Sabhar:- Bhadas4media.com
अमर उजाला, देहरादून के एडिटर विजय त्रिपाठी ने वो काम कर दिया जो देहरादून में बड़े बड़े संपादक नहीं कर पाए. मुख्यमंत्रियों की लल्लो-चप्पो में लगे रहने और विज्ञापन पाते रहने की प्रवृत्ति को ब्रेक करते हुए इस शख्स ने जनपक्षधर पत्रकारिता का वो मानक स्थापित किया है जिसकी चर्चा उत्तराखंड में बहुत दिनों तक रहेगी. भाजपा नेता खंडूरी को सीएम की कुर्सी इसलिए मिली क्योंकि भाजपा नेता निशंक के कार्यकाल में बहुत भ्रष्टाचार था और इस भ्रष्टाचार के मुद्दे की वजह से भाजपा की लुटिया प्रदेश में डूब रही थी. खंडूरी कुर्सी संभालते ही भ्रष्टाचार के खिलाफ ''घोषणा-बहादुर'' बन गए, जमीनी लेवल पर कोई काम नहीं किया.
निशंक के कार्यकाल के किसी भी भ्रष्टाचारी के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ और न ही किसी के खिलाफ छापा पड़ा. दूसरे, खंडूरी को उसी चांडाल चौकड़ी ने फिर घेर लिया जिसने उनके पहले वाले कार्यकाल में कई गुल खिलाए थे. अमर उजाला, देहरादून के नए संपादक विजय त्रिपाठी ने खंडूरी और उनके आसपास के लोगों की जब असली हकीकत का प्रकाशन शुरू किया तो रंगे सियारों में खलबली मचना स्वाभाविक था. जनलोकपाल बिल के नाम पर उत्तराखंडवासियों को मूर्ख बनाकर चुनाव जीतने के सपने पालने वाले जनरल खंडूरी का अलोकतांत्रिक दिमाग सच-सच खबरें प्रकाशित होते ही सक्रिय हो गया और इन्होंने पहला व बड़ा अलोकतांत्रिक काम किया कि अमर उजाला अखबार का विज्ञापन बंद करा दिया.
यह आजकल हर प्रदेश में ट्रेंड है कि कोई अखबार अगर सत्ता के मुताबिक न चले तो उसका विज्ञापन बंद कर दो. बिहार में नीतीश कुमार यही करते हैं, यूपी में मायावती यही करती हैं, तो उत्तराखंड में भला जनरल खंडूरी क्यों नहीं करते. निशंक के शासनकाल में अमर उजाला, देहरादून के एडिटर निशीथ जोशी हुआ करते थे जिनके बारे में कहा जाता है कि वे काफी कुछ निशंक से मैनेज थे. विजय त्रिपाठी ने संपादक का पद संभालने के बाद किसी से भी किसी तरह का कोई कंप्रोमाइज न करने का निर्देश अपने रिपोर्टरों को दिया और लगे सत्ता प्रतिष्ठान की पोल खोलने वाली खबरें प्रकाशित करने. भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को बचाने वाला जनलोकपाल बिल लाकर खुद की पीठ थपथपाने वाले जनरल खंडूरी को यह अंदाजा नहीं था कि कोई अखबार उनकी हकीकत का बयान पूरी सच्चाई से कर देगा. सो, ऐसा जब अमर उजाला ने किया तो उनका गुस्सा आसमान पर पहुंच गया और विज्ञापन रोकने के आदेश दे डाले.
देखिए, ये एक खबर, जो अमर उजाला में पहले पेज पर छपी है. ऐसी खबरें छपने से खंडूरी खेमा अमर उजाला अखबार से आहत है. पर, सोचिए, अगर सभी अखबार इसी तरह की निष्पक्ष पत्रकारिता करने लगते तो इन नेताओं, मुख्यमंत्रियों की इतनी औकात होती कि वे सभी के विज्ञापन रोक लेते? पर, ज्यादातर अखबारों के मालिक और संपादक अखबार का मतलब ही रेवेन्यू बढ़ाने की मशीन मानते हैं इसलिए वे मुख्यमंत्रियों-सत्ताधारियों को खुश रखने के लिए सच्ची व विस्फोटक खबरों की बलि चढ़ाते रहते हैं...
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