पीयूष पांडे, वरिष्ठ पत्रकार भारत की महानगरीय आबादी क्या इंटरनेट की लत का शिकार हो रही है? विभिन्न संस्थाओं और अलग अलग कंपनियों की तरफ से लगातार आ रहे सर्वेक्षणों के नतीजे इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। कंप्यूटर एंटीवायरस बनाने वाली प्रमुख कंपनी नॉरटन के ताजा सर्वे के मुताबिक भारत में नेट उपयोक्ता रोज़ाना आठ घंटे इंटरनेट पर व्यतीत कर रहे हैं। इतना ही नहीं, इंटरनेट का नियमित इस्तेमाल करने वाले उपयोक्ता 24 घंटे भी इससे दूर नहीं रह सकते। इस सर्वे में शामिल 83 फीसदी लोगों ने कहा कि नेट से 24 घंटे की दूरी तो बहुत लंबा वक्त है, वे तीन घंटे बाद ही खुद को कटा महसूस करने लगते हैं।
लेकिन बात सिर्फ इस एक सर्वे की नहीं है। बात इंटरनेट की बढ़ती लत की है। और इसमें कोई दो राय नहीं है कि नेट उपयोग करने वाले उपयोक्ताओं के बीच इंटरनेट इस्तेमाल की प्रवृत्ति बढ़ रही है। और यह आदत सिर्फ वयस्कों को अपने चंगुल में नहीं ले रही, बल्कि बच्चे भी इस आदत के शिकार हो रहे हैं। देश के चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, बेंगलूर और चेन्नई में एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि सात साल से 11 साल की उम्र के 52 फीसदी बच्चे रोजाना औसतन पांच घंटे नेट सर्फिंग करते हैं। इसी आयु वर्ग के 30 फीसदी बच्चे एक से पांच घंटे नेट पर बिताते हैं। सर्वे के निष्कर्ष की मानें तो ये बच्चे चैटिंग करते हैं और गेम खेलते हैं। ऐसे बच्चों की संख्या कम पाई गई, जो स्कूल के काम के लिए नेट की मदद लेते हैं।
इंटरनेट के विस्तार के बाद इस समस्या से रुबरु होना स्वाभाविक है। और यह परेशानी सिर्फ भारत में नहीं है, बल्कि दुनिया के कई मुल्कों में अब इस समस्या के भयंकर लक्षण दिखने लगे हैं। चीन तो दुनिया का पहला ऐसा देश बनने की तैयारी में है, जहां इंटरनेट की लत को आधिकारिक तौर पर एक 'रोग' घोषित किये जाने की तैयारी है। अमेरिका के सिएटल में पिछले दिनों लोगों की इंटरनेट की छुड़ाने के लिए एक पुनर्वास केंद्र की शुरूआत की गई है। इस पुनर्वास केंद्र में इंटरनेट की लत से पीडि़त लोगों को इसका नशा छोड़ने में मदद करने के लिए थेरेपी का उपयोग किया जा रहा है। दक्षिण कोरिया में सरकार लोगों को निशुल्क सॉफ्टवेयर बांटने जा रही है, जो एक तय सीमा के बाद इंटरनेट इस्तेमाल नहीं करने देता। साथ ही सरकार संसद में एक सिंड्रेला लॉ भी प्रस्तुत करने के बारे में सोच रही है। इस कानून के तहत 15 साल से कम उम्र के बच्चों को आधी रात से सुबह छह बजे तक इंटरनेट पर गेम खेलने की इजाजत नहीं होगी। इसी तरह जापान के गृह मंत्रालय ने भी चेतावनी देते हुए कहा है कि युवाओं की इंटरनेट की लत उन्हें उदासीन बना रही है।
इंटरनेट की उपयोगिता के सैकड़ों उदाहरणों के बीच इसकी लत आज भले कोई बड़ी समस्या न मालूम हो, लेकिन ऐसा है नहीं। जानकारों की मानें तो इंटरनेट की व्यापक होती पहुंच के बीच यह समस्या सामाजिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से घातक साबित हो सकती है। हाल में शोधकर्ताओं ने इंटरनेट की लत का सम्बन्ध दिमाग में दर्ज़ होने वाले उन बदलावों से जोड़ा है, जो उन लोगों के दिमाग में दर्ज़ किए गए हैं जिन्हें शराब ,कोकेन और केनाबिस जैसे नशीले पदार्थों की लत पड़ चुकी होती है। दिक्कत यह है कि इंटरनेट की लत उन लोगों को भी चपेट में ले रही है, जिनके कामकाज का नेट से सीधा रिश्ता नहीं है।
इंटरनेट की लत के चलते भय, तड़प, बेचैनी, नींद नहीं आने, काम के प्रति अरुचि या पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगने जैसी शिकायतें धीरे धीरे आम हो रही हैं। परेशानी की बात यह है कि इस बाबत कोई अधिक चिंता नहीं दिखायी देती। कम से कम भारत में तो नहीं। दिलचस्प है कि इंटरनेट के खुले आकाश में दौड़ने के लिए किसी तरह की कोई ट्रेनिंग-कोई लाइसेंस की आवश्यकता नहीं माना जाती, जबकि इस दुनिया में सैकड़ों तरीके से दुर्घटना संभव है।
अब इस मुद्दे पर चिंतन ज़रुरी है,क्योंकि आने वाले दिनों में नेट का विस्तार अभूतपूर्व तरीके से होने वाला है। देश में इस वक्त करीब 12 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं,लेकिन गूगल सर्च इंजन की एक रिपोर्ट की मानें तो 2015 तक भारत में तीस करोड़ से ज्यादा लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करेंगे। सरकार भी गांव-गांव तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने की महात्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रही है। स्कूली बच्चों को टेबलेट देने की योजना भी परवान चढ़ रही है, जिसके जरिए लाखों बच्चों को टेबलेट रुपी नन्हा कंप्यूटर मुहैया कराया जाएगा।
इंटरनेट की लत का प्रभाव समाजशास्त्रियों का विषय है और इस विषय पर आने वाले दिनों में कई रिपोर्ट हमें दिखायी देंगी। अच्छा हो कि हम इस समस्या को अब समझना शुरु कर दें, क्योंकि ‘इंटरनेट ओब्सेशन’ के शुरुआती लक्षण तो हमारे-आपके के बीच ही कई लोगों में दिखने लगे हैं।
Sabhar- Samachar4media.com
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