प्रो. सत्यमित्र दुबे के 75वें जन्मदिन पर संगोष्ठी : नई दिल्ली : राष्ट्र निर्माण और भारतीय राजनीति के आपसी संबंध पर शनिवार को राजधानी में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राजनीति में ईमानदारी की कमी और युवाओं की भूमिका पर विशेष चर्चा हुई। संगोष्ठी का आयोजन साहित्य अकादमी सभागार में वरिष्ठ समाजशास्त्री प्रो. सत्यमित्र दुबे के 75वें जन्मदिवस पर देशभर में मनाए जा रहे अमृत महोत्सव श्रृंखला की 11वीं कड़ी के रूप में किया गया। इस अवसर पर प्रो. दुबे को शुभकामना देने कई समाजवादी चिंतक व दैनिक भास्कर के समूह संपादक श्रवण गर्ग उपस्थित हुए।
इस अवसर पर ‘राष्ट्रनिर्माण एवं भारतीय राजनीति : सीमाएं व संभावनाएं’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि आजादी के बाद राजनीति में जिस प्रकार विचारधारा, आदर्श और ईमानदारी का ह्रास हुआ, यह देश के विकास में सबसे बाधक रहा। अंग्रेजों के बनाए संसदीय मॉडल को अपनाकर विकास के नाम पर खेतिहर समाज को औद्योगिक समाज में बदलने का प्रयास समाज के ह्रास का पहला कदम था। हालांकि उन्होंने युवाओं के प्रति संभावना जताते हुए कहा कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में जिस प्रकार युवा वर्ग सरकारी तानाशाही के विरोध में एकजुट हुआ, इससे राष्ट्रनिर्माण की मौजूदा संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
समाजवादी नेता बृजभूषण तिवारी ने कहा कि देश की राजनीति से अलग रहकर राष्ट्र निर्माण संभव नहीं और इसकी खामियों को दूर करने के लिए लोगों को घरों और लाइब्रेरियों से बाहर निकलकर इसकी सफाई में अपना योगदान देना होगा। उन्होंने कहा कि राजनीति से जुड़े बगैर देश निर्माण संभव नहीं।
साहित्य समीक्षक प्रो नित्यानंद तिवारी ने आजादी के बाद लिखे गए साहित्य में राजनीति पर चर्चा करते हुए मैला आंचल, राग दरबारी और उदयप्रकाश की कहानियों से कई उदाहरण पेश किए और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आज राष्ट्र की अवधारणा को बदलने की जरूरत महसूस हो रही है। उन्होंने कहा कि 1950 से 1990 तक समाज की संरचना में बहुत तेजी से बदलाव आया जो समझ से परे है। इस बदलाव में राजनेता का रौबदार होना भी शामिल रहा।
हालांकि इतिहासकार प्रो कपिल कुमार ने कहा कि आज लोग व्यवस्था को कोसना ही अपना कर्तव्य समझते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों में ईमानदारी तभी तक रहती है जब तक की उन्हें बेईमानी का अवसर न मिले। आज भ्रष्टाचार से लडऩे की बजाय भ्रष्टाचार की मानसिकता से लडऩे की जरूरत है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. वाईसी सिंहाद्रि ने कहा कि समाज निर्माण के लिए जिस प्रकार छोटे-बड़े आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी बढ़ी है, उससे देश निर्माण की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इस अवसर पर कई समाजवादियों और प्रो. दुबे के प्रशंसकों के संदेश पत्र भी पढ़े गए। साभार : भास्कर
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