दूरसंचार नियामक (ट्राई) के प्रस्ताव के अनुसार 2जी स्पेक्ट्रम की कीमत 3जी के मुकाबले 1.5 गुना ज्यादा है। ट्राई का यह आकलन दूरसंचार मंत्री ए राजा के लिए और मुश्किलें खड़ी कर सकता है। ट्राई की इन सिफारिशों से राजा के आलोचकों को 2008 में कम कीमत पर दिए गए टेलिकॉम लाइसेंस से सरकारी खजाने को हुए नुकसान की गणना करने का पहली बार पैमाना मिल जाएगा। ये लाइसेंस 2001 में निश्चित की गई कीमत पर दिए गए थे। राजा ने उस समय वित्त मंत्रालय सहित बहुत से पक्षों की इन लाइसेंस की नीलामी करने की राय को नजरअंदाज कर दिया था।
लाइसेंस शुरुआती 2जी स्पेक्ट्रम के साथ दिए गए थे। आकलन से पता चलता है कि ट्राई का फॉर्मूला अपनाने पर 2008 में दिए गए लाइसेंस से देश को लगभग 70,000 करोड़ रुपए की आमदनी होती। विपक्षी दलों सहित राजा के आलोचक अभी तक सरकारी खजाने को 60,000 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगा रहे थे। उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि ट्राई की सिफारिशों से केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के इस आरोप को भी मजबूती मिलेगी कि राजा के कदमों से सरकार को 22,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने दूरसंचार विभाग को भेजे प्रश्नों में आरोप लगाया था कि राजा ने बहुत से विशेषज्ञों की राय दरकिनार कर गलत और पुरानी नीति के जरिए नए टेलीकॉम लाइसेंस देकर सरकार का 26,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान किया है।
नई कंपनियों को दिए गए लाइसेंस के मामले की जांच सीबीआई और कैग के अलावा केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) भी कर रहा है। शनिवार की कीमतों के अनुसार अखिल भारतीय 3जी स्पेक्ट्रम अब लगभग 15,814 करोड़ रुपए में जा रहा है। 3जी स्पेक्ट्रम की बाजार कीमत प्रति मेगाहर्ट्ज आधार पर 3,162 करोड़ रुपए (15,814 को 5 मेगाहर्ट्ज से भाग देने पर आई रकम) है। यह राजा द्वारा 2008 में दिए गए 2जी स्पेक्ट्रम की तुलना में लगभग नौवां हिस्सा है। उस समय 4.4 मेगार्हट्ज का शुरुआती स्पेक्ट्रम दिया गया था। 2001 की कीमत के अनुसार इस 2जी स्पेक्ट्रम की प्रति मेगाहर्ट्ज का मूल्य केवल 375 करोड़ रुपए है (1,651 करोड़ रुपए को 4.4 मेगार्हट्ज से भाग देने पर आई रकम)। अगर ट्राई का फॉर्म्यूला अपनाया जाए तो 2008 में नई कंपनियों को दिए गए प्रत्येक लाइसेंस से देश को 14,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। जनवरी, 2008 में दिए गए इन लाइसेंस से केवल 8,000 करोड़ रुपए मिले थे और इससे सरकारी खजाने का लगभग 70,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। साभार : नवभारत टाइम्स डाट काम
लाइसेंस शुरुआती 2जी स्पेक्ट्रम के साथ दिए गए थे। आकलन से पता चलता है कि ट्राई का फॉर्मूला अपनाने पर 2008 में दिए गए लाइसेंस से देश को लगभग 70,000 करोड़ रुपए की आमदनी होती। विपक्षी दलों सहित राजा के आलोचक अभी तक सरकारी खजाने को 60,000 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगा रहे थे। उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि ट्राई की सिफारिशों से केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के इस आरोप को भी मजबूती मिलेगी कि राजा के कदमों से सरकार को 22,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने दूरसंचार विभाग को भेजे प्रश्नों में आरोप लगाया था कि राजा ने बहुत से विशेषज्ञों की राय दरकिनार कर गलत और पुरानी नीति के जरिए नए टेलीकॉम लाइसेंस देकर सरकार का 26,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान किया है।
नई कंपनियों को दिए गए लाइसेंस के मामले की जांच सीबीआई और कैग के अलावा केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) भी कर रहा है। शनिवार की कीमतों के अनुसार अखिल भारतीय 3जी स्पेक्ट्रम अब लगभग 15,814 करोड़ रुपए में जा रहा है। 3जी स्पेक्ट्रम की बाजार कीमत प्रति मेगाहर्ट्ज आधार पर 3,162 करोड़ रुपए (15,814 को 5 मेगाहर्ट्ज से भाग देने पर आई रकम) है। यह राजा द्वारा 2008 में दिए गए 2जी स्पेक्ट्रम की तुलना में लगभग नौवां हिस्सा है। उस समय 4.4 मेगार्हट्ज का शुरुआती स्पेक्ट्रम दिया गया था। 2001 की कीमत के अनुसार इस 2जी स्पेक्ट्रम की प्रति मेगाहर्ट्ज का मूल्य केवल 375 करोड़ रुपए है (1,651 करोड़ रुपए को 4.4 मेगार्हट्ज से भाग देने पर आई रकम)। अगर ट्राई का फॉर्म्यूला अपनाया जाए तो 2008 में नई कंपनियों को दिए गए प्रत्येक लाइसेंस से देश को 14,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। जनवरी, 2008 में दिए गए इन लाइसेंस से केवल 8,000 करोड़ रुपए मिले थे और इससे सरकारी खजाने का लगभग 70,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। साभार : नवभारत टाइम्स डाट काम
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