मास्टर मांइड दिमाग...की उपज है स्वामी पर आरोपों की झड़ी
क्या .....औरत के सहारे धनवान बनने का सपना पूरा होगा-पत्रकार का
साध्वी चिदर्पिता ने कहीं अपनी अति महात्वाकांक्षा के कारण स्वामी के खिलाफ बगावत का बिगुल तो नहीं फूंका। और उनकी इस महात्वाकांक्षा की चिंगारी में गौतम ने आग में घी का काम तो नहीं किया। साध्वी जानती थीं कि वह आश्रम में रहेंगी तो उनका दर्जा स्वामी के बाद का ही रहेगा। उनकी जो कुछ भी हैसियत है,वह स्वामी जी की वजह से ही है। वह स्वयं में कुछ नहीं हैं। स्वामी और चिदर्पिता के बारे में जानकारी रखने वालों को लगता है कि साध्वी ने अपनी अति महात्वाकांक्षा के लिए स्वामी के चरित्र की बलि चढ़ा दी। इसके पीछे एक कारण ब्लैकमेलिंग भी माना जा रहा है। सूत्रों की मानें तो साध्वी के पति पत्रकार गौतम शुरूआत में साध्वी के जरिए स्वामी पर फेसबुक व ब्लाग पर आरोप लगवाकर ब्लैकमेल करने का जाल बुनते रहे। स्वामी जी नहीं डिगे तो सीधे-सीधे आरोप लगाकर‘ब्रह्मास्त्र’ का प्रयोग कर डाला। अब ब्रह्मास्त्र चल गया है। हमारे समाज की धारणा यही रहती है कि कोई महिला स्वयं पर बलात्कार की बात सहज में नहीं कहती है। और अगर कहती है तो इसमें कुछ न कुछ सच्चाई होती है। पुरूष को इस मामले में एकदम दोषी मान लेने की हमारे समाज में प्रवृत्ति है। लेकिन जिस तरह साध्वी स्वामी पर आरोप लगा रही है उनकी तह में जाने और बारीकी से अध्ययन करने पर तमाम आरोप निराधार से लगते हैं।
एक बात और गौर करने वाली है, जिसे कोई नोटिस में नहीं ले रहा है। क्या गौतम और साध्वी की मुलाकात आज-कल में हुई थी। सूत्रों की मानें तो यह संबंध भी कई साल पुराना है। गौतम के पिता का संबंध आश्रम से था। इसी वजह से गौतम का भी आश्रम में स्वामी-साध्वी तक दखल था। वह भीतर की बातें जानता था। उसे लगा कि साध्वी को उकसाकर वह धन, सम्मान और नाम तीनों कमा लेगा। मास्टर माइंड गौतम ने औरत की इसी सुलभ कमजोरी का फायदा उठाया।
गौतम ने स्वामी पर कीचड़ उछालने में कोई कोर कसर नहीं रखी है। लेकिन गौतम खुद कितने दलदल में डूबे हुए हैं, यह बात वह अपने श्रीमुख से कभी नहीं बताएंगे। आइए, गौतम के बारे में भी जान लें। गौतम ने पत्रकारिता की शुरूआत बदायूं के इस्लामनगर के पास छोटे से गांव नूरपुर पिनौनी से एक दैनिक समाचार पत्र की एजेंसी लेकर की थी। 2007 में उनके गुरु ने उन्हें जागरण में विज्ञप्ति लिखने के लिए लगा लिया। गुरू के जाने के बाद गौतम भी वहां टिक नहीं पाए। इसके बाद वह डीएलए आगरा के अखबार से जुड़ गए। वहां भी उनकी दाल ज्यादा दिनों तक नहीं गली। मौका पाकर खुसरो मेल के बदायूं ब्यूरो चीफ बने, पर इनकी कार्यप्रणाली से खिन्न होकर यहां भी ...पड़ी। इस समय स्वतंत्र पत्रकारिता कर मुफलिसी में जीवन काट रहे थे। ऐसे में खुराफाती दिमाग पाए इस शख्स ने साध्वी को अपने शिकंजे में लेकर न सिर्फ अपनी गरीबी दूर कर ली, बरन राजनीति में भी भूचाल ला दिया। अब देखना है कि जब सच्चाइयों पर से एक के बाद एक पर्दा उठेगा तो इस मास्टर माइंड की क्या हालत होगी। क्या वह साध्वी के साथ अपना भी बचाव कर पाएगा?
लेखक सौरभ दीक्षित आइ बी एन 7 के शहजहांपुर से रिपोर्टर हैं
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