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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

राहुल देव काल से अनुरंजन झा काल, सीएनईबी का पतन काल




सीएनईबी रिपोतार्ज : सीएनईबी का एक वो जमाना था और एक ये. उस ज़माने में राहुल देव थे. इस ज़माने में अनुरंजन झा. राहुल देव का सरल और मिलनसार स्वभाव। सभी से हँस कर मिलते थे। उनके कार्यकाल में सभी कर्मचारियों के चेहरे पर हंसी-ख़ुशी थी। आज नये कर्मचारियों को अगर छोड़ दे तो सीएनईबी में सभी के चेहरे पर उदासी और श्मशान की मातमी छायी हुई है।

राहुल देव जी के समय चैनल की टीआरपी जितनी थी आज आधी रह गई है। चैनल के ऑनएअर से लेकर हाल के कुछ दिनों में चैनल की जितनी टीआरपी थी उसमें राहुल देव के संरक्षण में काम करने वाले सभी कर्मचारियों का योगदान था। किसी की चेहरे पर उदासी नहीं थी। लेकिन, अब चैनल का सूरज अस्तांचल की ओर ढलता दिखायी दे रहा है।


दरअसल, जब से अनुरंजन झा ने नये ‘सीओओ‘ के रूप में कार्यभार संभाला है, तबसे अक्सर टीम इंडिया की तरह मैदान पर लड़खड़ाती और पतझड़ की तरह विकेट गवाती टीम इंडिया की तरह सीएनईबी का हाल हो गया है। कब, किसका और कैसे विकेट गिर जाय, कहा नहीं जा सकता ? उन्होंने आते ही सतरंज की बाजी की तरह सह और मात देते हुए चैनल के मंत्री की कुर्सी छीन ली। और फिर अचानक से युद्ध के मैदान में कूद पड़े और उनके ग्रुप के लोगों का सफाया करते चले गये।

आउटपुट से आजतक न जाने कितने आउट हुए और कितनों ने किनारा हो लिया कुछ कहा नहीं जा सकता? इनपुट का भी हाल आउटपुट जैसा ही हो गया है। और, सबसे आश्चर्य जनक तब हुआ जब चैनल के टेकनीकल डिपार्टमेट से 22 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

आज हर बाजी उनकी हैं, हर चाल उनकी है। लेकिन, फिर भी आज न जाने क्यूँ जांहपना उखड़े - उखड़े से है ? जांहपना अनुरंजन झा जी की नियुक्ती कॉस्ट कटिंग और चैनल को आगे ले जाने के उद्देश्य से हुई है। कॉस्ट कटिंग के नाम पर इन्होंने जितने लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया, उससे कहीं ज्यादा अपने लोगों को उन्होंने रख लिया। रिर्पोटर और स्ट्रिंगर इस्तीफा दे कर दूसरी जगह नौकरी ढूंढ ली है या प्रयास कर रहे हैं।

पहले रिर्पोटर फील्ड में जा कर चार-पांच खबरे लाते थे आज के नये रिर्पोटर घर बैठकर, पीटीसी करते और ऑफिस के आ कर न्यूज रूम से लाईव करते है। रिपोर्टर ऐसे कि उन्हें पता नहीं किस विषय पर रिर्पोट करनी है और क्या पीटीसी देना है ? फील्ड में अगर कोई दूसरे चैनल का रिर्पोटर पीटीसी कर रहा होता है तब सीएनईबी का रिर्पोटर उस रिर्पोटर का मुंह ताकता है, कि आखिर क्या बोल रहा और किस विषय पर बोल रहा है?

दर्शक आज न्यूज चैनल, चैनल के हिसाब से नहीं, बल्कि उस चैनल को चलाने वाले व्यक्ति विशेष या एंकर के हिसाब से देखते है। चाहे वह आजतक छोड़कर स्टार न्यूज ज्वाइंन करने वाला दीपक चौरसिया हो या आईबीएन 7 के आशुतोष या फिर एनडीटीवी के पंकज पचौरी, विनोद दुआ, कमाल खां, या संजय अहिरवाल, या फिर जी न्यूज के पुण्य प्रसून वाजपेयी हो। तभी उन चैनलो की टीआरपी बनी हुई है। राहुल देव भी मीडिया जगत का एक जाना - पहचाना चेहरा हैं। लेकिन, आज सीएनईबी के पास ऐसा एक भी चैहरा नहीं जो सीएनईबी को आईना दिखा सके या सीएनईबी को समाज, आईना के रुप में देख सके।

बात रही अनुरंजन झा की, तो बीते चार-पांच सालों में इनके इतिहास को पलट कर देखा जा सकता है कि ये जिस भी मीडिया संस्थान में गये उसकी हालत खराब हो गई। रही बात दो-तीन और लोगों की तो वे सभी खोटा सिक्का हैं जिसका बाजार भाव कुछ भी नहीं। लेकिन, स्क्रीन पर पहले दिखना चाहते। लेकिन, उन्हें अब कौन समझाये कि हर चमकता हुआ चीज सोना या हीरा नहीं हो सकता। अनुरंजन झा जी सीएनईबी में रह कर टीवी पर दिखने की अपनी हसरत भले ही पुरी कर ले, इससे चैलन का कभी भला नहीं हो सकता, सिवाय बेड़ागर्क के।

राहुलदेव के समय में ही उन सभी कर्मचारियों से कहा गया था कि जिनका एक वर्ष पूरा हो गया है, या उससे ज्यादा उन सभी कर्मचारियों की तनख्वाह में इजाफा कर दिया जाएगा। यही बात अनुरंजन झा ने भी आते ही कहा कि,नवम्बर 2010 में सभी की तनख्वाह में इजाफा कर दिया जाएगा। लेकिन, कास्ट कटिंग के नाम पर केवल ट्रेनी स्टाफ के मासिक तनख्वाह में ही इजाफा किया गया। बाकी सीनियर स्टाफ को अचानक ही कह दिया गया कि, जब तक सीएनइबी की टीआरपी लाइव इंडिया से उपर नहीं चली जाती तब तक किसी भी कर्मचारियों के तनख्वाह में इजाफा नहीं किया जाएगा। 18 प्रतिशत महंगार्ह दर में कमचारी मन को मार किसी तरह काम कर रहे है। भाई, कोई तो अनुरंजन जी को समझाये कि टीआरपी कैसे आती है?

कोई भी फीड आती है बस उसे किसी तरह कटवा कर/एडिट कर चलवा दो। इस बात पर कभी बहस होती ही नहीं कि उस फीड को कैसे और किस दृष्टी से चलाया जाए। बस, अपने नम्बर बनाने और बढ़ाने के लिए कुछ भी कटवा कर चलवा दो। अगर प्रोग्राम, अच्छा हुआ तो आउटपुट वाले अपनी पीठ आप थपथपाते है। बेचारे एडिटर को किसी भी तरह का कोई क्रेडिट मिलता ही नहीं। अरे भाई, कोई तो बताये कि चैनल की टीआर अच्छी डिस्ट्रीब्यूसन से मिलती है। लेकिन, चैनल का ठीक डिस्ट्रीब्यूसन है ही नहीं। एक साफ्ट और हार्ड न्यूज को बार-बार चलाने से, एक ही प्रोग्राम को बार बार चलाने से टीआरपी आती है। न की, कोई भी फीड आये और उसे कटवा कर चला दो। किसी भी विषय पर शोध करने की कोई जरुरत ही नहीं, बस किसी भी तरह स्क्रीन पर दिखना चाहिए।

आज मीडिया में कुछ लोग ऐसे हो गये हैं कि कमाओ, खाओ और निकल लो। बेचारे चैनल मालिक देखते रह जाता है कि आखिर उसका पैसा गया कहाँ। क्योंकि, यहॉं कोई सीबीआई जांच नहीं हो सकती। एक दबंग बड़े पर्दे पर देखा है, एक दबंग सीएनईबी में देख रहा हूं। लोग अपनी इज्जत आप बचा रहे है, यहां कोई वासुदेव दौड़कर इज्जत बचाने नहीं आने वाला है।

मीडिया बहुत ही छोटी जगह है, और यह बात लोगो को भली - भांती समझ में आ जाएगा कि आखिर सीएनईबी में हुआ क्या है? बाद में लोगों को, अनुरंजन जी और उनकी नीति मृगमारीचिका बनकर नजर आऐगीं। जिसे कोई छु या पा भी नहीं सकता। अगर ईश्वर हैं तो उसका चमत्कार ही सीएनईबी बेड़ागर्क होने से बचा सकता है और सीएनईबी कर्मचारियों का भला हो सकता है।
<संजय सिंह (बदला हुआ नाम) : सीएनईबी का एक पत्रकार>

 Sabhar:-mediakhabar.com

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