अखबार मालिक का सबसे बड़ा सुख क्या हो सकता है? अखबार इंडस्ट्री में काम करने वाले और अखबार मालिकों को नजदीक से जानने वाले तो यही कहेंगे कि जब अखबार मालिक ने करोड़ों रुपए लगाकर मल्टी एडीशन खोले हैं तो वह अखबार से होने वाली कमाई से कम तो किसी भी बात से खुश नहीं होगा। या फिर इस बात पर कि उनके अखबार ने किन बड़े मुद्दों को उठाया और समाज के जाने कितने लोगों का भला कराया। लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऐसी सोच रखने वाले गलती पर हैं। उन्हें अपनी सोच बदलनी होगी। मध्यप्रदेश में डेढ़ साल पहले पैदा (हां पैदा) होने वाले एक अखबार मालिक अखबार की कमाई या अखबार के प्रसार से ज्यादा इस बात पर खुश होते हैं कि आज फलां मंत्री का टेलीफोन मेरे मोबाइल पर आया था। आज फलां.... की बीवी ने मुझसे मोबाइल पर बात की।
तरस आता है इन मालिकों की इस ऊंची सोच पर कि वे इस बात को सार्वजनिक करने से भी नहीं चूकते। हाल ही में इस अखबार के मालिक ने एक पार्टी में अपने इस टेलीफोन सुख को सार्वजनिक किया। इस रात्रि कालीन पार्टी का हिस्सा बने लोगों ने इस अखबार के मालिकों की बात को मौके पर तो शालीनता से सुना पर पार्टी के बाद खुसुर-पुसर करते नजर आए कि क्या करोड़ों रुपए सिर्फ इस बात के लिए खर्च किए हैं कि फलां मंत्री उन्हें रोज सुबह टेलीफोन करके गुड मार्निंग करते हैं या फिर फलां की बीवी उन्हें टेलीफोन करके रोज हाल जानती हैं। लेकिन कुछ लोगों को इस पर भी संतोष नहीं हुआ और उन्होंने पूछ ही डाला इतना सब होने पर भी आपका अखबार नजर तो आता नहीं है। यहां लिखना उचित ही होगा कि भोपाल से लेकर इंदौर-ग्वालियर जबलपुर तक में तैनात प्रमुख लोगों से अखबार के मालिक इसी बात को लेकर अप्रसन्न थे कि वे जब भोपाल में रहतें हैं या भोपाल से बाहर निकलते हैं तो वहां के मंत्री-कमिश्नर-महानिरीक्षक पुलिस-कलेक्टर-एसपी उन्हें न तो टेलीफोन करते हैं न ही कभी उनसे मिलने आते हैं। अब इन्हें कौन बताए कि कम से कम उक्त लोगों ने तो इन्हें मंत्र नहीं दिया होगा कि वे अखबार शुरू करें और फिर वे लोग (जिनके पद लिखे हैं) उन्हें हाजिरी भरने आएंगे?
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर
तरस आता है इन मालिकों की इस ऊंची सोच पर कि वे इस बात को सार्वजनिक करने से भी नहीं चूकते। हाल ही में इस अखबार के मालिक ने एक पार्टी में अपने इस टेलीफोन सुख को सार्वजनिक किया। इस रात्रि कालीन पार्टी का हिस्सा बने लोगों ने इस अखबार के मालिकों की बात को मौके पर तो शालीनता से सुना पर पार्टी के बाद खुसुर-पुसर करते नजर आए कि क्या करोड़ों रुपए सिर्फ इस बात के लिए खर्च किए हैं कि फलां मंत्री उन्हें रोज सुबह टेलीफोन करके गुड मार्निंग करते हैं या फिर फलां की बीवी उन्हें टेलीफोन करके रोज हाल जानती हैं। लेकिन कुछ लोगों को इस पर भी संतोष नहीं हुआ और उन्होंने पूछ ही डाला इतना सब होने पर भी आपका अखबार नजर तो आता नहीं है। यहां लिखना उचित ही होगा कि भोपाल से लेकर इंदौर-ग्वालियर जबलपुर तक में तैनात प्रमुख लोगों से अखबार के मालिक इसी बात को लेकर अप्रसन्न थे कि वे जब भोपाल में रहतें हैं या भोपाल से बाहर निकलते हैं तो वहां के मंत्री-कमिश्नर-महानिरीक्षक पुलिस-कलेक्टर-एसपी उन्हें न तो टेलीफोन करते हैं न ही कभी उनसे मिलने आते हैं। अब इन्हें कौन बताए कि कम से कम उक्त लोगों ने तो इन्हें मंत्र नहीं दिया होगा कि वे अखबार शुरू करें और फिर वे लोग (जिनके पद लिखे हैं) उन्हें हाजिरी भरने आएंगे?
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर
sabhaar - www.bhadas4media.com
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