मेरी अखबारी जिंदगी साठ साल की हो गई है, लेकिन कभी किसी ने मुझे घूस देने की कोशिश नहीं की। अब तो मैंने मान ही लिया है कि कोई मुझे घूस देने लायक समझता ही नहीं। आखिर जो कुछ भी मैं लिखता हूं, उसका उनके लिए कोई मतलब नहीं है।
मैं तो फिक्सर के तौर पर भी फ्लॉप ही रहा हूं। कई बार लोगों ने मुझसे कहा कि फलाने-फलाने बड़े आदमी हैं, उनसे सिफारिश कर दीजिए। मैं झिझकता था, लेकिन उनकी बात मान कर लिख देता था। मुझे याद नहीं कि कभी कोई काम हो सका हो। अभी तक जो भी घूस मैंने ली है, वह चापलूसी ही है, खासतौर पर जब कोई खूबसूरत महिला करती है। तब मैं खुश होकर उनकी किताबों पर लिख देता हूं। उनके काम की तारीफ कर देता हूं। उनकी खूबसूरती के कसीदे काढ़ देता हूं। उनके लिए कुछ भी कर डालता हूं, लेकिन काम निकल जाने के बाद फिर वे मुझसे मिलने की कोशिश तक नहीं करतीं।
हाल ही में हमारे दो बड़े पत्रकार इसे लेकर चर्चा में रहे हैं। एक अखबार के हैं और दूसरी टीवी से जुड़ी हुई हैं। कुछ बड़े औद्योगिक घरानों से जुड़ी एक पीआर महिला के टेप लीक हो गए। उस महिला से इन पत्रकारों की बातचीत को लेकर बवाल मचा हुआ है। मैंने भी उस सबको सुनने-पढ़ने की कोशिश की, लेकिन मुझे तो उसमें कुछ भी अनैतिक लगा नहीं। वह पीआर महिला उनसे अपनी फर्म के लिए कुछ पैरवी करने की अपील कर रही है और उसे ये पत्रकार सुन रहे हैं। आखिर कोई भी बात हो पत्रकारों को सुननी ही चाहिए। अगर सुनेंगे ही नहीं तो लिखेंगे कैसे? फिर अपनी सोच-समझ के मुताबिक ‘स्टोरी’ करनी चाहिए। एक बड़े चैनल की उस महिला पत्रकार से एक नेता के लिए सिफारिश की अपील की, लेकिन इतने से ही कोई बात नहीं बनती। मेरा मानना है कि मीडिया की किसी बात का कोई वजन होता ही नहीं। इसलिए सिफारिश का कोई मतलब नहीं। अब कई लोगों ने बवाल मचा दिया है कि इन सिफारिशों के लिए उन्हें भारी पैसे दिए गए। मुझे नहीं लगता कि ऐसा हुआ होगा। ये सब उनकी छवि को बिगाड़ने की साजिश है। इस स्टोरी में कुछ भी नहीं है।
((हिंदुस्तान से साभार))
मैं तो फिक्सर के तौर पर भी फ्लॉप ही रहा हूं। कई बार लोगों ने मुझसे कहा कि फलाने-फलाने बड़े आदमी हैं, उनसे सिफारिश कर दीजिए। मैं झिझकता था, लेकिन उनकी बात मान कर लिख देता था। मुझे याद नहीं कि कभी कोई काम हो सका हो। अभी तक जो भी घूस मैंने ली है, वह चापलूसी ही है, खासतौर पर जब कोई खूबसूरत महिला करती है। तब मैं खुश होकर उनकी किताबों पर लिख देता हूं। उनके काम की तारीफ कर देता हूं। उनकी खूबसूरती के कसीदे काढ़ देता हूं। उनके लिए कुछ भी कर डालता हूं, लेकिन काम निकल जाने के बाद फिर वे मुझसे मिलने की कोशिश तक नहीं करतीं।
हाल ही में हमारे दो बड़े पत्रकार इसे लेकर चर्चा में रहे हैं। एक अखबार के हैं और दूसरी टीवी से जुड़ी हुई हैं। कुछ बड़े औद्योगिक घरानों से जुड़ी एक पीआर महिला के टेप लीक हो गए। उस महिला से इन पत्रकारों की बातचीत को लेकर बवाल मचा हुआ है। मैंने भी उस सबको सुनने-पढ़ने की कोशिश की, लेकिन मुझे तो उसमें कुछ भी अनैतिक लगा नहीं। वह पीआर महिला उनसे अपनी फर्म के लिए कुछ पैरवी करने की अपील कर रही है और उसे ये पत्रकार सुन रहे हैं। आखिर कोई भी बात हो पत्रकारों को सुननी ही चाहिए। अगर सुनेंगे ही नहीं तो लिखेंगे कैसे? फिर अपनी सोच-समझ के मुताबिक ‘स्टोरी’ करनी चाहिए। एक बड़े चैनल की उस महिला पत्रकार से एक नेता के लिए सिफारिश की अपील की, लेकिन इतने से ही कोई बात नहीं बनती। मेरा मानना है कि मीडिया की किसी बात का कोई वजन होता ही नहीं। इसलिए सिफारिश का कोई मतलब नहीं। अब कई लोगों ने बवाल मचा दिया है कि इन सिफारिशों के लिए उन्हें भारी पैसे दिए गए। मुझे नहीं लगता कि ऐसा हुआ होगा। ये सब उनकी छवि को बिगाड़ने की साजिश है। इस स्टोरी में कुछ भी नहीं है।
((हिंदुस्तान से साभार))
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