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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

विज्ञापन के लिए भीख मांगने को मजबूर हैं पत्रकार


मुंगेर। भारतीय प्रजांतत्र के लिए यह खबर अच्‍छी नहीं है। अब बिहार के प्रायः सभी जिलों में पत्रकारिता का काम और मानक पूरी तरह बदल गया है। दशहरा जैसे पर्व के मौके पर अपने पारिश्रमिक से वंचित राज्य भर के प्रमंडल, जिला, अनुमंडल और प्रखंड स्तर के संवाददाताओं और छायाकारों को अखबारों के प्रबंधकों ने दशहरा पर्व पर समाचार-प्रेषण का काम धीमा कर विज्ञापन जुटाने का काम तत्परतापूर्वक करने का फरमान जारी कर दिया है।
अखबार के वरीय प्रतिनिधिगण जिला-जिला जाकर बैठक कर अपने अखबार के रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों को इस संबंध में प्रबंधन का आदेश सुना रहे हैं। आदेश में स्पष्ट है कि -‘‘जिन्हें समाचार के साथ विज्ञापन संग्रह का काम पसंद नहीं है, वे दूसरे अखबारों का दरवाजा खटखटा सकते हैं।’’
अखबार के ये संवाददाता जो पहले सीना तान के किसी सरकारी पदाधिकारी, विधायक या सांसद या किसी व्यवसायी या फिर मुखिया से समाचार संकलन वास्ते मिल लेते थे, वे लोग आज विज्ञान के लिए हाथ में कटोरा लेकर सरकारी पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, पार्टी अध्यक्षों और मुखियों के दरवाजों पर भटक रहे हैं और भीख जैसा याचना इस लहजे में कर रहे हैं- ‘‘विज्ञापन की भीख दो मालिक। नहीं भीख दोगे, तो अखबार का मालिक मुझे हटा देगा।’’
तात्पर्य, चुनाव के समय पेड न्यूज पर संसद में काफी बहस हुई थी। अब तो पेड न्यूज रोजमर्रा की घटना बिहार में बन गई है। गणतंत्र दिवस हो तो विज्ञापन संग्रह, स्वतंत्रता दिवस हो तो विज्ञापन संग्रह, रक्षा बंधन हो तो विज्ञापन संग्रह यानी कोई भी पर्व हो अखबारों को विज्ञापन चाहिए ही चाहिए। पत्रकारिता अब पूर्ण रूपेण विज्ञापन व्यवसाय बन गया है। मुंगेर मुख्यालय में अभी एक सप्ताह पहले दैनिक हिन्दुस्तान अखबार के वरीय विज्ञापन प्रबंधक ने अखबार के कार्यालय में जिले भर के पत्रकारों की क्लास ली और प्रखंड से जिला स्तर तक सभी का टारगेट बांट दिया। उन्होंने पत्रकारों को चेतावनी भी दे दी कि जिन्हें यह काम मंजूर नहीं है, वे लोग आसानी से दूसरे अखबार का दरवाजा खटखटा सकते हैं।’’ सभी पत्रकार और छायाकार हतप्रभ हैं। उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं कि आखिर विज्ञापन संग्रह का टारगेट वे कैसे पूरा करें?’’
कुछ पत्रकारों ने नाम न छापने की शर्त पर अपनी भड़ास यूं निकाली -‘‘माथा में कुत्ता काटा था जो अखबार में रिपोर्टर बना। वर्षों से काम कर रहा हूं। अखबार ने आज तक न तो नियुक्ति-पत्र दिया है और न ही पहचान पत्र, न तो वेतन मिलता है और न ही श्रम कानूनों के तहत अन्य आर्थिक सुविधाएं। प्रति समाचार दस रुपया के हिसाब से पारिश्रमिक मिलता है और वह भी तीन-चार महीनों का एक साथ।’’
मुख्यमंत्री से अपील : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में नगर निगम, नगर परिषद और नगर पालिकाओं के नाली और सड़क साफ करने वाले सफाई मजदूरों की तकदीर अपने शासन में बदल दी है और उन लोगों को अब अनेक जिलों में नियमित वेतन मिल रहे हैं। परन्तु, कलम के सिपाही उस सफाई मजदूर से भी बदतर जिन्दगी जी रहे हैं। मुंगेर के वरीय पत्रकार काशी प्रसाद ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि वे स्वयं श्रम विभाग के क्रियाकलापों पर नजर रखें और श्रम विभाग को आदेश दें कि विभाग श्रमकानूनों के तहत वेतन नहीं देने वाले अखबार के मालिकों के विरुद्ध प्रदत्त कानून के तहत मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में मुकदमा दर्ज करें। श्री प्रसाद का कहना है कि अखबार के मालिक कानून की छड़ी की ही भाषा समझते हैं।
सरकार का घाटा : पूरे बिहार में बड़े-बड़े अखबारों के संवाददाताओं के विज्ञापन संग्रह में जुट जाने से सारे अखबारों की विश्वसनीयता खत्म होती जा रही है। यह सरकार के मुखिया के लिए घातक है। जब अखबार पेड न्यूज बन जाए तो सरकार को अपने राज्य में घट रही घटनाओं की सही तस्वीर नहीं मिल सकेगी। वरीय पत्रकार काशी प्रसाद ने मुख्यमंत्री से इस प्रकरण में पूरे राज्य में निगरानी विभाग से जांच कराने की भी मांग की है। उनका कहना है कि सरकार पहले निगरानी विभाग से इस तथ्य की पुष्टि कर ले और फिर इस मामले में कठेरतम न्यायोचित कार्रवाई करे।
मुंगेर से श्रीकृष्‍ण प्रसाद की रिपोर्ट
Sabhar;- Bhadas4media.com

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