जगदलपुर, 10 अगस्त। देश के 80 प्रतिशत टिन का भंडार बस्तर संभाग में पाया गया है। टिन के साथ कालंबाईट जिसकी और जिसके सह उत्पादों की गिनती एटॉमिक मिनरल के रूप में की जाती है, ऐसे दुर्लभ खनिज की लूट जिस तरह से बस्तर में की जा रही है वैसी शायद विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलेगी। टिन और कालंबाईट जिसके स्लैग में मौजूद सामरिक महत्व के एटॉमिक अवशेषों की मांग पूरे विश्व में है ऐसे खनिज की यहां धड़ल्ले से तस्करी की जा रही है और बड़ी मात्रा में चीन जैसे दुश्मन देशों को बेचा जा रहा है। इस पूरे कारोबार में करोड़ों डॉलर कमाने वाले ही गुनहगार नहीं हैं बल्कि छत्तीसगढ़ के खनिज विकास निगम की गलत नीतियों भी इस अवैध कारोबार को फूलने फलने में पूरी मदद कर रही है।
बस्तर के बोदेनार के जंगलों में भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग इस खनिज की महत्ता को समझते हुए पिछले अठारह सालों से बड़ी गोपनीयता के साथ इसके उत्खनन से देश की परमाणु ताकत को बढ़ा रहा है वहीं खनिज विकास निगम की संदेहास्पद नीतियों के चलते इस बेशकीमती खनिज को दुश्मन देशों तक पहुंचने की खुली राह मिली हुई है। दंतेवाड़ा में काफी देर ही से सही प्रशासन ने इसे गम्भीरता से लिया है और अब इसकी बिक्री पर रोक लगा दी गयी है। बस्तर और दंतेवाड़ा जिले में पेगमेटाईट चट्टानों का नैसर्गिक जाल सैकड़ों वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसमें पाये जाने वाला केसेटेराईट और उसके एसोसियेट मिनरल में टिन और कालंबाईट प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इसी में पाये जाने वाले टेंटलम कोलंबियम, थोरियम डाईआक्साईड नियोबियम पेंटॉक्साईड और आणविक अयस्क यूरेनियम ऑक्टॉक्साईड, जिसे पाने दुनिया के देश लालयित है, ऐसे बहुमूल्य खनिज की लूट यहां लगातार जारी है। देश के परमाणु ऊर्जा विभाग के अलावा इन सारे खनिजों पर किसी का भी अधिकार नहीं है, ऐसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में लगातार लापरवाही बरती गयी है।
सबसे गंभीर और सनसनीखेज बात यह है कि इस खनिज की सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैली खदानों में उत्खनन हेतु खनिज विकास निगम ने अपनी एक चहेती कम्पनी को माईनिंग के अधिकार सौंप दिये हैं। 13 दिसम्बर 1996 को म.प्र. खनिज विकास निगम ने इस कंपनी के साथ ज्वाइंट वेंचर से संबंधित अनुबंधों पर हस्ताक्षर किये थे, लेकिन फिर उसके बाद छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन ने भी इस गलती को सुधारने की कोशिश नहीं की। हमारे पास उपलब्ध कार्पोरेशन के प्रमाणित दस्तावेजों में यह स्वीकार किया गया है कि उनकी इस ज्वाइंट वेंचर कम्पनी ने आज तक कार्पोरेशन को अपने उत्पादन और विक्रय की कोई भी जानकारी नहीं दी है। इधर दंतेवाड़ा में काफी देर ही से सही जिला प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया है और इस खनिज की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।
जिला प्रशासन ने छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम की उन 57 समितियों को अवैध करार दिया है जिनके माध्यम से पिछले पन्द्रह सालों से टिन की खरीदी की जा रही थी। प्रशासन ने इन समितियों को पूरी तरह से फर्जी करार दिया है और वर्तमान में करीब दो करोड़ रुपये की लागत से खरीदे गये टिन अयस्क की बिक्री पर रोक लगा दी गयी है। दंतेवाड़ा के अपर कलेक्टर इमिल लकड़ा के अनुसार इस खनिज को राजसात करने की कार्रवाई भी की जा सकती है। सीएमडीसी द्वारा एक अनुबंध के तहत अपनी एक ज्वाइंट वेंचर कम्पनी को करोड़ों रुपये का टिन और कोलंबाईट बेचा गया है। इस अति संवेदनशील और देश की सुरक्षा से जुड़े मामले में भारत सरकार के सीधे नियंत्रण की बजाय उस ज्वाइंट वेंचर कंपनी को सारे अधिकार दे दिये गये हैं, जिसने आज तक इस खनिज और इसके बाय प्रोडक्ट की बिक्री का हिसाब प्रदेश सरकार को नहीं दिया है।
इतना ही नहीं इस कंपनी और सीमएडीसी ने करोड़ों रुपये का अधोसंरचना विकास पर्यावरण मद में लिया जाने वाला उपकर भी आज तक जमा नहीं किया है। बल्कि सीएमडीसी के अपर सचिव संजय कनकने ने दिनांक 20 अप्रैल 2011 को जिला प्रशासन को एक पत्र लिख कर बिना किसी आधार के इस कर से छूट पाने अपनी चहेती ज्वाइंट वेंचर कम्पनी को उपकृत करने का प्रयास किया है। पिछले दस वर्षो से इस एक मात्र कम्पनी की सीएमडीसी के साथ भागीदारी ने कई सवाल खड़े किये हैं। देश भर की करीब आधा दर्जन कम्पनियों ने सीएमडीसी की साझेदारी में यह व्यापार करने का प्रयास किया है परंतु बड़े ही रहस्यमयी ढंग से आज तक सिर्फ एक ही ज्वाइंट वेंचर कम्पनी के साथ यह कारोबार जारी है।
दंतेवाड़ा के पाड़ापुर, बैनपाल बड़े बचेली में 1.71 वर्ग किलो मीटर, कटेकल्याण और परचेली इलाके में 103.60 एकड़, चिकपाल, कापानार और रेगानार इलाके में 1500 हेक्टेयर तथा किकिरपाल में 1 वर्ग किलो मीटर में खनन के अधिकार इस जेवीसी को दिये गये हैं। इसका फायदा उठाते हुए स्थानीय आदिवासियों ने यहां की खदानों के इर्दगिर्द कई वर्ग किलो मीटर में इस अयस्क की खुदाई जारी कर दी है। खनिज विकास निगम द्वारा पाड़ापुर, कटेकल्याण, चिकपाल, तोंगपाल, नामा, चितलनार और किकिरपाल में बाकायदा खरीदी केन्द्र स्थापित किये गये हैं। इन खरीदी केन्द्रों में पिछले दस सालों में तीन लाख सत्रह हजार तीन सौ छत्तीस किलो टिन खरीदा गया है और हैरत अंगेज बात यह कि इसी दौरान साढ़े पंद्रह हजार किलो कोलंबाईट भी खरीदे जाने की बात सीएमडीसी ने स्वीकार की है।
सिर्फ देश के परमाणु ऊर्जा विभाग के लिये संरक्षित इस खनिज की ना सिर्फ खरीदी की गयी है बल्कि इसके प्रसंस्करण के बाद मिले उत्पाद और सह उत्पादों को कहां बेचा गया है, इसकी कोई भी जानकारी सीएमडीसी के पास नहीं है। सीएमडीसी ने लिखित रूप से यह स्वीकार किया है कि उसे मालूम नहीं कि आज तक खरीदे गये इस अतिमहत्वपूर्ण खनिज को उनकी ज्वाइंट वेंचर कंपनी ने किसे और कहां बेचा है। कहने के लिये तो खनिज की इतनी मात्रा की कीमत 20 करोड़ रुपये के आस पास है, लेकिन राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी महत्ता के आगे यह कीमत कुछ भी नहीं है। इसके बावजूद भी इस संवेदनशील मामले की जानकारी एकत्र करने में सीएमडीसी नाकाम साबित हुआ है। विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कई अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के गिरोह इन आणविक महत्व के खनिज की तस्करी में लगे हुए है जिनका जाल पूरे बस्तर क्षेत्र में फैला हुआ है।
फिलहाल सीएमडीसी सिर्फ टिन अयस्क खरीद रहा है और कोलंबाईट की खरीदी फिलहाल बंद है, लेकिन अनाधिकारिक रूप से प्रतिबंधित कोलंबाईट की खरीद फरोख्तआज भी जारी है। एक औसत के अनुसार हर साल यहां के आदिवासी करीब तीन सौ टन टिन और कोलंबाईट का उत्खनन करते हैं। इसका सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्सा ही सीएमडीसी के खरीदी केन्द्रों तक पहुंच पाता है बाकी बचे हिस्से पर निश्चित तौर पर तस्करों का कब्जा बना हुआ है। जिले के एक भूवैज्ञानिक ने बताया कि सीएमडीसी के पास पहुंच रहे टिन में कोलंबाईट भी होता है, लेकिन उसकी भी खरीदी टिन के हिसाब में दर्ज की जा रही है। टिन अयस्क केसिटेराईट गलाते वक्त धातुमल के रूप में बचने वाले अयस्क टिन से कहीं ज्यादा कीमती और उपयोगी हैं। टिन के साथ आणविक अयस्क यूरेनियम ऑक्टा-आक्साईड और थोरियम डाईआक्साईड पाए जाते हैं इसके साथ ही नियोबियम पेंटाक्साईड और टेंटलम पेंटाक्साईड भी टिन स्लैग में मिलता है। गौरतलब है कि देश में इनकी उपलब्धता कम होने की वजह से यह धातुएं परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा संरक्षित हैं फिर भी दंतेवाड़ा जिले से हर वर्ष भारी मात्रा में इसकी तस्करी की जा रही है। सीएमडीसी की आड़ में हर वर्ष यह खनिज विशाखापटनम और चैन्नई के बंदरगाहों से चीन जर्मनी और सिगापुर जैसे देशों को भेजा जा रहा है।
हैरानी वाली बात यह है कि इन अयस्कों का निर्यात करने वाले लोगों या संस्था का नाम उजागर नहीं किया जाता यह अनेक संदेहों को जन्म देता है, साथ ही तस्करों की पहुंच का खुलासा करता है। नियमत: टिन के स्मेस्टिंग प्लांट में अयस्क गलाए जाने से पहले परमाणु ऊर्जा विभाग के एटमिक मिनरल डिवीजन की इजाजत लेना जरूरी है। यह अनुमति टिन अयस्क में यूरेनियम आक्टॉक्साईड और थोरियम डाईआक्साईड के 0.5 फीसदी से कम मात्रा में होने पर ही मिलती है। बस्तर के टिन अयस्क में टेंटलम पेंटाक्साईड 10-15 प्रतिशत और नियोबियम 2-15 प्रतिशत तक पाया जाता है। उच्च गलनांक होने की वजह से इन धातुओं का उपयोग न्यूक्लियर रियेक्टर में भी किया जाता है। पूरा खेल इसी सेम्पलिंग की प्रक्रिया में छिपा हुआ है। जांच के लिये उपलब्ध कराए गये सेंपल और निर्यात किये जाने वाले वास्तविक माल में जमीन आसमान का अन्तर होने की बात का भी पता चला है और ऐसे में सीएमडीसी की जानकारी में यह ना होना कि यह सब विश्व के किन देशों को भेजा जा रहा है देश की सुरक्षा पर एक बहुत बड़ा सवाल है।
सीएमडीसी की ज्वाईट वेंचर कंपनी का नाम प्रेशियस मिनरल्स एण्ड स्मेल्टिंग लिमिटेड है इन प्रतिबंधित खनिजों को इस कम्पनी द्वारा बस्तर परिवहन संघ की ट्रकों के माध्यम से विशाखापटनम पोर्ट तक भेजे जाने के प्रमाण बस्तर परिवहन संघ के दस्तावेजों में दर्ज है। 1996 से लेकर आज तक सिर्फ इसी कम्पनी ने जेवीसी की भूमिका अदा की है और सीएमडीसी द्वारा खरीदे गये पूरे अयस्क की प्रोसेसिंग भी की है। परंतु इस कम्पनी ने यह अयस्क और इसका स्लैग किसे बेचा है इसकी जानकारी आज तक सीएमडीसी को नही दी है। आश्चर्य है कि यह रहस्मयी साझेदारी आज भी जारी है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में हुए खनन घोटाले पर प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने दावे के साथ कहा है कि छत्तीसगढ़ में खनन के क्षेत्र में कोई भी घोटाला हो ही नहीं सकता क्योंकि छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम की देख रेख में उत्खनन के सारे कार्य संचालित किये जा रहे हैं। लोहा और कोयला जैसे साधारण खनिज की बात और है लेकिन बस्तर में एटॉमिक मिनरल्स के खनन जैसे संवेदनशील मामले में सीएमडीसी की भूमिका संदेहों के दायरे में आ चुकी है।
फिलहाल सीएमडीसी सिर्फ टिन अयस्क खरीद रहा है और कोलंबाईट की खरीदी फिलहाल बंद है, लेकिन अनाधिकारिक रूप से प्रतिबंधित कोलंबाईट की खरीद फरोख्तआज भी जारी है। एक औसत के अनुसार हर साल यहां के आदिवासी करीब तीन सौ टन टिन और कोलंबाईट का उत्खनन करते हैं। इसका सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्सा ही सीएमडीसी के खरीदी केन्द्रों तक पहुंच पाता है बाकी बचे हिस्से पर निश्चित तौर पर तस्करों का कब्जा बना हुआ है। जिले के एक भूवैज्ञानिक ने बताया कि सीएमडीसी के पास पहुंच रहे टिन में कोलंबाईट भी होता है, लेकिन उसकी भी खरीदी टिन के हिसाब में दर्ज की जा रही है। टिन अयस्क केसिटेराईट गलाते वक्त धातुमल के रूप में बचने वाले अयस्क टिन से कहीं ज्यादा कीमती और उपयोगी हैं। टिन के साथ आणविक अयस्क यूरेनियम ऑक्टा-आक्साईड और थोरियम डाईआक्साईड पाए जाते हैं इसके साथ ही नियोबियम पेंटाक्साईड और टेंटलम पेंटाक्साईड भी टिन स्लैग में मिलता है। गौरतलब है कि देश में इनकी उपलब्धता कम होने की वजह से यह धातुएं परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा संरक्षित हैं फिर भी दंतेवाड़ा जिले से हर वर्ष भारी मात्रा में इसकी तस्करी की जा रही है। सीएमडीसी की आड़ में हर वर्ष यह खनिज विशाखापटनम और चैन्नई के बंदरगाहों से चीन जर्मनी और सिगापुर जैसे देशों को भेजा जा रहा है।
हैरानी वाली बात यह है कि इन अयस्कों का निर्यात करने वाले लोगों या संस्था का नाम उजागर नहीं किया जाता यह अनेक संदेहों को जन्म देता है, साथ ही तस्करों की पहुंच का खुलासा करता है। नियमत: टिन के स्मेस्टिंग प्लांट में अयस्क गलाए जाने से पहले परमाणु ऊर्जा विभाग के एटमिक मिनरल डिवीजन की इजाजत लेना जरूरी है। यह अनुमति टिन अयस्क में यूरेनियम आक्टॉक्साईड और थोरियम डाईआक्साईड के 0.5 फीसदी से कम मात्रा में होने पर ही मिलती है। बस्तर के टिन अयस्क में टेंटलम पेंटाक्साईड 10-15 प्रतिशत और नियोबियम 2-15 प्रतिशत तक पाया जाता है। उच्च गलनांक होने की वजह से इन धातुओं का उपयोग न्यूक्लियर रियेक्टर में भी किया जाता है। पूरा खेल इसी सेम्पलिंग की प्रक्रिया में छिपा हुआ है। जांच के लिये उपलब्ध कराए गये सेंपल और निर्यात किये जाने वाले वास्तविक माल में जमीन आसमान का अन्तर होने की बात का भी पता चला है और ऐसे में सीएमडीसी की जानकारी में यह ना होना कि यह सब विश्व के किन देशों को भेजा जा रहा है देश की सुरक्षा पर एक बहुत बड़ा सवाल है।
सीएमडीसी की ज्वाईट वेंचर कंपनी का नाम प्रेशियस मिनरल्स एण्ड स्मेल्टिंग लिमिटेड है इन प्रतिबंधित खनिजों को इस कम्पनी द्वारा बस्तर परिवहन संघ की ट्रकों के माध्यम से विशाखापटनम पोर्ट तक भेजे जाने के प्रमाण बस्तर परिवहन संघ के दस्तावेजों में दर्ज है। 1996 से लेकर आज तक सिर्फ इसी कम्पनी ने जेवीसी की भूमिका अदा की है और सीएमडीसी द्वारा खरीदे गये पूरे अयस्क की प्रोसेसिंग भी की है। परंतु इस कम्पनी ने यह अयस्क और इसका स्लैग किसे बेचा है इसकी जानकारी आज तक सीएमडीसी को नही दी है। आश्चर्य है कि यह रहस्मयी साझेदारी आज भी जारी है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में हुए खनन घोटाले पर प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने दावे के साथ कहा है कि छत्तीसगढ़ में खनन के क्षेत्र में कोई भी घोटाला हो ही नहीं सकता क्योंकि छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम की देख रेख में उत्खनन के सारे कार्य संचालित किये जा रहे हैं। लोहा और कोयला जैसे साधारण खनिज की बात और है लेकिन बस्तर में एटॉमिक मिनरल्स के खनन जैसे संवेदनशील मामले में सीएमडीसी की भूमिका संदेहों के दायरे में आ चुकी है।
लेखक देश शरण तिवारी बस्तर में देशबंधु के ब्यूरोचीफ हैं
Sabhar:- Bhadas4media.com
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