लखनऊ के वरिष्ठ टीवी पत्रकार आलोक गुप्ता को अपनी मेहनत और निष्ठा का इनाम मिल गया है। आलोक अब सहारा समय यूपी के ब्यूरो चीफ बन बन गए हैं। आलोक गुप्ता लखनऊ के धुरंधर पत्रकारों में से एक हैं। पिछले करीब आठ सालों से आलोक सहारा के लखनऊ ब्यूरो में ही हैं। पिछले कई बरसों से आलोक वहां नम्बर दो की हैसियत में रहे हैं। आलोक की मेहनत की बदौलत सहारा का हर ब्यूरो चीफ बड़े मजे में रहा है, क्योंकि आलोक यूपी के चप्पे चप्पे से वाकिफ हैं।
जब भी यूपी में कोई बड़ी घटना होती है या फिर कोई बड़ा इवेंट होता है, सहारा ग्रुप सिर्फ आलोक गुप्ता पर ही भरोसा करता रहा है। अपनी इसी मेहनत, लगन और संस्थान के प्रति निष्ठा के चलते आलोक गुप्ता ग्रुप में हमेशा अपने सीनियर्स के प्रिय रहे है, नए प्रबंधन ने उन पर भरोसा जताया है और इस बार उन्हें अच्छा इनाम मिला है। आलोक स्वतंत्र मिश्रा की भी गुड बुक में हैं.. लिहाजा स्वतंत्र मिश्रा ने कमान संभालने के बाद आलोक को ब्यूरो चीफ बना दिया। आलोक गुप्ता करीब 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। सहारा समय से पहले कई अखबारों और पत्रिकाओं में उन्होंने काम किया। कई खोजी रिपोर्ट भी की। उनकी रिपोर्टिंग स्किल से ही उन्हें सहारा में जगह मिली। तबसे वे लगातार सहारा में ही बने हुए हैं।
आलोक गुप्ता शानदार रिपोर्टर तो हैं ही, बेहद डाउन टू अर्थ भी हैं। इतने सीनियर होने के बावजूद आज भी उन्हें धरना प्रदर्शन की कवरेज से कोई गुरेज नहीं है। व्यावहारिक रूप से आलोक काफी सुलझे हुए हैं, यही वजह है कि वे कभी किसी विवाद में नहीं पड़े..। सभी लोगों से उनके मधुर संबंध बने रहे। यूपी के कई अफसरों, मंत्रियों से भी आलोक के अच्छे संबंध हैं। आलोक गुप्ता को रिपोर्टिंग के लिए प्रदेश स्तर के कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। पिछले दिनों आलोक को लखनऊ में छत्तीसगढ़ की पत्रिका लोकायत की तरफ एक सम्मान समारोह में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने आलोक को सम्मानित किया।
आलोक काफी संघर्ष के बाद यहां तक पहुंचे हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब उनके पिता जी उनके लिए मेडिकल स्टोर खोलने की तैयारियों में लगे थे, लेकिन आलोक की जिद थी कि वे पत्रकारिता ही करेंगे। आखिर आलोक सही साबित हुए। भड़ास4 मीडिया से बातचीत में आलोक ने उन्हें यूपी ब्यूरो चीफ बनाए जाने की पुष्टि की। आलोक ने कहा-मेरा ध्यान कल भी काम करने में था, आज भी है। मेरे लिए पद का कोई मायने नहीं है, लेकिन खुशी इस बात की हुई कि संस्थान ने मेरे काम को सराहा, मुझे एक नई पहचान दी। आज मेरी जो भी पहचान है, वो सहारा की वजह से ही है।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित
Sabhar:- Bhadas4media.com
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