मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री रह चुके एक पालिटीशियन के घर पे छापा पड़ा सीबीआई का एक दफे. सीबीआई वाले चले गए तो वो पालिटीशियन अपने घर के बाहरी लान में अपना माथा दोनों हाथों में दबाये हुए मिला. एक शुभचिंतक ने दिलासा दिया, 'घबराओ मत. क्या हुआ जो छापा पड़ा. आप कौन सी दलाली या स्मगलिंग करते हो.' वो दिलासे पे दिलासा देता रहा. पालिटीशियन सुनता रहा. सुन सुन के जब वो थक गया तो उसने नज़रें उठाईं और पलट के उसी से पूछा, तुझे मालूम भी है कि मैं क्यों परेशान हूँ?'...'क्यों', उसने पूछा. नेता बोला, ' बदनामी की बात ये है कि मुझ जैसे आदमी के घर में सिर्फ 89 हज़ार रूपये मिले. कौन मानेगा अब कि मैं हर हलके में उम्मीदवार खड़ा कर के उसे जिता भी सकता हूँ'
पर शुभचिंतक भी ख़ास आदमी था. उसने पूछ ही लिया, 'तो सारी विधानसभा के चुनाव लड़ा सकने लायक पैसे रखते कहाँ हो आप?' नेता बोला, यही तो सयानप है. उसने एक पते की बात बताई. कहा, सयाना पालिटीशियन अपने पैसे अपनी नहीं, अपनों की जेब में रखता है. जिस किसी का भला किया हो वो वोट देने भी आता है, नोट देने भी. माया भी इस नेता से मिल चुकी. सयानी निकली. अपने पैसे उसने अपनों के यहाँ सुरक्षित कर लिए. उसके करोड़ों रूपये पौंटी चड्ढा के पास थे. करोड़ों रूपये की तो चीनी मिलें ही बेच दीं माया ने उसे कौड़ियों के भाव. दो साल हुए.
ये चीनी मिलें अमरोहा, बुलंदशहर, खड्डा, मोहिद्दीनपुर, रोहाना कला, सहारनपुर, सखैती टांडा, सिसवा बाज़ार, बिजनौर, जरवल रोड व चांदपुर में हैं. ये सारी चीनी मिलें चालू हालत में हैं और इन मिलों के आधुनिकीकरण पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च किये थे. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह, कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, प्रदेश कांग्रेस विधानमंडल के नेता प्रमोद तिवारी तथा कांग्रेस पार्टी के किसान नेता वी.एम. सिंह ने लोकायुक्त को दिए शिकायत पत्र में आरोप लगाया गया था कि नसीमुद्दीन ने कुछ खास व्यक्तियों और उनकी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से 2 जुलाई 2010 और 17 सितंबर 2010 को इन चीनी मिलों को बेचने की साज़िश में मुख्य भूमिका निभाई. तत्कालीन मुख्य सचिव एके गुप्ता, उत्तर प्रदेश गन्ना विभाग के विशेष सचिव सुभाष त्रिवेदी, विभागीय प्रमुख सचिव नेतराम को भी साज़िश में शामिल बताया गया. पत्र में कहा गया कि मुख्य सचिव एके गुप्ता, प्रमुख सचिव नेतराम और सुभाष त्रिवेदी उस कोर कमेटी के सदस्य थे, जिसने चीनी मिलें बेचने का निर्णय लिया. नीलामी प्रक्रिया में बोली लगाने वाली कुल तीन कंपनियों इंडियन पोटाश लि., पी.बी.एस. फूड्स प्रा.लि. और वेव इंडस्ट्रीज प्रा.लि. में से दो कंपनियां पी.बी.एस फूड्स प्रा.लि. और वेव इंडस्ट्रीज प्रा.लि. एक ही व्यक्ति पोंटी चड्ढा की थीं. 11 मिलों में से 5 मिलें इंडियन पोटाश कंपनी ने खरीदी और 6 मिलें पीबीएस फूड्स लि. और वेव इंडस्ट्रीज ने. हालांकि इससे पहले भी कई मिलें अलग-अलग सरकारों द्वारा निजी क्षेत्रों को बेची गई थीं, लेकिन वे मिलें ऐसी थीं जो बंद थीं और जर्जर हो चुकी थीं या फिर घाटे में चल रही थीं. उत्तर प्रदेश चीनी निगम की कुल 35 चीनी मिलें हैं, जिनमें 11 को यों कौड़ियों के भाव बेचा गया.
पौंटी के हिस्से में आई मिलों की ज़मीन ही उस रकम से कई गुना ज़्यादा थी जो उसने समूची मिल खरीदने के बदले में अदा की. मिसाल के तौर पर अमरोहा चीनी मिल 29.89 हेक्टेयर क्षेत्र (74 एकड़ अथवा 3 लाख वर्गमीटर) में स्थापित थी. मिल परिसर में चार बड़े आलीशान बंगले थे. एक विशाल गेस्ट हाऊस भी. मिल की ज़मीन पर ही ज़िला जज का बंगला और सर्किट हाऊस भी. पांच बड़ी कॉलोनियां, जिनमें 300 रिहायशी फ्लैट्स थे. मिल के गोदाम, बिल्डिंग, प्लांट और मशीनरी की क़ीमत का अनुमान नहीं लगाया गया. इस क्षेत्र का डीएम सर्किल रेट तब 6 हज़ार रुपए वर्गमीटर था. सर्किल रेट के हिसाब से केवल ज़मीन की क़ीमत सौ करोड़ रुपए थी, जबकि मिल की सारी संपत्ति, मशीन आदि सब मिलाकर 17 करोड़ में बेच दी गई. आरोप है कि जिस समय मिल चल रही थी, उसी समय इस पर क़ब्ज़ा लेने के लिए पोंटी चड्ढा के हथियारबंद लोगों ने मिल पर धावा बोल दिया. क़ब्ज़े के लिए 40 गाड़ियों का काफिला पहुंचा था. क़ब्ज़े के समय 8 हज़ार बोरी कच्ची चीनी, 5 हज़ार 275 बोरी तैयार चीनी और 10 हज़ार कुंतल शीरा मौजूद था. इस सब पर भी क़ब्ज़ा कर लिया गया. चांदपुर चीनी मिल की पेराई क्षमता 2500 टन थी. इसे पोंटी चड्ढा की फर्म को 90 करोड़ रुपए में बेचा गया. 1974 में यह मिल 84 एकड़ ज़मीन पर स्थापित की गई थी. मिल के आसपास का क्षेत्र गन्ना उत्पादन के लिए आज भी बेहद उर्वर है. वर्ष 2005 में मिल ने भारी मुना़फा कमाया था. बाद में एक साज़िश के तहत पड़ोस की निजी चीनी मिल को फायदा पहुंचाने के लिए समय से पहले ही पेराई बंद की जाने लगी.
सन 2009 में खुद सरकार ने इन मिलों की संपत्ति की कीमत ज़्यादा आंकी थी. लेकिन शायद पौंटी को दिमाग में रख के 2010 में इनकी कीमत का मूल्यांकन कम कर के आँका और बताया गया. देखिये...
पर शुभचिंतक भी ख़ास आदमी था. उसने पूछ ही लिया, 'तो सारी विधानसभा के चुनाव लड़ा सकने लायक पैसे रखते कहाँ हो आप?' नेता बोला, यही तो सयानप है. उसने एक पते की बात बताई. कहा, सयाना पालिटीशियन अपने पैसे अपनी नहीं, अपनों की जेब में रखता है. जिस किसी का भला किया हो वो वोट देने भी आता है, नोट देने भी. माया भी इस नेता से मिल चुकी. सयानी निकली. अपने पैसे उसने अपनों के यहाँ सुरक्षित कर लिए. उसके करोड़ों रूपये पौंटी चड्ढा के पास थे. करोड़ों रूपये की तो चीनी मिलें ही बेच दीं माया ने उसे कौड़ियों के भाव. दो साल हुए.
ये चीनी मिलें अमरोहा, बुलंदशहर, खड्डा, मोहिद्दीनपुर, रोहाना कला, सहारनपुर, सखैती टांडा, सिसवा बाज़ार, बिजनौर, जरवल रोड व चांदपुर में हैं. ये सारी चीनी मिलें चालू हालत में हैं और इन मिलों के आधुनिकीकरण पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च किये थे. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह, कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, प्रदेश कांग्रेस विधानमंडल के नेता प्रमोद तिवारी तथा कांग्रेस पार्टी के किसान नेता वी.एम. सिंह ने लोकायुक्त को दिए शिकायत पत्र में आरोप लगाया गया था कि नसीमुद्दीन ने कुछ खास व्यक्तियों और उनकी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से 2 जुलाई 2010 और 17 सितंबर 2010 को इन चीनी मिलों को बेचने की साज़िश में मुख्य भूमिका निभाई. तत्कालीन मुख्य सचिव एके गुप्ता, उत्तर प्रदेश गन्ना विभाग के विशेष सचिव सुभाष त्रिवेदी, विभागीय प्रमुख सचिव नेतराम को भी साज़िश में शामिल बताया गया. पत्र में कहा गया कि मुख्य सचिव एके गुप्ता, प्रमुख सचिव नेतराम और सुभाष त्रिवेदी उस कोर कमेटी के सदस्य थे, जिसने चीनी मिलें बेचने का निर्णय लिया. नीलामी प्रक्रिया में बोली लगाने वाली कुल तीन कंपनियों इंडियन पोटाश लि., पी.बी.एस. फूड्स प्रा.लि. और वेव इंडस्ट्रीज प्रा.लि. में से दो कंपनियां पी.बी.एस फूड्स प्रा.लि. और वेव इंडस्ट्रीज प्रा.लि. एक ही व्यक्ति पोंटी चड्ढा की थीं. 11 मिलों में से 5 मिलें इंडियन पोटाश कंपनी ने खरीदी और 6 मिलें पीबीएस फूड्स लि. और वेव इंडस्ट्रीज ने. हालांकि इससे पहले भी कई मिलें अलग-अलग सरकारों द्वारा निजी क्षेत्रों को बेची गई थीं, लेकिन वे मिलें ऐसी थीं जो बंद थीं और जर्जर हो चुकी थीं या फिर घाटे में चल रही थीं. उत्तर प्रदेश चीनी निगम की कुल 35 चीनी मिलें हैं, जिनमें 11 को यों कौड़ियों के भाव बेचा गया.
पौंटी के हिस्से में आई मिलों की ज़मीन ही उस रकम से कई गुना ज़्यादा थी जो उसने समूची मिल खरीदने के बदले में अदा की. मिसाल के तौर पर अमरोहा चीनी मिल 29.89 हेक्टेयर क्षेत्र (74 एकड़ अथवा 3 लाख वर्गमीटर) में स्थापित थी. मिल परिसर में चार बड़े आलीशान बंगले थे. एक विशाल गेस्ट हाऊस भी. मिल की ज़मीन पर ही ज़िला जज का बंगला और सर्किट हाऊस भी. पांच बड़ी कॉलोनियां, जिनमें 300 रिहायशी फ्लैट्स थे. मिल के गोदाम, बिल्डिंग, प्लांट और मशीनरी की क़ीमत का अनुमान नहीं लगाया गया. इस क्षेत्र का डीएम सर्किल रेट तब 6 हज़ार रुपए वर्गमीटर था. सर्किल रेट के हिसाब से केवल ज़मीन की क़ीमत सौ करोड़ रुपए थी, जबकि मिल की सारी संपत्ति, मशीन आदि सब मिलाकर 17 करोड़ में बेच दी गई. आरोप है कि जिस समय मिल चल रही थी, उसी समय इस पर क़ब्ज़ा लेने के लिए पोंटी चड्ढा के हथियारबंद लोगों ने मिल पर धावा बोल दिया. क़ब्ज़े के लिए 40 गाड़ियों का काफिला पहुंचा था. क़ब्ज़े के समय 8 हज़ार बोरी कच्ची चीनी, 5 हज़ार 275 बोरी तैयार चीनी और 10 हज़ार कुंतल शीरा मौजूद था. इस सब पर भी क़ब्ज़ा कर लिया गया. चांदपुर चीनी मिल की पेराई क्षमता 2500 टन थी. इसे पोंटी चड्ढा की फर्म को 90 करोड़ रुपए में बेचा गया. 1974 में यह मिल 84 एकड़ ज़मीन पर स्थापित की गई थी. मिल के आसपास का क्षेत्र गन्ना उत्पादन के लिए आज भी बेहद उर्वर है. वर्ष 2005 में मिल ने भारी मुना़फा कमाया था. बाद में एक साज़िश के तहत पड़ोस की निजी चीनी मिल को फायदा पहुंचाने के लिए समय से पहले ही पेराई बंद की जाने लगी.
सन 2009 में खुद सरकार ने इन मिलों की संपत्ति की कीमत ज़्यादा आंकी थी. लेकिन शायद पौंटी को दिमाग में रख के 2010 में इनकी कीमत का मूल्यांकन कम कर के आँका और बताया गया. देखिये...
पूर्व घोषित मूल्य 2009 में (रु. करोड़ में )
संशोधित मूल्य 2010 में (रु. करोड़ में )
1.अमरोहा
संशोधित मूल्य 2010 में (रु. करोड़ में )
1.अमरोहा
18.55
16.70
2. बुलंदशहर
16.70
2. बुलंदशहर
65.32
58.80
3. खड्
58.80
3. खड्
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