क्या गोरा चेहरा एंकर होने का मानक है? : कुछ बातें अब बहस में शामिल कर लेनी चाहिए। चैनल चल रहे हैं, नए चैनल खुल रहे हैं और इसी के साथ पत्रकारिता के नए तौर-तरीके सामने आ रहे हैं। मुझे तारीख याद नहीं, उस समय मैं महुआ में था, जंतर-मंतर पर भारतीय़ किसान यूनियन का धरना था। महेंद्र सिंह टिकैत का भाषण चल रहा था। एक चैनल की महिला रिपोर्टर वहां से लाइव कर रहीं थीं, बार-बार वो कह रहीं थीं, केंद्रीय कृषी मंत्री महेंद्र सिंह टिकैत-- कुछ दिन बाद उसी महिला को एंकरिंग करते देखा। अब बात रांची की। रांची में नए चैनल की शुरुआत होनी थी। एंकर्स चयन की जिम्मेदारी मुझे दी गई थी। इसी दौरान एक लड़की आई, लड़की के साथ चैनल के सीईओ भी थे।सीईओ का पहला आदेश था- असित जी इनको रखना है, जरा देख लीजिए। ऑडिशन में एक बात साफ थी कि एंकरिंग कर लेगी लेकिन अभी प्रयास की जरूरत थी। मैने सीईओ तक ये बात पहुंचा दी। चैनल ऑन एयर हुआ, दो चार दिन बाद उस लड़की को मौका दिया गया। सीईओ ने खुद इसके लिए कहा था। एंकर ने एक दिन कहा- झारखण्ड के प्रधानमंत्री शिबू सोरेन। सिलसिला ऐसा चला कि कभी मधु कोड़ा बिहार के सीएम कहे गए तो रांची को देश की राजधानी। खैर, अब मैं रांची के उस चैनल में नहीं हूं।
इधर तीन-चार दिन पहले सुना कि कई एंकर ठीक से सवाल नहीं पूछ पाते। ये बात जायज है। लेकिन सवाल ये है कि उनको बतौर एंकर क्यों रखा गया? क्या गोरा चेहरा एंकर होने का मानक है? क्यों नहीं उनकी पत्रकारिता का इतिहास देखा गया? क्यों नहीं उन्हें पहले रिपोर्टिंग के लिए भेजा गय़ा? खबरों को समझने-बूझने का मौका उन्हे क्यों नहीं दिया गया? डेस्क पर उनको कुछ दिनों तक रख कर क्यों नहीं समाचार के बुनियादी तत्वों को समझने का मौका दिया गया? ये कई सवाल हैं भाई और खबरिया चैनलों को इसके लिए सोचना चाहिए। होड़ सिर्फ स्तर गिराने के लिए नहीं होनी चाहिए। आपके चैनल में चाहे पांच हजार अच्छे लोग हों, बेहतर काम करने वाले हो, लेकिन बाहर एंकर ही दिखता है। कम से कम उसके चयन में अनुभव, जानकारी और समर्पण को महत्व जरूर मिलनी चाहिए.
-असित नाथ तिवारी- www.chauthinazar.blogspot.com
इधर तीन-चार दिन पहले सुना कि कई एंकर ठीक से सवाल नहीं पूछ पाते। ये बात जायज है। लेकिन सवाल ये है कि उनको बतौर एंकर क्यों रखा गया? क्या गोरा चेहरा एंकर होने का मानक है? क्यों नहीं उनकी पत्रकारिता का इतिहास देखा गया? क्यों नहीं उन्हें पहले रिपोर्टिंग के लिए भेजा गय़ा? खबरों को समझने-बूझने का मौका उन्हे क्यों नहीं दिया गया? डेस्क पर उनको कुछ दिनों तक रख कर क्यों नहीं समाचार के बुनियादी तत्वों को समझने का मौका दिया गया? ये कई सवाल हैं भाई और खबरिया चैनलों को इसके लिए सोचना चाहिए। होड़ सिर्फ स्तर गिराने के लिए नहीं होनी चाहिए। आपके चैनल में चाहे पांच हजार अच्छे लोग हों, बेहतर काम करने वाले हो, लेकिन बाहर एंकर ही दिखता है। कम से कम उसके चयन में अनुभव, जानकारी और समर्पण को महत्व जरूर मिलनी चाहिए.
-असित नाथ तिवारी- www.chauthinazar.blogspot.com
आभार -www.bhadas4media.com
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