न्यूज चैनलों की जमात में जल्द ही एक और न्यूज चैनल शामिल होने जा रहा है. न्यूज एक्सप्रेस नाम से आनेवाला यह चैनल मई के आखिरी सप्ताह तक लांच होने जा रहा है. इसके लिए तैयारियां जोरों पर हैं और दिल्ली से लेकर देशभर में ब्यूरो आफिस खोल दिये गये हैं. बतौर चैनल हेड मुकेश कुमार चैनल लाने की तैयारियों में जुटे हैं जो हाल फिलहाल में मौर्य टीवी से मुक्त होकर दिल्ली लौटे हैं. नोएडा के सेक्टर 63 में पत्रकारों की नियुक्ति से लेकर स्टूडियो निर्माण तक की सब कुछ बड़ी तेजी से पूरा किया जा रहा है. इन्हीं तैयारियों के बीच हमने न्यूज एक्सप्रेस के न्यूज डायरेक्टर और चैनल हेड मुकेश कुमार से बातचीत की.
सवाल- भारत में न्यूज चैनलों का क्या भविष्य देखते हैं आप?
जवाब- यह तो निर्विवाद है कि माध्यम के रूप में टीवी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है लेकिन टीवी पर पत्रकारिता का भविष्य बहुत उज्जवल है इसे बहुत विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता. क्योंकि जिस तरह से एक तरफ सरकार ने और दूसरी तरफ बाजार ने पत्रकारिता का गला पकड़ रखा है उसमें उसकी मुखरता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है. इसलिए टीवी माध्यम के विकास की संभावनाएं बहुत प्रबल हैं लेकिन टीवी पत्रकारिता की संभावनाएं बहुत दुर्बल हैं.
सवाल- यह विरोधाभास क्यों है?
जवाब- विरोधाभास इसलिए क्योंकि जब सारी चीजें खरीद, फरोख्त और नफा नुकसान के आधार पर तय होगी तो जिन मूल्यों पर पत्रकारिता खड़ी होती है और चलती है वह खतरे में पड़ जाती है. उसके विकास की संभावनाएं कुंद पड़ने लगती हैं. पिछले दो दशकों से हम इसे अपनी आंखों से देख रहे हैं. उससे पहले हालात बहुत अच्छे थे ऐसा नहीं कहा जा सकता लेकिन पिछले दो दशक में स्थितियां बद से बदतर हुई हैं.
सवाल- क्या इन्फोटेनमेन्ट का दौर भी चला गया?
जवाब- अभी वह दौर खत्म नहीं हुआ है.
सवाल- लेकिन इस इन्फोटेनमेन्ट में इन्फार्मेशन कहां है?
जवाब- इन्फार्मेशन है. लेकिन इन्फार्मेशन सेलेक्टिव हैं. एक खास वर्ग को ध्यान में रखकर ही वह सूचना चुनी और परोसी जा रही है. टीवी का उपभोक्ता वर्ग के लिए पूरा कन्टेट प्लान हो रहा है. और बाजार कभी नहीं चाहेगा कि प्रबुद्ध और जागरूक वर्ग ज्यादा जाने या समझे. मीडिया के जरिए बाजार एक ऐसा मानस बनाने में लगा हुआ है जिसमें सिर्फ बाजार ही बाजार फले फूले. समाज, व्यक्ति, जीवन, पत्रकारिता सब हाशिये पर ढकेल दिये गये हैं. एक ऐसा समाज गढ़ने की कोशिश है जिसमें नागरिक की बजाय उपभोक्ता तैयार किया जा रहा है. समाचार भी इसी उपभोक्ता को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है. इससे कोई मतलब नहीं है कि उसका समाज पर अच्छा असर पड़ता है या बुरा असर होता है.
सवाल- तो क्या सक्षम माध्यम अक्षम काम कर रहा है?
जवाब- यह मैं नहीं कह रहा हूं. यह पूरी दुनिया कह रही है कि इस माध्यम का दुरूपयोग हो रहा है. दूरदर्शन को शुरू करते हुए जो उद्येश्य और सरोकार निर्धारित किये गये थे, वे आज कहां है? टीवी का शुरूआती एजेण्डा तो कब का पीछे छूट चुका है. नयी आर्थिक नीतियों ने तो इसे और भी गहरे कब्र में दफन कर दिया है. जो थोड़ा बहुत सरोकार चैनलों में दिखता है वह कुछ और नहीं बल्कि पाप को पाटने का पाखण्ड है. उसमें दिखावा ज्यादा है. चैनलों का कमिटमेन्ट तो विज्ञापनदाताओं के प्रति ही है. पर्यावरण को नाश करनेवाले लोग टीवी पर पर्यावरण बचाने के अभियान के प्रायोजक बने नजर आते हैं. इसे आप क्या कहेंगे?
इस बात का बहुत असर पड़ता है कि मालिकाना हक किसके पास है. जनता तय नहीं करती कि कौन सा चैनल क्या दिखाएगा. यह तो आखिरकार चैनल ही करता है कि वह क्या दिखाएगा.
सवाल- कोई भी टीवी चैनल आने को होता है तो वही बातें करता है जो आप कर रहे हैं. लेकिन जब चैनल चलने लगता है तो वही दिखाता है जो पहले से मौजूद चैनल दिखा रहे होते हैं. कथनी और करनी के इस भेद का कारण क्या है?
जवाब- लोगों की बात तो मैं नहीं कर सकता लेकिन निजी तौर पर मैं कह सकता हूं कि हमारी एक प्रतिबद्धता है और उस प्रतिबद्धता पर हम खरा उतरने की कोशिश करते हैं. हम जो कहते हैं उसे प्रयोग करने की कोशिश करते हैं. पलटकर देखने की जरूरत नहीं है कि कौन क्या कह रहा है. ऐसे में धन लगानेवाला का थोड़ा बहुत दबाव तो रहता ही है. लेकिन इन सीमांकनों के बीच भी एक अच्छी पत्रकारिता करने की कोशिश करते हैं. मौर्य टीवी में जब तक मैं काम करता रहा हमने कभी उन खबरों को जगह नहीं दी जिसके लिए देश के कुछ नेशनल चैनल कुख्यात हैं.
सवाल- लेकिन टीवी समाचार में बड़ा पैसा निवेश करनेवाला क्या प्रयोग के सफल होने का इंतजार करने का धैर्य रखता है?
जवाब- मैं मानता हूं कि हमें (पत्रकारों को) कोशिश करते रहना चाहिए. हो सकता है आज किसी के समझ में नहीं आ रहा है वह कल आ जाए.
सवाल- नये चैनल में बाजार और सरोकार के बीच सामंजस्य कैसे बैठाएंगे?
जवाब- मैं एक बार फिर एक प्रयोग करने जा रहा हूं कि क्या हम कन्टेन्ट के स्तर पर कुछ ऐसा प्रयोग कर सकते हैं जो हल्का भी न हो और दर्शक उससे बंधकर बैठना भी चाहे. अच्छे कन्टेन्ट की जन टीआरपी हासिल करने की कोशिश करने जा रहा हूं. देखते हैं क्या होता है. अभी तक हमारा कोई डेढ़ दशक का अनुभव है. और उस अनुभव के आधार पर हम कुछ अच्छे कन्टेट का प्रयोग करने जा रहे हैं.
सवाल- इसे थोड़ा और स्पष्ट करिए?
जवाब- हम राजनीतिक चैनल ला रहे हैं और राजनीति को रिपोर्ट करेंगे. सिर्फ सत्ता के गलियारों की राजनीतिक की बजाय हम हर तरह की राजनीति को हम अपनी रिपोर्टिंग का आधार बनाएंगे.
सवाल- चैनल में कुछ ब्राण्ड पत्रकार भी शामिल होंगे?
जवाब- ब्राण्ड पत्रकार तो नहीं लेकिन विश्वसनीय पत्रकारों को हम अपने साथ जरूर जोड़ रहे हैं जिनका पत्रकारिता और टीवी में लंबा अनुभव रहा है. टीवी में जो ब्राण्ड पत्रकार हैं वे बाजार के औजार हैं, हम उन औजारों को लेकर कोई प्रयोग करने के बारे में नहीं सोच रहे हैं. हमें खबरों को बेचनेवाला सेल्समैन नहीं चाहिए.
सवाल- तकनीकि के स्तर पर क्या नयापन ला रहे हैं?
जवाब- न्यूज एक्स्प्रेस देश का पहला एचडी प्लेटफार्म पर चलनेवाला न्यूज चैनल होगा. इसके लिए हम सामान्य तकनीकि से करीब चालीस प्रतिशत अधिक खर्च कर रहे हैं
Sabhar;- Visfot.com
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