सहारा का कलेवर बदलने से क्या तेवर भी बदल जाएगा?
सहारा में ड्रामाबाजियों का नया दौर शुरू है. खबर आयी है कि सहारा बदलेगा. सहारा के चैनलों का रूप, रंग और कलेवर बदला जाएगा. चैनल के रूप - रंग के अलावा कंटेंट में भी कई बदलाव किए जायेंगे. प्रोमो और ग्राफिक्स बदलेगा.
स्वतंत्र मिश्रा के निर्देशन के बाद, यह बदलाव किए जा रहे हैं. यदि स्वतंत्र मिश्रा का नाम हटा दिया जाए तो यह सारे जुमले आपने पूर्व में भी कई बार सुने होंगे. सहारा में जब भी कोई नया मुखिया आता है तो यही सब करता है. चैनल को बदलने की बातें शुरू हो जाती है. इनपुट - आउटपुट को बदल दिया जाता है. नेशनल हेड बदल दिया जाता है. कुछ नए नियम - कानून लागू कर दिए जाते हैं. ऐसा दर्शाने की कोशिश की जाती है, सहारा में बदलाव की बयार बह रही है.
लेकिन होता वही है ढ़ाक के तीन पात. सो स्वतंत्र मिश्रा भी अपने सेनापति मनोज मनु के साथ वही सब कर रहे हैं. लेकिन सवाल उठता है कि सहारा का रूप, रंग और कलेवर बदलने से क्या सहारा का चरित्र भी बदल जाएगा? क्या उसका तेवर भी बदल जाएगा? रजनीकांत की जगह मनोज मनु को नेशनल हेड बना देने से समय की गति तेज हो जायेगी. वहां काम करने वाले लोगों के मिजाज और उनकी कार्यशैली में बदलाव आ जाएगा? ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता. पूर्व के अनुभव तो यही कहते हैं. जिस सहारा को पुण्य प्रसून नहीं सुधार पाए, संजय बरागटा भी कुछ न कर पाए, उपेन्द्र राय भी चूक गए, उसे स्वतंत्र मिश्रा क्या ठीक क्या कर पायेंगे? संदेह ही है, क्योंकि यहाँ चैनल को सुधारने की कोशिश कम और अपने आप को बचाए रखने की जद्दोजहद ज्यादा होती है. ऐसे में सहारा क्या बदलेगा, स्वतंत्र मिश्रा अपनी कुर्सी ही बचा लें, वही काफी है. फिर उनके ऊपर एक साल का डेड लाइन भी सवार है. सहारा में अब यह कहावत हो चली है कि एक साल होता नहीं कि सहारा के प्रमुख की गद्दी हिलने लगती है. परिस्थितियां ऐसी बनती है कि प्रमुख को सहारा छोड़कर जाने के लिए विवश हो जाना पड़ता है. ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि स्वतंत्र मिश्रा इस एक साल की लकीर को पार कर पाते हैं या फिर लकीर के फकीर बन कर ही रह जाते हैं
Sabhar;-Mediakhabar.com.
सहारा में ड्रामाबाजियों का नया दौर शुरू है. खबर आयी है कि सहारा बदलेगा. सहारा के चैनलों का रूप, रंग और कलेवर बदला जाएगा. चैनल के रूप - रंग के अलावा कंटेंट में भी कई बदलाव किए जायेंगे. प्रोमो और ग्राफिक्स बदलेगा.
स्वतंत्र मिश्रा के निर्देशन के बाद, यह बदलाव किए जा रहे हैं. यदि स्वतंत्र मिश्रा का नाम हटा दिया जाए तो यह सारे जुमले आपने पूर्व में भी कई बार सुने होंगे. सहारा में जब भी कोई नया मुखिया आता है तो यही सब करता है. चैनल को बदलने की बातें शुरू हो जाती है. इनपुट - आउटपुट को बदल दिया जाता है. नेशनल हेड बदल दिया जाता है. कुछ नए नियम - कानून लागू कर दिए जाते हैं. ऐसा दर्शाने की कोशिश की जाती है, सहारा में बदलाव की बयार बह रही है.
लेकिन होता वही है ढ़ाक के तीन पात. सो स्वतंत्र मिश्रा भी अपने सेनापति मनोज मनु के साथ वही सब कर रहे हैं. लेकिन सवाल उठता है कि सहारा का रूप, रंग और कलेवर बदलने से क्या सहारा का चरित्र भी बदल जाएगा? क्या उसका तेवर भी बदल जाएगा? रजनीकांत की जगह मनोज मनु को नेशनल हेड बना देने से समय की गति तेज हो जायेगी. वहां काम करने वाले लोगों के मिजाज और उनकी कार्यशैली में बदलाव आ जाएगा? ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता. पूर्व के अनुभव तो यही कहते हैं. जिस सहारा को पुण्य प्रसून नहीं सुधार पाए, संजय बरागटा भी कुछ न कर पाए, उपेन्द्र राय भी चूक गए, उसे स्वतंत्र मिश्रा क्या ठीक क्या कर पायेंगे? संदेह ही है, क्योंकि यहाँ चैनल को सुधारने की कोशिश कम और अपने आप को बचाए रखने की जद्दोजहद ज्यादा होती है. ऐसे में सहारा क्या बदलेगा, स्वतंत्र मिश्रा अपनी कुर्सी ही बचा लें, वही काफी है. फिर उनके ऊपर एक साल का डेड लाइन भी सवार है. सहारा में अब यह कहावत हो चली है कि एक साल होता नहीं कि सहारा के प्रमुख की गद्दी हिलने लगती है. परिस्थितियां ऐसी बनती है कि प्रमुख को सहारा छोड़कर जाने के लिए विवश हो जाना पड़ता है. ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि स्वतंत्र मिश्रा इस एक साल की लकीर को पार कर पाते हैं या फिर लकीर के फकीर बन कर ही रह जाते हैं
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