयुक्त प्रेस कांफ्रेस कवर की है। जेठमलानी साहब मंत्री भी बने, वह भी कानून मंत्री। यह भी अपने देश में ही संभव है कि रोज कानून का मखौल उड़ाने वाला कानून मंत्री बन जाए पर जेठमलानी साहब बने और शान से रहे।
अपन भटक गए। विषय प्रोफाइल बताना नहीं था, यह बताना था कि स्टार न्यूज के एक कार्यक्रम में दीपक चौरसिया के सवाल पर वे भडक़ गए। बेचारे दीपक ने यह पूछ लिया था कि आप राज्यसभा में जाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, कभी यह तो कभी वह पार्टी, आप आतंकवादी अफजल की भी पैरवी कर सकते हैं, ऐसे ही कुछ सवाल। बस, जेठमलानी साहब भडक़ गए। बकने लगे-तुम बेवकूफ हो, बिकाऊ हो, कांग्रेस पार्टी ने पूरी मीडिया को खरीद लिया है, तुम लोग अंग्रेजी नहीं जानते, निकल जाओ नहीं तो गार्ड धक्के मार कर निकाल देगा। ऐसे ही शब्द। अपने दीपक भाई सुनते रहे। करते भी क्या, अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई में सिखाया जाता है कि बोलो नहीं, बस लिखो, दीपक बाबू दृश्य मीडिया में हैं इसलिए कह सकते हैं कि दिखाओ। अपनी नौकरी झगडऩे की नहीं है, सहने की है, इसलिए सहना पड़ता है। साफ-साफ कहना हो तो अपनी चलती भाषा में यह भी कहा जा सकता है कि यह साली नौकरी ही ऐसी है।
अंत में-माना टुकड़ों में पत्रकारिता बिकाऊ है जेठमलानी साहब, लेकिन इतनी नहीं कि कोई राम जेठमलानी उसे बिकाऊ कहे। और यह भी कि अपन न अंग्रेज हैं और न अंग्रेज की औलाद। हिंदुस्तान में रहते हुए भी इतनी अंग्रेजी तो जानते ही हैं कि कह सकें - शटअप, मिस्टर जेठमलानी!
लेखक डा। संतोष मानव वरिष्ठ पत्रकार हैं.
दुनिया का बड़ा आदमी हमारे लिए हमारे शहर के दो-चार करोड़ की हैसियत वाले सेठ मुरली भदानी या सुरेश झांझरी थे। तब भी अपन राम, राम जेठमलानी को जानते थे। सोचते थे कि आखिर श्री जेठमलानी कितने बड़े वकील होंगे, अपने शहर से थोड़ी दूर स्थित कोडरमा अनुमंडल कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले यमुना बाबू वकील या पन्नालाल जोशी जैसे। तब अनुमान नहीं लगा पाता था, पूरा, सटीक अनुमान तो खैर आज भी नहीं है, लेकिन पत्रकारिता में 25 साल चप्पल रगडऩे के बाद इतना तो पता हो गया है कि जेठमलानी साहब वकील चाहे जितने बड़े हों, नेक इंसान कतई नहीं हैं। ऐसे हैं कि जिनके लिए पैसा ही भगवान है। अपनी गंवई भाषा में कहें तो कफनचोर।
अपन विषयांतर नहीं होते, मूल बात यह कि श्री जेठमलानी को दुनिया जानती है, वे नामी वकीलों महेश और रानी जेठमलानी के पिता, खुद बेटा-बेटी से भारी वकील, पार्ट टाइम राजनेता और न जाने क्या-क्या हैं? अपराधियों-आतंकवादियों के पैरौकार। माफियाओं के वकील। हर्षद मेहताओं, इंदिरा गांधी के हत्यारों के पैरवीकार। कभी भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष भी थे। उस समय उपाध्यक्ष थे, जब अध्यक्ष अपने अटलजी हुआ करते थे। संसद में रहे, कभी इस तो कभी उस पार्टी से। स्टांप घोटाले में जेल की हवा खा रहे अनिल गोटे के सलाहकार भी थे। अपन ने दोनों की संयुक्त प्रेस कांफ्रेस कवर की है। जेठमलानी साहब मंत्री भी बने, वह भी कानून मंत्री। यह भी अपने देश में ही संभव है कि रोज कानून का मखौल उड़ाने वाला कानून मंत्री बन जाए पर जेठमलानी साहब बने और शान से रहे।
अपन भटक गए। विषय प्रोफाइल बताना नहीं था, यह बताना था कि स्टार न्यूज के एक कार्यक्रम में दीपक चौरसिया के सवाल पर वे भडक़ गए। बेचारे दीपक ने यह पूछ लिया था कि आप राज्यसभा में जाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, कभी यह तो कभी वह पार्टी, आप आतंकवादी अफजल की भी पैरवी कर सकते हैं, ऐसे ही कुछ सवाल। बस, जेठमलानी साहब भडक़ गए। बकने लगे-तुम बेवकूफ हो, बिकाऊ हो, कांग्रेस पार्टी ने पूरी मीडिया को खरीद लिया है, तुम लोग अंग्रेजी नहीं जानते, निकल जाओ नहीं तो गार्ड धक्के मार कर निकाल देगा। ऐसे ही शब्द। अपने दीपक भाई सुनते रहे। करते भी क्या, अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई में सिखाया जाता है कि बोलो नहीं, बस लिखो, दीपक बाबू दृश्य मीडिया में हैं इसलिए कह सकते हैं कि दिखाओ। अपनी नौकरी झगडऩे की नहीं है, सहने की है, इसलिए सहना पड़ता है। साफ-साफ कहना हो तो अपनी चलती भाषा में यह भी कहा जा सकता है कि यह साली नौकरी ही ऐसी है।
अंत में-माना टुकड़ों में पत्रकारिता बिकाऊ है जेठमलानी साहब, लेकिन इतनी नहीं कि कोई राम जेठमलानी उसे बिकाऊ कहे। और यह भी कि अपन न अंग्रेज हैं और न अंग्रेज की औलाद। हिंदुस्तान में रहते हुए भी इतनी अंग्रेजी तो जानते ही हैं कि कह सकें - शटअप, मिस्टर जेठमलानी!
लेखक डा। संतोष मानव वरिष्ठ पत्रकार हैं.
साभार - भड़ास ४ मीडिया .कॉम
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