मथुरा (लीजेण्ड न्यूज विशेष) । राष्ट्रीय संग्रहालय (म्यूजियम) के सामने शांति निकेतन नामक भवन में चल रहा ''केडिटी'' कंम्प्यूटर इंस्टीट्यूट फर्जी है। इस इंस्टीट्यूट के संचालक आशुतोष गर्ग द्वारा गैरकानूनी तरीके से लोगों को गुमराह करने के लिए एक लम्बे समय से ''केडिटी'' शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है। सच तो यह है कि आशुतोष गर्ग इस तरह केन्द्र तथा राज्य सरकार की आंखों में भी धूल झोंकते चले आ रहे हैं।इसके अलावा भी आशुतोष गर्ग अन्य कई तरीकों से स्टुडेंट्स को धोखे में रखकर उनका आर्थिक व मानसिक उत्पीड़न कर रहे हैं। स्टुडेंट्स को जब तक इस सच्चाई का पता लगता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है क्योंकि तब वह ''केडिटी'' के जाल में पूरी तरह फंस चुके होते हैं।दरअसल ''केडिटी'' जिसे CEDTI कहा जाता है, की स्थापना केन्द्र सरकार ने ''नॉन सेटअप साइंटफिक सोसायटी'' के रूप में की। 1994 में स्थापित की गई CEDTI (केडिटी) की फुल फॉर्म है '' सेंटर फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स डिजाइन एण्ड टेक्नोलॉजी ऑफ इण्िडया''। सरकार ने ''केडिटी'' की कुल सात शाखाएं स्थापित कीं और सभी को स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिकार दिया। ये शाखाएं क्रमश: औरंगाबाद (महाराष्ट्र), गोरखपुर (यूपी), कालीकट, इम्फाल, सासनगर, श्रीनगर/ जम्मू, तथा तेजपुर में स्थापित की गईं। ''केडिटी'' का अपने-अपने क्षेत्रों में विस्तार करने के लिए इन संस्थाओं ने इसकी फ्रेंचाइजी दीं। इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में 'केडिटी'' एक जाना पहचाना नाम बन गया।कुछ समय बाद ''केडिटी'' को DOEACC (डोएक) सोसाइटी'' नाम दे दिया गया जिस कारण अब इस संस्था के सभी केन्द्र DOEACC (डोएक) केन्द्र कहलाने लगे। डोएक की फुल फॉर्म है- ''डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रानिक्स एण्ड एक्रीडिटेशन ऑफ कम्प्यूटर कोर्सेज'' जिसके तहत पांच स्तर के कम्प्यूटर कोर्स कराये जाते हैं। A से लेकर O लेवल तक के कम्प्यूटर कोर्स इसी के तहत आते हैं।बताया जाता है कि आज ''केडिटी'' के नाम का अपने निजी हित में प्रयोग कर रहे आशुतोष गर्ग ने कभी केडिटी सेंटर गोरखपुर से मथुरा के लिए फ्रेंचाइजी ली थी इसलिए वहां होने वाले हर परिवर्तन की जानकारी उन्हें रही। जब ''केडिटी'' को ''डोएक'' में तब्दील किया गया तो आशुतोष गर्ग ने ''केडिटी'' की प्रसिद्धि का लाभ उठाने की नीयत से अपने सेंटर का नाम ही ''केडिटी कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट'' रख लिया जो पूरी तरह अवैध है।इस सम्बन्ध में गोरखपुर ''केडिटी'' जिसे अब गोरखपुर डोएक सेंटर के नाम से जाना जाता है, के डायरेक्टर एच। पी. शुक्ला से जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कहा कि अब कोई शिक्षण संस्था CEDTI (केडिटी) शब्द का हिंदी या इंग्लिश में इस्तेमाल नहीं कर सकती और यदि कोई ऐसा कर रहा है तो वह पूरी तरह गैरकानूनी है। ऐसा करने वाली संस्था और व्यक्ित के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही का प्राविधान है।जब इस सम्बन्ध में ''केडिटी कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट'' मथुरा के संचालक आशुतोष गर्ग से पूछा गया कि उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट का नाम CEDTI (केडिटी) के नाम पर कैसे रखा हुआ है तो उनका कहना था कि उन्होंने यह नाम रजिस्टर्ड करवा लिया है।''केडिटी'' के रजिस्ट्रेशन सम्बन्धी कागजातों की फोटोकॉपी उपलब्ध कराने को कहे जाने पर उन्होंने कहा कि वह मथुरा से बाहर (मेरठ) हैं और दो दिन बाद वापस आने पर फोटोकॉपी भिजवा देंगे लेकिन आज दो दिन बाद भी उन्होंने रजिस्ट्रेशन की फोटोकॉपी नहीं भिजवाई। यहां तक कि फोटोकॉपी के लिए उनके मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक आशुतोष गर्ग ने केडिटी का तो नहीं ''डीपीएस एजुकेशनल सोसायटी'' के नाम से रजिस्ट्रेशन करा रखा है और अपने स्टुडेंट्स को भी इसी संस्था का सर्टीफिकेट देते हैं।यही नहीं गोरखपुर डोएक सेंटर से इन्हें O (ओ) लेवल तक के जिन कम्प्यूटर कोर्सेज को कराने का अधिकार प्राप्त है, वह अधिकार भी ''डीपीएस एजुकेशनल सोसायटी'' को ही मिला है न कि ''केडिटी कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट'' को।गोरखपुर डोएक सेंटर के अधिकारियों का कहना है कि जब केडिटी अस्तित्व में था तब भी किसी संस्था को अपने लिए उसे सीधे इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं था। तब वह इससे सम्बद्ध (एफीलेटेड) लिख सकते थे, न कि केडिटी के नाम से अपनी निजी संस्था चला सकते थे।इस सबके अलावा भी आशुतोष गर्ग ऐसा बहुत कुछ कर रहे हैं जो स्टुडेंट्स को गुमराह करने तथा उनके साथ धोखाधड़ी करने की परिधि में आता है। उनके द्वारा चालू शिक्षा सत्र हेतु छपवाये गये हेंडबिल व पेंपलेट पर गौर करें तो सारी बात समझ में आ जाती है।उदाहरण के लिए आशुतोष गर्ग ने अपने अधिकांश हेंडबिल में ''एडवांटेज फॉर स्टुडेंट्स'' के अंतर्गत लिखा है: नम्बर 1- पूरे कोर्स के बाद न्यूनतम रू. 2, 25000/- P.A. के पैकेज वाली नौकरी की लिखित गारंटी**, नम्बर 2- आधे कोर्स के बाद रू. 1, 25000/- P.A. की जॉब ट्रेनिंग** , नम्बर 3- Join 'B' Level FREE* 'A' Level. Join 'A' Level FREE* 'O' Level.इस ''गारंटी'', ''ट्रेनिंग'' तथा ''फ्री'' जैसे प्रलोभन वाले शब्दों के साथ स्टार (* *) लगाकर हेंडबिल के एक कोने में फिर छोटा सा लिखवा दिया है- T & C Apply जिसका अर्थ है नियम व शर्तें लागू। ये नियम व शर्तें क्या हैं, इसका पूरे हेंडबिल में कहीं कोई उल्लेख नहीं किया जाता। इसी प्रकार स्टार लगाकर एक जगह लिखा गया है- प्रत्येक छात्र को हमेशा के लिए लेपटॉप कम्प्यूटर। इस बावत भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। इस प्रकार के स्टार पूरे हेंडबिल में विभिन्न स्थानों पर लगाये गये हैं। यह हेंडबिल दोनों ओर से छपा है।कथित केडिटी कम्प्यूटर संस्थान द्वारा प्रसारित उक्त हेंडबिल में कहीं भी प्रिंटिंग प्रेस का स्पष्ट नाम नहीं है। एक हेंडबिल पर आड़े अक्षरों में VIJAY के साथ मोबाइल नम्बर छपा है तो दूसरे में VIJAY PRESS लिखकर मोबाइल नम्बर छपा है जबकि ऐसे किसी भी हेंडबिल, पेंपलेट या पोस्टर पर प्रिंटिंग प्रेस का नाम पूरे व स्पष्ट पते के साथ होना कानूनन अनिवार्य है। साफ है कि प्रिंटिंग प्रेस का पूरा नाम व पता भी इरादतन नहीं छपवाया जाता।यही नहीं, केडिटी के नाम का गैर कानूनी तरीके से इस्तेमाल कर आशुतोष गर्ग जिस क्षेत्र में अपना कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट चला रहे हैं, वह भी रेजीडेंसल (रिहायशी) है न कि कॉमर्शियल (व्यावसायिक) क्षेत्र। किसी रिहायशी इलाके में व्यावसायिक केन्द्र संचालित करना भी कानूनन अपराध है लेकिन आशुतोष गर्ग बेखौफ होकर एकसाथ ऐसे तमाम गैरकानूनी कार्य वर्षों से कर रहे हैं।आशुतोष गर्ग अपने यहां पढ़ने वाले स्टुडेंट्स के वाहन तो नगर पालिका की जमीन यानि सड़क पर पार्क कराते हैं लेकिन पार्किंग टेक्स खुद वसूलते हैं। इस सम्बन्ध में उनका कहना है कि उन्होंने इसकी इजाजत के लिए नगर पालिका प्रशासन में प्रार्थना पत्र दिया हुआ है। यदि उनकी यह बात मान भी ली जाए तो क्या पालिका प्रशासन उन्हें पार्किंग टेक्स वसूलने की भी इजाजत दे देगा। और यदि वह जानते हैं कि ऐसा संभव नहीं है तो फिर वह स्टुडेंट्स से वसूला जा रहा पार्किंग टेक्स अपनी जेब में किस हैसियत से रख रहे हैं।मजे की बात यह है कि इंस्टीट्यूट के नाम से लेकर शिक्षा तक के मामले में झूठ का सहारा लेने वाले केडिटी कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट के संचालक आशुतोष गर्ग अपने हेंडबिल में लिखते हैं- '' जागो छात्र जागो, जागो अभिभावको जागो''। वह यह भी लिखते हैं कि कैसे सही संस्थान के बारे में जानें तथा फर्जी से बचें। कैसे पहचानें फर्जी कोर्स कराने वालों को। वह अपने हेंडबिल में प्रमुखता के साथ यह भी छपवाते हैं कि हमारे यहां कोर्स की जानकारी करने वाले का नाम, पता तथा टेलीफोन नम्बर नोट नहीं किया जाता जिससे आपको न तो टेलीफोन करके और न ही आपके घर पर कर्मचारियों को भेजकर, तरह-तरह के प्रलोभन एवं झूठे सपने दिखाकर एडमीशन के लिए परेशान किया जाता है। न हर हफ्ते/ महीने झूठी प्रवेश परीक्षा अथवा छात्रवृत्ति परीक्षा का नाटक किया जाता है।अपने संस्थान को मथुरा का नम्बर 1 बताने वाले आशुतोष गर्ग के दावों का सीधा-सीधा अर्थ यही निकलता है कि उनके अलावा बाकी अधिकांश कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट्स अपने स्टुडेंट्स को गुमराह कर रहे हैं जबकि उनकी अपने इंस्टीट्यूट की बुनियाद ही झूठे नाम पर टिकी है।सच तो यह है कि कोई भी नामचीन शिक्षण संस्था ऐसे हथकण्डों का इस्तेमाल नहीं करती जिनका उल्लेख आशुतोष गर्ग अपने इंस्टीट्यूट के हेंडबिल में कर रहे हैं। वह दूसरे संस्थानों के संदर्भ में इसका जिक्र करके क्या जाहिर कराना चाहते हैं, इसे कोई सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ित भी आसानी से समझ सकता है।रहा सवाल केडिटी सहित किसी भी शिक्षण संस्था द्वारा अपने स्टुडेंट्स को नौकरी की लिखित गारंटी देने का तो आज के हालातों में इससे बड़ा झूठ, इससे बड़ा धोखा, इससे बड़ा छल दूसरा कोई नहीं हो सकता लेकिन शिक्षा माफिया यह सब बखूबी कर रहे हैं क्योंकि न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला।शिक्षा के नाम पर गली-गली चल रही दुकानों पर जब तक कानून का शिकंजा सही तरीके से कसा नहीं जायेगा तब तक न तो आशुतोष गर्ग जैसे व्यवसायी कम होंगे और न स्टुडेंट्स की आंखों में धूल झोंककर अपनी तिजोरियां भरने वालों की संख्या पर अंकुश लगेगा।
साभार-www.legendnews.in
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