कितने में बिके सहारनपुर के बड़े अखबारों के पत्रकार? : यूपी के सहारनपुर जिले में जो कुछ हुआ, उसे सुनकर आप कांप जाएंगे. लगभग एक पखवाड़े पूर्व बेहट रोड पर शाकुम्भरी देवी दर्शन कर लौट रहे श्रद्धालु नवदम्पत्ति को स्थानीय बसपा एमएलसी के पुत्र ने साथियों संग रोक लिया. ये एमएलसी पुत्र व उनके साथी मौज-मस्ती के इरादे से घूम रहे थे. इन लोगों ने पति को उसकी बाईक से बांध कर सड़क किनारे डाल दिया. इसके बाद सत्ता के नशे में चूर साहबजादों ने नवविवाहिता को जबरन कार में डालकर मुंह काला किया. इसी दौरान वहां से सेना के कर्नल गुजर रहे थे.
कर्नल की नजर सड़क किनारे बंधक बाईक सवार पर पड़ी. उन्होंने उसे बंधन मुक्त कराया. फिर कार सवार युवकों का पीछा किया. कर्नल ने युवती को सफेदपोश भेडियों से मुक्त कराया. बताया जाता है कि सत्ता के नशे में चूर बसपा एमएलसी के पुत्र ने सेना के जवानों पर फायर भी झोंका. बस फिर क्या था, सेना के जवानों ने एमएलसी पुत्र की जमकर ठुकाई तो की ही, साथ ही अपनी गिरफ्त में ले लिया, जिसे काफी मान-मनौव्वल के बाद दो दिन बाद रिहा किया गया. पीड़ित नवदम्पत्ति ने पुलिस के सामने भी दुखड़ा रोया मगर सत्ता से जुड़े होने के कारण पुलिस ने उलटे पीड़ितों को चुप रहने मे भलाई की सीख देकर चलता कर दिया. हैरत तो तब हुई जब घटना के अगले दिन सहारनपुर जनपद भर के सभी छोटे बड़े अखबारों में यह दर्दनाक घटना पूरी तरह नदारद मिली.
केवल सहारनपुर से प्रकाशित छोटे हिंदी दैनिक 'देश दुलारा' ने घटना का खुलासा किया और इस प्रकार पत्रकारिता की इज्जत रख साहसिक कार्य किया. इस अखबार को डा. सुकेश शर्मा चलाते हैं. उन्होंने निर्भीकता से पूरे दर्दनाक वाकये को प्रकाशित किया. लोगों का कहना है कि मीडिया ने एमएलसी के पुत्र के काले कारनामो को घूस खाकर हजम कर लिया. इस दिल दहलाने वाली घटना को अखबारों में न पाकर जनमानस पत्रकारिता पर थू थू करता नजर आया. चर्चा है कि खनन माफिया और एमएलसी ने करोड़ों रुपये खर्च कर प्रशासन के साथ सहारनपुर की मीडिया को भी खरीद लिया था. कई दिन तक नगर के लीडिंग अखबार विपक्षियों द्वारा दी गई विज्ञप्तियों तक की अनदेखी करते रहे.
इस मुद्दे को उठा रहे 'वंदेमातरम' के संस्थापक विजयकांत चौहान का कहना है कि यदि घटना असत्य है तो एमएलसी जनता के समक्ष अपनी सफाई पेश क्यों नहीं करते. बताया जाता है कि इस घटना के पीड़ित नवदम्पत्ति भी भयभीत होकर भूमिगत हो गये हैं. उन्हें भी मुंह बन्द रखने की मोटी कीमत दिये जाने के आफर दिये जा रहे हैं. इस घटना ने पत्रकारिता को शर्मसार कर दिया है और निष्पक्षता गुजरे जमाने की बात होकर रह गई है. चौथा स्तम्भ भी अन्य स्तम्भों की भांति लड़खड़ाता नजर आ रहा है.
रविन्द्र चौधरी ,स्वतंत्र पत्रकार
देवबंद
सहारनपुर
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बिक गए या डर गए ये बड़े अखबार!
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