
दीपक चौरसिया पत्रकारिता की नब्ज पकड़ना जानते है . स्टार टीवी पर एंकर हंट के जरिये एंकर का चुनाव करना इनता आसान नहीं है. भारतीय मीडिया में बिना जुगाड़ के कुछ भी हासिल नहीं होता है. एंकर हंट का सबसे बड़ा मुद्दा जहा एंकर का चुनाव करना है परन्तु यह कह पाना मुश्किल है कि एंकर हंट कितना ठीक होगा . मै किसी के ऊपर ऊँगली नहीं उठा रहा हू। यह मीडिया का कटु सत्य है. प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया में कुछ ऐसे पत्रकार है , असल में वह पत्रकारिता के बारे में कुछ भी नहीं जानते है . फिर भी अच्छे चेन्नल और अखबार में काम कर रहे है. मेरा अनुभव अच्छा नहीं है ,सत्य कहने की गन्दी आदत है . मै एक दिन प्रेस कांफेरेंस में पंहुचा तो एक युवा पत्रकार से परिचय हुआ. पत्रकार महोदय हकले और तोतले थे. वह ठीक से अपना नाम भी नहीं बोल पा रहा था. मै अक्सर बड़े ग्रुप के पत्रकारों से परिचय करने से नहीं चूकता हू. मैंने सोचा यार देखो क्या कमाल है . बड़े ग्रुप के टीवी -चेन्नल भी हकले , तोतले ,बदसूरत एंकर और रिपोर्टर को नौकरी दे देते है . अगर आकलन किया जाये तो ऐसे पत्रकारों की भीड़ लगी है. आखिर H . R Department किस आधार पर नौकरी दे देता है . सब जुगाड़ की कहानी है . इसमे एंकर हंट कितना ठीक होगा, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा ?
No comments:
Post a Comment