इंडिया टीवी को नंबर1 इंडिया टीवी के पत्रकारों ने बनाया. उनकी दिन - रात की मेहनत और उनके जज्बे से ही ऐसा संभव हो पाया. वर्ना कुछ साल पहले तक कौन सोंच सकता था कि इंडिया टीवी, आजतक को चारो खाने चित्त करके खबरिया चैनलों का सरताज बन जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ. टीआरपी चार्ट की लिस्ट में आज वह नंबर1 है. लेकिन चैनलों की झुण्ड में नंबर1 पर खड़ा यह चैनल वाकई में नंबर1 कहलाने का हकदार है. क्या वह मानवीय धरातल पर नंबर1 है? क्या वह अपने यहाँ के कर्मचारियों की नज़र में नंबर1 है?
अफ़सोस ऐसा बिल्कुल नहीं है. दुनिया भर की खबर रखने वाला इंडिया टीवी अपने पत्रकार / कर्मचारियों की खबर रखने के मामले में नंबर1 की बजाये नंबर जीरो के पायदान पर है. इंडिया टीवी में काम करते हुए मैंने यही महसूस किया है कि इस चैनल में मैनेजमेंट नाम की कोई चीज है ही नहीं. सबसे पहले बात ड्यूटी चार्ट और शिफ्ट के बंटवारे को लेकर करते हैं. यहाँ शिफ्ट तीन भागों में बनता हुआ है. मॉर्निंग शिफ्ट 6 बजे सुबह से 3 बजे तक है, ईवनिंग शिफ्ट 3 बजे से 12 बजे रात तक और नाईट शिफ्ट 11 बजे से सुबह 9 बजे तक होता है . शिफ्ट को ऐसे क्यों बांटा गया है , मेरे समझ से परे है. क्या यह सही समय है? सुबह में तीन घंटे का ओवरलेपिंग क्यों और रात में 11 बजे की बजाये 12 बजे क्यूँ है? यह एक तरह से भेदभावपूर्ण है.
इंडिया टीवी में ट्रांसपोर्ट का सिस्टम ठीक नहीं है. पिकअप के मामले में बड़ी अव्यवस्था है और पत्रकारों के समय का ध्यान नहीं रखा गया है. पत्रकारों के पास यूँ ही समय नहीं होता और इसमें एक - दो घंटे बेवजह में बर्बाद हो जाए तो फिर समय की मारामारी हो जाती है. लेकिन इंडिया टीवी में इसपर ध्यान देने वाला कोई नहीं है. वैसे पत्रकार जो चैनल के दफ्तर से ज्यादा दूरी पर नहीं रहते है उन्हें पिकअप वाले रात में 9.30 बजे ही बुलाने आ जाते हैं और 10.15 तक चैनल के दफ्तर में पहुंचा देते हैं. अब 11 बजे के शिफ्ट करने वाले के पास दो विकल्प होते हैं या तो वह उसी वक़्त से काम काज शुरू कर दे या फिर झक मारे. मैं ये पूछना चाहती हूँ कि जब इम्प्लाई समय से पहले निकल नहीं सकते तो समय से पहले जाना क्या ठीक है?
सैलरी और इन्क्रीमेंट को भी लेकर यहाँ पारदर्शिता नहीं है. एक तो यहाँ सैलरी समय से नहीं बढती है . पिछले साल, दो साल के अंतराल पर इन्क्रीमेंट मिला था , लेकिन इस साल तो वह भी नहीं हुआ जबकि चैनल का प्रदर्शन बेहतर है और चैनल पर पहले की तुलना में विज्ञापनों की संख्या बढ़ी है. हाल ही में चैनल ने अपने विज्ञापन की दरों में भी बढ़ोत्तरी की है. लेकिन पत्रकारों की सैलरी के मामले में ढाक के तीन पात. मैंने सुना था कि किसी को प्रोमोशन मिलती है तो सैलरी भी बढती है, लेकिन यहाँ ऐसी कोई बात नहीं. जनवरी में छः साल से एक ही डिपार्टमेंट में काम कर रहे कुछ लोगों को प्रोमोट भी किया गया, लेकिन आजतक तो ना उन्हें प्रोमोशन लैटर मिला है और ना ही सैलरी बढ़ी है.
आम इंसान काम करता है , मेहनत करता है तो इसका ये मतलब नहीं कि उसके साथ जानवरों जैसा सुलूक किया जाए. उस पर तुर्रा ये है कि कोई कुछ भी कहना चाहता हैं तो एक तो कोई सुनता नहीं. उसपर कहा जाता है कि कि जॉब करनी हो तो ऐसे ही करो, नहीं तो कोई और जॉब ढूंढ लो. ये मनमानी नहीं तो और क्या है? क्या ऐसे ही कोई चैनल नंबर1 कहलाता है ? रजत शर्मा को पता होना चाहिए कि उनके इम्पलायी के साथ क्या हो रहा है और उनसे गुजारिश है कि इसपर ध्यान दे. पत्रकारों की मेहनत की जमीन पर ही इंडिया टीवी की इमारत खड़ी है. एक बार यह जमीन खिसकी तो इमारत के ढहने में भी समय नहीं लगेगा. (इंडिया टीवी की पत्रकार प्रज्ञा शर्मा (बदला हुआ नाम) की रिपोर्ट)
Sabhar:- Mediakhabar.com
No comments:
Post a Comment