आदरणीय यशवंत जी, संपादक, भड़ास4मीडिया, गाजीपुर पुलिस ने आपकी मां के साथ बीते दिनों जो अपमानजनक और अमानवीय व्यवहार किया था, वह अक्षम्य अपराध था और किसी भी दोषी पुलिसिये के खिलाफ कोई कार्रवाई आजतक नहीं हुई। यूपी पुलिस की हैकड़बाजी अब भी चालू है। और, पुलिसियों के इस नेक काम में बनारस के अखबार भी खुलकर साथ दे रहे हैं। आईजी राजेंद्रपाल सिंह की कार संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सामने से बुधवार को गुजर रही थी। तभी उनकी कार की एक मार्शल या बोलेरो से टक्कर हो गयी। एक पुलिस अधिकारी ने उतर कर न सिर्फ स्वयं गाड़ी चालक व उसके साथ बैठे युवकों को धुना बल्कि साथ चल रहे अर्दली पुलिसियों को ललकार कर युवकों को पिटवाया। पहले तो अर्दली टाइप पुलिसिये युवकों को थप्पड़ रसीद कर रहे थे तब अधिकारी ने ललकार कर कहा-लाठियों से पीटो।
इस पर थप्पड़ रसीद कर थक चुके पुलिसिये लाठियां लेकर युवकों पर पिल पड़े। युवक पैर पकड़कर माफी मांग रहे थे, गिड़गिड़ा रहे थे खूने-खून हो रहे थे पर उक्त अफसर और पुलिसियों का मन इतने से ही नहीं भरा। चारों ओर ट्रैफिक जाम और दो निहत्थे युवकों पर पुलिसियों का कहर जारी था। सभी किंकर्तव्यविमूढ़ हो दंभी और जवांमर्द पुलिस अफसर और उसके मातहत के अर्दलियों का यह आतंकी रूप दांतों तले ऊंगलियां दबाकर देख रहे थे। उक्त दंभी अफसर का मन इतने से ही नहीं भरा। उसने मातहत पुलिसियों को डांटते हुए कहा-इन्हें थाने ले जाकर और तोड़ो। दोनों युवकों को बोरे की तरह एक पुलिस की गाड़ी में पटककर ले जाया गया। थाने के अंदर क्या हाल हुआ, वे युवक ही जानें। हां, उन्हें मंडलीय अस्पताल ले जाकर कानूनी खानापूरी के नाम पर मेडिकल जरूर कराया गया ताकि पुलिसिये अदालत के चक्कर में न पड़ जाएं। बाद में दोनों युवकों अवधेश और राजेश का धारा 34 के तहत चालान कर दिया गया।
यह तो हुई महज एक घटना। मगर खबर अभी पूरी नहीं हुई है। यह घटना जहां हुई ठीक वहीं पर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय है जहां पत्रकारिता विभाग है और यहां काफी पत्रकार आते हैं। उसके बगल में ही अमर उजाला का सिटी कार्यालय है जहां हर रोज संपादक जी सिटी रिपोर्टरों की मीटिंग लेते हैं और वहीं पर हिंदुस्तान अखबार का कार्यालय भी है जहां पत्रकारों का जमावड़ा लगा रहता है। अब बनारस के अखबारों की दलाली का दृश्य देखें। शशिशेखर की प्रमुखी वाले अखबार हिंदुस्तान जिसके ठीक नाक के नीचे यह अभूतपूर्व, दिल दहलानेवाली और मानवता को तार-तार करने वाली घटना हुई, में एक लाइन खबर इस बाबत नहीं छपी। स्वयं को युवा मन का अखबार कहने वाले आई नेक्स्ट में भी इस बाबत एक लाइन खबर कहीं भी नहीं दिखी। शायद इस अखबार के क्राइम रिपोर्टर स्पाट पर जाकर रिपोर्टिंग करने में स्वयं को अपमानित महसूस करते होंगे।
अमर उजाला ने पेज 4 पर न्यूज डायरी वाले संक्षिप्त समाचारों के कालम में शीर्षक दिया ‘आईजी की कार को टक्कर मारी’। मानवता को शर्मसार करने वाली इस खबर को महज चार लाइनों में निपटाया गया। अमर उजाला अखबार जहां संपादक ‘समिट’ के नाम पर बड़े-बड़े बोल बोले जाते हैं और जिसके सिटी कार्यालय के सामने यह घटना हुई उसके बच्चा अखबार काम्पैक्ट ने पेज सात में बाक्स में छापा -‘आईजी के काफिले में घुसी कार’। इसमें कहीं भी पुलिस अधिकारी द्वारा मां.......बहन को लानत भेजते हुए, ललकार कर निहत्थे और निर्दोष युवकों की पिटाई का जिक्र तक नहीं है। विश्व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला अखबार का दावा करने वाले जागरण ने 'एक नजर' शीर्षक वाले संक्षिप्त कालम में शीर्षक दिया-’पुलिस अफसर की कार को टक्कर’। 13 लाइन की इस संक्षिप्त खबर में उसने इतना जरूर एहसान यह लिखकर किया- ‘युवकों ने बताया कि धक्के के चलते गुस्से से तमतमाए अधिकारी ने उन्हें पीटा भी।’
इन सारे अखबारों को पढ़ने के बाद जब हिंदुस्तान के एक कर्मचारी को यह खबर उसे उसके स्वयं के अखबार में पढ़ने को नहीं मिली तब उसने अपना दर्द ‘पूर्वांचल दीप’ के साथ साझा किया। अपने अखबार को कोसते हुए उसने यह पूरी घटना बयां की जो उस अफसर ने उन दो निहत्थे, निर्दोष, अपने प्राणों की भीख मांग रहे युवकों के साथ की थी और जिसे उसने खुद देखा था और जिस समाचार को उसका खुद का अखबार ’घोर कर पी गया था’। उस प्रत्यक्षदर्शी हिंदुस्तान कर्मी ने बताया कि पूरा का पूरा दोष आईजी के दंभी कार चालक का था। युवकों की रंचमात्र गलती नहीं थी पर उनके किस्मत में ही लात खाना था तो कोई क्या कर सकता था। सभी लोग काटो तो खून नहीं हालत में अफसर का यह निर्दयी कारनामा देख रहे थे।
आदरणीय यशवंत जी, आपको तो पता ही होगा कि बनारस के शीतला घाट पर पुलिसिया नाकामी के ही चलते भयानक बम विस्फोट हुआ और पूरा भारत दहल उठा। इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी आजतक किसी भी दोषी ऐसे अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। न ही विस्फोट का दोषी एक भी आदमी अबतक पकड़ा गया है। वैसे भी निहत्थे नागरिकों पर जो अफसर मां....बहन... करते हुए लाठियां बरसाए उनसे क्या आप लश्कर या इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों को पकड़ने की उम्मीद कर सकते हैं? ऐसे ही पुलिस अफसरों ने आपकी मां के साथ कोई दया नहीं दिखाई थी और बिना किसी दोष थाने पर रात भर बैठा रखा था।
यशवंत जी, ये पुलिसिये सदाजवान होकर पैदा हुए हैं। इनकी जवानी कभी नहीं जाती। और, शायद ये अफसर हमेशा ही ऐसे पद पर बने रहकर ही मरेंगे। इसीलिए पद और वर्दी का इतना गुरूर इन्हें रहता है। इन्हें पता नहीं है कि जवानी भी साथ छोड़कर चली जाती है जैसे आत्मा शरीर छोड़कर जाती है। जरा सोचिए इस भीषण सर्दी में उन दो निर्दोष नवयुवकों के साथ क्या बीती होगी और बीतेगी जब पुरवईया चलेगी और उनका रोम-रोम दुखेगा? क्या कभी भी अवधेश या राजेश और उनका परिवार और उस समय प्रत्यक्षदर्शी बनी जनता उस पुलिस अफसर और उन मुंछमुंडे पुलिसियों को माफ कर पाएगी? इस पाप का अंजाम शायद ये अफसर और सिपाही जानते नहीं हैं क्योंकि इन्हें पता नहीं है कि ‘अल्लाह की लाठी में कभी आवाज नहीं होती’।
पूर्वांचल दीप परिवार
www.purvanchaldeep.com
इस पर थप्पड़ रसीद कर थक चुके पुलिसिये लाठियां लेकर युवकों पर पिल पड़े। युवक पैर पकड़कर माफी मांग रहे थे, गिड़गिड़ा रहे थे खूने-खून हो रहे थे पर उक्त अफसर और पुलिसियों का मन इतने से ही नहीं भरा। चारों ओर ट्रैफिक जाम और दो निहत्थे युवकों पर पुलिसियों का कहर जारी था। सभी किंकर्तव्यविमूढ़ हो दंभी और जवांमर्द पुलिस अफसर और उसके मातहत के अर्दलियों का यह आतंकी रूप दांतों तले ऊंगलियां दबाकर देख रहे थे। उक्त दंभी अफसर का मन इतने से ही नहीं भरा। उसने मातहत पुलिसियों को डांटते हुए कहा-इन्हें थाने ले जाकर और तोड़ो। दोनों युवकों को बोरे की तरह एक पुलिस की गाड़ी में पटककर ले जाया गया। थाने के अंदर क्या हाल हुआ, वे युवक ही जानें। हां, उन्हें मंडलीय अस्पताल ले जाकर कानूनी खानापूरी के नाम पर मेडिकल जरूर कराया गया ताकि पुलिसिये अदालत के चक्कर में न पड़ जाएं। बाद में दोनों युवकों अवधेश और राजेश का धारा 34 के तहत चालान कर दिया गया।
यह तो हुई महज एक घटना। मगर खबर अभी पूरी नहीं हुई है। यह घटना जहां हुई ठीक वहीं पर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय है जहां पत्रकारिता विभाग है और यहां काफी पत्रकार आते हैं। उसके बगल में ही अमर उजाला का सिटी कार्यालय है जहां हर रोज संपादक जी सिटी रिपोर्टरों की मीटिंग लेते हैं और वहीं पर हिंदुस्तान अखबार का कार्यालय भी है जहां पत्रकारों का जमावड़ा लगा रहता है। अब बनारस के अखबारों की दलाली का दृश्य देखें। शशिशेखर की प्रमुखी वाले अखबार हिंदुस्तान जिसके ठीक नाक के नीचे यह अभूतपूर्व, दिल दहलानेवाली और मानवता को तार-तार करने वाली घटना हुई, में एक लाइन खबर इस बाबत नहीं छपी। स्वयं को युवा मन का अखबार कहने वाले आई नेक्स्ट में भी इस बाबत एक लाइन खबर कहीं भी नहीं दिखी। शायद इस अखबार के क्राइम रिपोर्टर स्पाट पर जाकर रिपोर्टिंग करने में स्वयं को अपमानित महसूस करते होंगे।
अमर उजाला ने पेज 4 पर न्यूज डायरी वाले संक्षिप्त समाचारों के कालम में शीर्षक दिया ‘आईजी की कार को टक्कर मारी’। मानवता को शर्मसार करने वाली इस खबर को महज चार लाइनों में निपटाया गया। अमर उजाला अखबार जहां संपादक ‘समिट’ के नाम पर बड़े-बड़े बोल बोले जाते हैं और जिसके सिटी कार्यालय के सामने यह घटना हुई उसके बच्चा अखबार काम्पैक्ट ने पेज सात में बाक्स में छापा -‘आईजी के काफिले में घुसी कार’। इसमें कहीं भी पुलिस अधिकारी द्वारा मां.......बहन को लानत भेजते हुए, ललकार कर निहत्थे और निर्दोष युवकों की पिटाई का जिक्र तक नहीं है। विश्व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला अखबार का दावा करने वाले जागरण ने 'एक नजर' शीर्षक वाले संक्षिप्त कालम में शीर्षक दिया-’पुलिस अफसर की कार को टक्कर’। 13 लाइन की इस संक्षिप्त खबर में उसने इतना जरूर एहसान यह लिखकर किया- ‘युवकों ने बताया कि धक्के के चलते गुस्से से तमतमाए अधिकारी ने उन्हें पीटा भी।’
इन सारे अखबारों को पढ़ने के बाद जब हिंदुस्तान के एक कर्मचारी को यह खबर उसे उसके स्वयं के अखबार में पढ़ने को नहीं मिली तब उसने अपना दर्द ‘पूर्वांचल दीप’ के साथ साझा किया। अपने अखबार को कोसते हुए उसने यह पूरी घटना बयां की जो उस अफसर ने उन दो निहत्थे, निर्दोष, अपने प्राणों की भीख मांग रहे युवकों के साथ की थी और जिसे उसने खुद देखा था और जिस समाचार को उसका खुद का अखबार ’घोर कर पी गया था’। उस प्रत्यक्षदर्शी हिंदुस्तान कर्मी ने बताया कि पूरा का पूरा दोष आईजी के दंभी कार चालक का था। युवकों की रंचमात्र गलती नहीं थी पर उनके किस्मत में ही लात खाना था तो कोई क्या कर सकता था। सभी लोग काटो तो खून नहीं हालत में अफसर का यह निर्दयी कारनामा देख रहे थे।
आदरणीय यशवंत जी, आपको तो पता ही होगा कि बनारस के शीतला घाट पर पुलिसिया नाकामी के ही चलते भयानक बम विस्फोट हुआ और पूरा भारत दहल उठा। इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी आजतक किसी भी दोषी ऐसे अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। न ही विस्फोट का दोषी एक भी आदमी अबतक पकड़ा गया है। वैसे भी निहत्थे नागरिकों पर जो अफसर मां....बहन... करते हुए लाठियां बरसाए उनसे क्या आप लश्कर या इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों को पकड़ने की उम्मीद कर सकते हैं? ऐसे ही पुलिस अफसरों ने आपकी मां के साथ कोई दया नहीं दिखाई थी और बिना किसी दोष थाने पर रात भर बैठा रखा था।
यशवंत जी, ये पुलिसिये सदाजवान होकर पैदा हुए हैं। इनकी जवानी कभी नहीं जाती। और, शायद ये अफसर हमेशा ही ऐसे पद पर बने रहकर ही मरेंगे। इसीलिए पद और वर्दी का इतना गुरूर इन्हें रहता है। इन्हें पता नहीं है कि जवानी भी साथ छोड़कर चली जाती है जैसे आत्मा शरीर छोड़कर जाती है। जरा सोचिए इस भीषण सर्दी में उन दो निर्दोष नवयुवकों के साथ क्या बीती होगी और बीतेगी जब पुरवईया चलेगी और उनका रोम-रोम दुखेगा? क्या कभी भी अवधेश या राजेश और उनका परिवार और उस समय प्रत्यक्षदर्शी बनी जनता उस पुलिस अफसर और उन मुंछमुंडे पुलिसियों को माफ कर पाएगी? इस पाप का अंजाम शायद ये अफसर और सिपाही जानते नहीं हैं क्योंकि इन्हें पता नहीं है कि ‘अल्लाह की लाठी में कभी आवाज नहीं होती’।
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