पश्चिम बंगाल एवं बंगलादेश के सीमा से सटा है झारखण्ड राज्य का पाकुड़ जिला उच्च गुणवत्ता युक्त काला पत्थर यहाँ कि पहचान है यहाँ कि आदिवाशी स्त्रियों कि स्थिति भी पत्थरों कि तरह काली होती जा रही है पाकुड़ जिला पशु के साथ साथ लड़कियों कि तस्करी के लिए भी मुफीद होता जा रहा है चूँकि आदिवाशी लड़कियां पत्थर खदान मे काम करती हैं और यहाँ से ट्रकों मे पत्थर लादकर बंगलादेश ले जाया जाता है साथ ही दलाल द्वारा बहला फुसलाकर लड़कियों को भी बंगलादेश ले जाया जाता है और यहीं से शुरू होता हैं यौनशोषण एवं तस्करी का कारोबार
ऐसे एक नहीं सैकड़ों परिवार पाकुड़ जिले मे मिल जायेंगे जिसके घर से कोई न कोई लड़की गायब हुई हो चाहे उस लड़कियों को दलालों द्वारा महानगरों मे खरेलु नौकर के रूप मे बेच दिया गया हो या फिर शारीरिक शोषण के लिए बेचा गया हो
समय समय पर समाजसेवी संगठनों द्वारा इस ओर प्रसाशन का ध्यान भी दिलाया गया है लेकिन ढाक के तिन पात वाली कहावत चरितार्थ होती है प्रशाशन द्वारा खाना पूर्ति के अलावा और कुछ करने कि उम्मीद भी नहीं कि जा सकती हालाँकि पिछले साल मई महीने मे एक समाज सेवक एवं समाजसेवी संस्थानों के साथ मिलकर प्रशासन ने एक सेमीनार का भी आयोजन किया आखिर में स्वयंसेवी संस्थाओं की पहल पर इस मुद्दे पर पुलिस की कार्यशालायें हुईं और मानव तस्करी पर रोक लगाने के लिए बकायदा टास्क फोर्स का भी गठन किया गया। इन कोशिशों का ही नतीजा है कि इलाके में मानव तस्करी के मामले में कमी आई है लेकिन इसे जड़ से खत्म कहना अतिशयोक्ति होगी
असल में राज्य के पुलिस अधिकारी भी नहीं जानते कि लड़कियों की तस्करी के मामले में कानूनी प्रावधान क्या-क्या हैं। इममोरल ट्रैफिकिंग प्रिवेंशन एक्ट में कितनी कड़ी सजा का प्रावधान है, इसका अहसास भी इन पुलिस अधिकारियों को नहीं है तस्करों के फलने फूलने कि एक वजह ये भी है
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