धूर्त धर्म गुरुओं को कानून नहीं दे सकता सजा : धार्मिक दृष्टि से व्यक्ति का भाग्य, चरित्र, यश और वैभव के साथ मृत्यु भी ग्रहों की स्थिति या प्रारब्ध से ही निर्धारित होती है, फिर भी किसी भी व्यक्ति के जीवन पर परिवार, समाज या वातावरण का विशेष प्रभाव पड़ता है। धर्म को नकारते हुए वैज्ञानिक दृष्टि से मनुष्य को मात्र प्राणी ही माना जाये, तो मनुष्य सामाजिक प्राणी है ही, तभी मनुष्य की मानसिक स्थिति वातावरण से परिवर्तित हो जाती है, इसलिए कथित धर्म गुरुओं द्वारा लड़कियों का जीवन बर्बाद करने के मुद्दे पर समाज को निर्दोष करार नहीं दिया जा सकता।
धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाने की घटनायें विश्व भर में सर्वाधिक भारत में इसलिए होती हैं कि भारत के लोग अन्य देशों की तुलना में अधिक धार्मिक हैं। जन्म से लेकर मृत्यु के बीच या मृत्यु के बाद भी होने वाली अधिकांश क्रियायें धर्म के दायरे में ही संपन्न होती हैं। सुबह उठने से लेकर, रात में सोने तक, हर दिन धर्म का व्यक्ति के जीवन में महत्व पूर्ण स्थान रहता है, इसके अलावा भारत त्योहारों और पर्वों का देश कहा जाता है, जो धार्मिक आस्था को और प्रबल ही करते हैं, मतलब शिशु को जन्म से ही धार्मिक वातावरण मिलता है, तभी धर्म के प्रति उसकी निष्ठा अटूट होती चली जाती है। व्यक्ति कानून तोड़ देता है, पर अटूट आस्था के चलते ही धार्मिक परंपरायें नहीं तोड़ पाता। भारत के लोगों के मन में फोबिया की तरह धर्म बैठ गया है, जिससे चरित्रवान बनाने वाले धर्म का कुछ लोग दुरुपयोग कर स्वहित साध रहे हैं और फोबिया के चलते धर्म की आड़ में लोग लगातार मूर्ख बनते जा रहे हैं।
धर्म गुरुओं के आश्रमों या प्रवचन सुनने के लिए पांडालों में उमडऩे वाला जन सैलाब इसी धार्मिक फोबिया का ही दुष्परिणाम कहा जा सकता है, क्योंकि धर्म बुद्धि को ज्ञान में परिवर्तित करने का काम करता है। धर्म जीवन के अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाने का काम करता है। धर्म अंधकार से उजाले की ओर ले जाने का काम करता है। धर्म चरित्रवान बनाने का काम करता है। धर्म कर्तव्यों का पालन कराने की प्रेरणा देता है। धर्म अधिकारों का ज्ञान कराता है। धर्म आत्म विश्वास और साहस पैदा करने का काम करता है। कुल मिला कर धर्म आत्मा और परमात्मा के बीच संबंधों का ज्ञान कराते हुए व्यक्ति का सच से साक्षात्कार कराने का काम करता है, पर आश्रमों या प्रवचन सुनने के नाम पर पांडालों में उमडऩे वाले जन सैलाब में पचास प्रतिशत लोगों को भी सच की अनुभूति हो गयी होती, तो आज भारत की ऐसी भयावह तस्वीर नजर नहीं आ रही होती। भ्रष्टाचार और कर्तव्यहीनता के चलते चारों ओर हाहाकार नहीं मचा होता। लोग वास्तव में धार्मिक होते, तो भारत में स्वर्ग जैसा वातावरण दिख रहा होता।
खैर, मूल बात यह है कि आस्था और श्रद्धा रूपी धार्मिक फोबिया के चलते ही लोग, विशेष कर लड़कियां कथित धर्म गुरुओं के चंगुल में फंस जाती हैं। बाहरी आडंबरों के चलते कथित धर्म गुरुओं को मिल रहा अपार सम्मान और आध्यात्मिक वातावरण लड़कियों को फंसने को प्रेरित करता है। धर्म गुरुओं के चंगुल में फंसने के बाद लड़कियों का सच से सामना होता है, तो भी कथित धर्म गुरुओं के प्रति खुल कर नहीं बोल पातीं, क्योंकि कथित गुरुओं को अटूट आस्था व श्रद्धा के चलते समाज अपार सम्मान दे ही रहा होता है, कथित धर्म गुरुओं के अपने संगठन भी हैं एवं उच्च स्तरीय राजनैतिक व आपराधिक संबंधों के भय के चलते फंस चुकी लड़कियों को वह सब स्वीकारने के अलावा अन्य कोई विकल्प ही नजर नहीं आता, इसीलिए अपना प्रारब्ध मान कर कथित धर्म गुरुओं के वैभव का ही हिस्सा बन जाती हैं। आश्रमों को वैश्यालय की तरह उपयोग करने वाले कथित धर्म गुरुओं को कुछ लोग दोषी नहीं मानते। ऐसे लोग तर्क देते हैं कि लड़कियां भी बराबर की दोषी होनी चाहिए। ऐसे सवाल वही लोग उठाते हैं, जो परिस्थिति की सच्चाई तक नहीं पहुंच पाते, क्योंकि कोई लडक़ी अश्लील हरकत करने पर मौन रह जाये या विरोध न करे, तब आंशिक दोषी कही जा सकती है, पर गुरु के रूप में पिता की तरह व्यवहार कर चंगुल में फांसने वाले कथित धर्म गुरु सेवा के नाम पर लड़कियों का शरीर भोग लेते हैं, इसमें किसी लडक़ी की आखिर क्या गलती सिद्ध की जाये?
इस मुद्दे पर समूचा समाज ही दोषी कहा जायेगा, क्योंकि अगर समाज कथित धर्म गुरुओं को अपार सम्मान नहीं दे रहा होता, तो लड़कियां इनके पास फटकती तक नहीं, इसलिए समाज को धार्मिक फोबिया से बाहर आना होगा। धर्म के नाम पर आश्रम और आश्रम के नाम पर वैश्यालय चलाने वालों का बहिष्कार करना होगा, वरना धर्म गुरु के नाम पर यह बहरूपिये लड़कियों का जीवन बर्बाद करते रहेंगे। हालांकि किसी न किसी रूप में धूर्त धर्म गुरुओं के नाम सार्वजनिक होते ही रहते हैं, पर कानून से परिवर्तन नहीं होगा और न ही कानून सजा दे सकता है, क्योंकि यह धूर्त धर्म गुरु समाज की धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिसे कोई कानून नहीं रोक सकता, इसलिए समाज को ही जागरुक होना होगा। धर्म की आड़ में अपराध करने वाले बेहरूपियों को समाज के अलावा कोई और सजा दे ही नहीं सकता, इसलिए समाज ही है दोषी।
लेखक बीपी गौतम स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनसे संपर्क 8979019871 के जरिए किया जा सकता है
Sabhar:- Bhadas4media.com.
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