इलाहाबाद के राजकीय पांडुलिपि संग्रहालय की पोटली में एक और ‘हीरा’स्वर्ण लेप से बनाए गए हैं कथा आधारित चित्र---------
इलाहाबाद। ऊपर से बेनूर दिखने वाले राजकीय पांडुलिपि संग्रहालय की पोटली से एक और ‘हीरा’ मिला है। पिछले दिनों एक विभागीय समारोह के लिए हुई झाड़पोंछ में संग्रहालय को दो सौ से तीन सौ साल पुरानी रामायण, राम चरित मानस, भगवत गीता और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों की पांडुलिपियां मिली हैं। मुगल शासकों के प्रोत्साहन के भी मिले संकेतइतिहासकार इन्हें लेकर हतप्रभ हैं। वे इसे मुगलकालीन पराभव काल के सामाजिक बदलावों से जोड़ कर काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं। उनका कहना है कि शहंशाह अकबर के काल से अनुवाद के साक्ष्य तो मिलते हैं लेकिन शासकों के प्रोत्साहन से हिंदू धर्मग्रंथों का अनुवाद उस दौर को नए नजरिए से देखने में मददगार होगा। संग्रहालय में मौजूद रामचरित मानस की फारसी में लिखी पांडुलिपि की आयु करीब सवा दो सौ साल है। कुल ६७२ पृष्ठों की यह कृति पूरी तरह से सचित्र है और लगभग सभी प्रमुख प्रसंगों के चित्र हस्त निर्मित रंग-ब्रशों से बनाए गए हैं। कई स्थानों पर स्वर्ण लेप का भी इस्तेमाल है। हस्तनिर्मित कागज भी ऐसे हैं कि उनकी चमक अब तक बरकरार है।तब के सामाजिक रिश्ते समझने में होगा मददगारइसी तरह करीब ढाई सौ से तीन सौ साल पुरानी रामायण और महाभारत की भी पांडुलिपियां भी हैं। विषय का विशेषज्ञ न होने के कारण इन पांडुलिपियों के बारे में खुद संग्रहालय के अधिकारी-कर्मचारी भी काफी कम जानते हैं लेकिन वे इनकी दिन ब-दिन दिन खराब हो रही स्थिति से चिंतित हैं। ‘ये पांडुलिपियां अप्रकाशित हैं। इन्हें बचाने की पहल जरूरी, अन्यथा वक्त के साथ भारत की गंगा-यमुना तहजीह के ये बेहतरीन नमूने नष्ट हो जाएंगे।’ ऐसा कहते वक्त पांडुलिपी अधिकारी राम अवध की चिंता साफ दिखाई देती है।‘मुगलकालीन शासन के पराभव काल में भी हिंदू धर्मग्रंथों के अनुवाद के बड़े अर्थ हैं। यह बताता है कि तब समाज में एक दूसरे के धर्म के प्रति कैसी सहिष्णुता थी। ये पांडुलिपियां इतिहासकारों को तब के दौर को समझने के लिए नई रोशनी देंगी।’ - प्रो.सुशील श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास, इलाहाबाद विश्वविद्यालयभूपेश उपाधयाय
Sabhaar - www.amarujala.com
No comments:
Post a Comment