नई दिल्ली। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर विषय वस्तु की निगरानी को लेकर जारी बहस के बीच दिल्ली की एक अदालत ने फेसबुक, गूगल और यूट्यूब सहित सोशल नेटवर्किंग साइटों को बैर या सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने वाले किसी भी ‘धर्म विरोधी’ या ‘असामाजिक’ कन्टेंट को वेबसाइट पर अपलोड करने से रोक दिया है। अपर सिविल जज मुकेश कुमार ने एकतरफा आदेश में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों को ऐसे किसी भी फोटोग्राफ, वीडियो या लिखित रूप में आपत्तिजनक विषय वस्तुओं को हटाने का निर्देश दिया है जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं।
अदालत ने मुफ्ती एजाज अरशद कासमी द्वारा दायर एक याचिका पर मंगलवार को यह आदेश पारित किया। कासमी ने अपने वकील संतोष पांडेय के जरिए अदालत के समक्ष विषय वस्तु की एक प्रति पेश की थी। अदालत ने 22 सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों को समन जारी कर उन्हें 24 दिसम्बर तक अपना जवाब देने को कहा और साथ ही अदालत के कर्मचारियों को याचिकाकर्ता द्वारा उपलब्ध कराए गए सभी दस्तावेजों एवं सीडी को एक सीलबंद कवर में रखने का निर्देश दिया।
न्यायाधीश ने कहा, ‘मैंने रिकार्ड को ध्यानपूर्वक देखा है जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा उपलब्ध कराई गई सीडी भी शामिल है, इसमें अपमानसूचक लेख और फोटोग्राफ शामिल हैं। मेरे विचार से याचिकाकर्ता द्वारा उपलब्ध कराए गए फोटोग्राफ में हर समुदाय की भावनाओं के खिलाफ अपमानसूचक तत्व हैं।’ ‘अगर प्रतिवादी को सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों से अपमानसूचक लेखों एवं सामग्री को हटाने का निर्देश नहीं दिया जाएगा तो इससे न केवल वादी, बल्कि धार्मिक आस्था रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति प्रभावित होगा और आस्था के साथ खिलवाड़ की भरपाई धन से नहीं की जा सकती।’ साभार : एजेंसी
न्यायाधीश ने कहा, ‘मैंने रिकार्ड को ध्यानपूर्वक देखा है जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा उपलब्ध कराई गई सीडी भी शामिल है, इसमें अपमानसूचक लेख और फोटोग्राफ शामिल हैं। मेरे विचार से याचिकाकर्ता द्वारा उपलब्ध कराए गए फोटोग्राफ में हर समुदाय की भावनाओं के खिलाफ अपमानसूचक तत्व हैं।’ ‘अगर प्रतिवादी को सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों से अपमानसूचक लेखों एवं सामग्री को हटाने का निर्देश नहीं दिया जाएगा तो इससे न केवल वादी, बल्कि धार्मिक आस्था रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति प्रभावित होगा और आस्था के साथ खिलवाड़ की भरपाई धन से नहीं की जा सकती।’ साभार : एजेंसी
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