क्या उत्तर प्रदेश में इन दिनों हो रहे पंचायतों के चुनावों में तमाम शराबी-कबाबी प्रत्याशी और अमरकृति "मधुशाला" के रचयिता हरिवंश राय बच्चन में कोई कामन प्लेटफ़ॉर्म भी है? कल बहराइच (यूपी) के एक फ्रीलांस जर्नलिस्ट व सोशल एक्टिविस्ट हरिशंकर शाही का जो मेल मिला उससे तो कुछ ऐसा ही जान पड़ता है. उन्होंने अपने मेल में लिखा कि "समाचार पत्र हिंदुस्तान के लखनऊ से प्रकाशित बहराइच संस्करण में डा. हरिबंश राय बच्चन कि रचना मधुशाला की पंक्तियों का बहुत अभद्र प्रयोग हुआ है." उनका यह अनुरोध था कि- "कृपया मदद करें साहित्य का मजाक ना बनने दें."
इस पर मैंने उन्हें पूरे विषय वस्तु तथा उस खबर से अवगत कराने को कहा. हरिशंकर शाही ने इसके जवाब में समाचार पत्र में छपी वह खबर और इसके साथ एक स्वयं का मेल भेजा है जिसमे उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई है. उनका मुख्य रूप से यह कहना है कि जिस प्रकार से मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन की बहुप्रशंसित "मधुशाला" की पंक्तियों का उद्धरण जिले के शराबियों और मवालियों से तुलना करने के लिए किया गया है वह उचित नहीं है और साहित्य की मर्यादा के साथ सीधा छेड़-छाड़ है. वे इस बात से गहरे आहत हैं कि जिस मधुशाला की रचना बच्चन ने जीवन के गूढ़-गंभीर सिद्धांतों को प्रतिपादित करने, समाज के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर खोजने और दार्शनिक अनुसंधान के लिए किया था, ये पत्रकार महोदय उसका प्रयोग तमाम शराबी और कबाबी पंचायत के प्रत्याशियों के सम्बन्ध में कर रहे हैं. हरिशंकर द्वारा उठाई गई बात से कई लोगों की असहमति हो सकती है फिर भी उनके द्वारा उठाई गयी बात सुनने-समझने लायक तो है ही.
डॉ. नूतन ठाकुर
सम्पादक, पीपुल्स फोरम, लखनऊ
इस पर मैंने उन्हें पूरे विषय वस्तु तथा उस खबर से अवगत कराने को कहा. हरिशंकर शाही ने इसके जवाब में समाचार पत्र में छपी वह खबर और इसके साथ एक स्वयं का मेल भेजा है जिसमे उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई है. उनका मुख्य रूप से यह कहना है कि जिस प्रकार से मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन की बहुप्रशंसित "मधुशाला" की पंक्तियों का उद्धरण जिले के शराबियों और मवालियों से तुलना करने के लिए किया गया है वह उचित नहीं है और साहित्य की मर्यादा के साथ सीधा छेड़-छाड़ है. वे इस बात से गहरे आहत हैं कि जिस मधुशाला की रचना बच्चन ने जीवन के गूढ़-गंभीर सिद्धांतों को प्रतिपादित करने, समाज के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर खोजने और दार्शनिक अनुसंधान के लिए किया था, ये पत्रकार महोदय उसका प्रयोग तमाम शराबी और कबाबी पंचायत के प्रत्याशियों के सम्बन्ध में कर रहे हैं. हरिशंकर द्वारा उठाई गई बात से कई लोगों की असहमति हो सकती है फिर भी उनके द्वारा उठाई गयी बात सुनने-समझने लायक तो है ही.
डॉ. नूतन ठाकुर
सम्पादक, पीपुल्स फोरम, लखनऊ
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