दिवालिया देश ने विदेशियों को भेजा त्राहिमाम संदेश ------------ Madan Tiwari
मैने पहले भी लिखा था , देश दिवालिया हो चुका है , सरकार इस बात को उजागर नही करना चाहती और न हीं भाजपा। इन दोनो दलों के अलावा अन्य किसी भी दल के पास अर्थ व्यवस्था की जानकारी रखने वाला नेता नही है । थोडी बहुत गंभीरता कारत पति पत्नी और अन्य वामपंथी दल दिखाते हैं लेकिन अफ़सोस उनके पास वह ग्यान नही है जो देश की वास्तविक हालात को समझ सके, कारण है , इनकी सोच , जैसे ही पूंजीवाद से संबंधित कोई चीज प्रकाशित होती है , ये उसे नकारते हुये , पढना भी गवांरा नही करते । मैने पहले भी लिखा था , देश दिवालिया हो चुका है और हमारी अर्थव्यवस्था विदेशी पूंजी पर टिक गई है । हमने ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत में हीं अपनी कंपनियों को बेच दिया। बाद में विदेशी पूंजीनिवेश को न्यौता दिया। विदेशी पूंजी निवेश को दिर्घकालीन समझा । यह भी नहीं समझने का प्रयास किया कि क्या यह वाकई विदेशी पूंजीनिवेश है या कोई षडयंत्र । विदेशी पूंजीनिवेश का सच कुछ और है । हमारे हीं देश की कंपनिया विदेशी कंपनियों के माध्यम से पूंजीनिवेश करती है अपने फ़ायदे के लिये । जब स्थिति बहुत हीं खराब हो गई तो हमने एफ़ डी आइ के माध्यम से रिटेल क्षेत्र में वाल मार्ट जैसी कंपनियो के लिये निवेश का दरवाजा खोलने का प्रयास किया लेकिन लोकसभा ने उसे नामंजूर कर दिया तब ढंके रुप में आज सरकार ने शेयर बाजार में विदेशी निवेशको को सीधे निवेश करने की अनुमति प्रदान कर दी। यह आत्मसर्पण है सरकार का अमेरिका के सामने । यह टिकेगा नही । अमेरिका खुद अपने घर में पूंजीवाद के खिलाफ़ शुरु हुई लडाई जिसका नाम है औकिपाई वाल स्ट्रीट लड रहा है , वह कहां तक हमे बचायेगा ?
ब्राजील की तरह हमारे यहां लोग बोरी मे नोट लेकर झोला मे सामान नही ला रहे हैं इसका अर्थ यह नही है कि हमारी आर्थिक स्थिति ब्राजील से बेहतर है , दिवालिया होने का सामान्य अर्थ है किसी देश की मुद्रा का डालर के मुकाबले वैल्यू कम होते जाने । आप देख ले आज क्या वैल्यू है रुपया का डालर के मुकाबले । ब्राजील में लोग अमीर थें, बैंक में पैसा रखते थें इसलिये दिवालिये होने का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ। हमारे देश में पैसा हीं नही है बैंक में क्या खाक रखेंगें। राजनीतिक दलों के लिये भी यह एक चेतावनी है , स्पष्ट रुप से सरकार से पुछे क्या है देश की आर्थिक स्थिति । खासकर लालु यादव और मुलायम सिंह जैसे समाजवादी सोच वालों के लिये यह एक चुनौती है। शेयर बाजार में विदेशी पूंजी का सीधे निवेश हमें आर्थिक रुप से गुलाम बना देगा। शेयर बाजार तो बढेगा लेकिन अर्थ व्यवस्था पर विदेश का कब्जा होगा । समय है बचा लें देश को । मनमोहन को विदाई देने का वक्त आ गया और मंटोक को भी।
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