भाई विस्फोट डाट .कॉम पर लिखा और चिपका पोस्टर मई जैसे का तैसा चिपका रहा हु आप भी नजर करे और अपने कमेन्ट दे |
कितने गलत हैं कपिल सिब्बल?
By 6 hours 16 minutes ago
पहले पाठकों की प्रतिक्रिया सुनिये- कपिल सिब्बल कुत्ता है. अब यह भी समझिए कि कपिल सिब्बल को इस विशेषण से क्यों नवाजा जा रहा है? अमेरिका के अखबार न्यूयार्क टाइम्स का कहना है कि कपिल सिब्बल ने सोमवार को गूगल, याहू और फेशबुक के प्रतिनिधियों को अपने पास बुलाया था, बातचीत करने के लिए. कुछ कुछ वैसे ही जैसे टीम अन्ना या रामदेव से कपिल सिब्बल पहले बात कर चुके हैं. इसी तरह उन्होंने बुलाकर कंपनी प्रतिनिधियों से बात की और चेतावनी दी कि इंटरनेट पर कुछ प्रतिष्ठित लोगों के खिलाफ जिस तरह की टिप्पणियां की जा रही हैं (जाहिर है इसमें दो ही नाम है मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी) उसे रोकने की व्यवस्था होनी चाहिए. कंपनी प्रतिनिधियों ने कहा कि आप कानून बना दीजिए हम पालन कर लेंगे, और वहां से चले गये.
लेकिन इस मुलाकात की खबर ने इंटरनेट की दुनिया में न जाने क्यों एक बहस पैदा कर दी कि सरकार अब सोशल मीडिया पर सेन्सरशिप लगाना चाहती है. कपिल सिब्बल की सफाई है कि सरकार ऐसा कुछ नहीं करना चाहती लेकिन इतना जरूर चाहती है कि प्रतिष्ठित लोगों (एक बार वही दोनों नाम दोहरा लीजिए) के खिलाफ जो टिप्पणियां की जा रही हैं उसे रोका जाना चाहिए.
अब यह जानिए कि सोनिया गांधी या मनमोहन सिंह पर ऐसी कौन सी टिप्पणियां हैं जिसने संचार मंत्री को इतना परेशान कर दिया है. ठीक ठीक किस बात पर वे गुस्सा हो गये यह तो नहीं पता लेकिन फेशबुक से लेकर कुछ वेबसाइटों तक कुछ चित्र और टिप्पणियां जरूर मिलते हैं जो "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की सीमा पर जा खड़ी होती है. मसलन, फोटोशाप में निर्मित एक ऐसी पिक्चर दिखती है जिसमें सोनिया गांधी मदारी हैं और मनमोहन सिंह बंदर. सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को आदेश दे रही हैं कि जाओ मनमोहन सिंह देश को डुबा दो. और मनमोहन सिंह अपनी सहमति देते हुए कह रहे हैं कि बिल्कुल ऐसा ही करते हैं मैडम. इसी तरह एक पिक्चर में कपिल सिब्बल मनमोहन सिंह की गोद में बैठे हैं तो दिग्विजय सिंह सोनिया गांधी की गोद में हैं.
साफ है ये सब अन्ना और रामदेव के आंदोलन की उपज है. अन्ना हजारे और रामदेव के आंदोलनों ने देश में जो बहस खड़ी की उसमें हर व्यक्ति ने अपनी अपनी तरह से हिस्सा लिया है. उसी दौर में कुछ ऐसे नारे भी गढ़े गये थे जो सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माथे पर चार चांद लगा गये थे. एक नारा था- गली का कुत्ता कैसा हो, कपिल सिब्बल जैसा हो. इसी तरह सोनिया मनमोहन और कांग्रेसियों को गालियों के साथ विभूषित करते हुए उनके साथ अपनी असहमति दिखाई गई थी. इन आंदोलनों ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स, ब्लाग, ट्विटर और ईमेल के जरिए जो गंदगी प्रवाहित की थी उसके निशान आज भी इंटरनेट पर मौजूद हैं. मसलन यू ट्यूब पर एक कमेन्ट में कोई पाठक लिखता है- "बहिन के लोडे हैं ये कोंग्रेसी.. राहुल बेन्चोद अनपढ़ कुत्ता है अपनी इटालियन माँ का.. बाकी के दिग्विजय , कपिल सिब्बल, प्रणब मुख़र्जी,.. सब बहिन के लोडे सोनिया की छूट के चक्कर में गांडू बने हुए हैं..बहिन के लोडे कुतिया के बच्चे भरे पस्दे हैं कोंग्रेस में.. सारे समर्थक और नेता सूअर हैं कोंग्रेस के..और सारे कांग्रेसी वोटर्स भी." इसी में एक कमेन्ट और है- most corrupt is Sonia Gandhi,bitch is getting a major share of all scams." कहीं कपिल सिब्बल को कुत्तों का सरदार कहा जाता है तो कहीं मनमोहन सिंह को माचो बचो की गालियां दी जाती हैं. और यह सब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में रखकर स्वीकार कर लिया जाता है.
इसमें भी फेशबुक सबसे आगे रहा है. जब एक तरफ कपिल सिब्बल बाबा रामदेव और अण्णा हजारे को निपटाने का मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहे थे तो उस वक्त भी इंटरनेट ने उनकी खबर ली थी. एक फेशबुकिेया ने तो एक पेज ही बना दिया था और लोगों से सुझाव मांगा था कि लोग बताएं कि कपिल सिब्बल का काम तमाम कैसे किया जा सकता है. कुछ सुझाव आये भी जिसमे एक सुझाव राखी सावंत से उनकी शादी करवा देनेवाला भी था. और यह सब तक जब खुद कपिल सिब्बल भी फेशबुक पर हैं और भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी फेशबुक की शोभा बढ़ा रहे हैं.
ऐसे में अगर कपिल सिब्बल फेशबुक, याहू, गूगल या फिर ट्विटर के अधिकारियों को यह कहते हैं कि ऐसे आपत्तिजनक कमेन्ट या फोटोग्राफ हटा देने चाहिए तो क्या वे गलत कह रहे हैं? मुश्किल यह है कि उनकी इस पहल का भी वही लोग मजाक उड़ा रहे हैं और विरोध कर रहे हैं जो कपिल सिब्बलों या कांग्रेसियों को गाली देते हैं. निश्चित रूप से इसमें ज्यादातर राइट विंग के लोग हैं जिनका कांग्रेस से सीधे छत्तीस का आंकड़ा है. लेफ्ट भी उनके साथ क्यों रहेगा. लेफ्ट हो या राइट उनके लिए इंटरनेट तब तक आलराइट नहीं है जब तक कि उनके निजी स्वार्थ सिद्ध नहीं होते हों. कांग्रेस क्योंकि उस तरह से संगठित विचारधारा नहीं है इसलिए उसके समर्थकों की संख्या इंटरनेट पर कम है. इसलिए बचाव में उनके सैनिक नहीं उतर पाते. तय मानिये अगर उनके सैनिक उतरेंगे तो वे भी उसी तरह गाली गलौज करेंगे जिस तरह से लेफ्ट या राइट के लोग करते हैं.
इसलिए कपिल सिब्बल के बहाने ही सही यह सवाल तो देर सबेर उठाया ही जायेगा कि आजादी का मतलब आखिर होता क्या है? क्या आजादी का मतलब गाली देना, अपमान करना, असहमति होने पर अनियंत्रित होकर उल जुलूल हरकत करना आजादी है? अगर यह आजादी है तो इंटरनेट पर सेन्सरशिप से हमें कोई ताकत बचा नहीं पायेगी. चीन का उदाहरण ज्यादा पुराना नहीं है जब उसने पोर्न साइट्स पर प्रतिबंध लगा दिया और लाख कोशिशों के बाद भी उसने उन्हें दोबारा चीन में आनलाइन होने का मौका नहीं दिया. चीन ने थोड़ी अति कर दी लेकिन यहां तो उपभोक्ता ही अति कर रहे हैं. क्या ऐसा नहीं है?
साभार = विस्फोट .कॉम
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