प्यारे मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
आपका मित्र सुमित प्रताप सिंह यानि कि मैं फिर से उपस्थित हूँ एक और ब्लॉगर बन्धु से आप सबका परिचय करवाने. इनका नाम है संजीव शर्मा. संजीव शर्मा जी ने मध्यप्रदेश की संस्कारधानी के नाम से मशहूर जबलपुर के राबर्टसन कालेज से वनस्पति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद राजधानी भोपाल में स्थापित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के सर्वप्रथम बैच से पत्रकारिता और जनसंपर्क में स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की है.ये उस पीढ़ी के पत्रकारों में से हैं जो पत्रकारिता की विधिवत पढ़ाई कर इस क्षेत्र में कूदे हैं. इनके आने के पहले तक यह माना जाता था कि इस पेशे को वे ही लोग अपनाते हैं जो जीवन में कुछ और नहीं कर पाते इसलिए मज़बूरी में पत्रकार बन जाते हैं. मीडिया की दुनिया में बीते दो दशकों की सक्रियता के दौरान इन्होने देशबंधु, नवभारत और एक्सप्रेस मीडिया सर्विस जैसे तमाम संस्थानों में मीडिया मजदूरी करने के साथ-साथ पत्रकारिता के नव आगंतुकों से कुछ सीखने और सिखाने के लिए अध्यापन में भी हाथ आजमाया. अब रक्षा मंत्रालय की सौ साल से ज्यादा पुरानी और तेरह भाषाओँ में प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका 'सैनिक समाचार' के हिंदी संस्करण में बतौर संपादक जुडकर देश की रक्षा के लिए सरहदों पर तैनात जांबाज़ फौजियों की आवाज़ बनने का प्रयास कर रहे हैं.वहीं अपने ब्लॉग“जुगाली” के माध्यम से हम और आप जैसे साहित्यिक और कलाप्रेमी बन्धुवरों के साथ कदमताल के लिए अपनी कलम को धार दे रहे हैं.
सुमित प्रताप सिंह- संजीव शर्मा जी नमस्ते! आपसे कुछ प्रश्न पूछने की आज्ञा चाहता हूँ.
संजीव शर्मा- जी नमस्ते सुमित जी! वैसे पुलिस वाले तो जबरन प्रश्न पूछते हैं और आप आज्ञा लेकर पूछ रहे हैं तो प्रश्न के उत्तर न देने का तो सवाल ही नहीं उठता.
सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा संजीव जी शुक्रिया. जहां तक मुझे ज्ञात है कि जुगाली तो गाय-भैंसें ही करती हैं और आप इंसान होकर जुगाली कर रहे हैं. आपको ये जुगाली का शौक भला कैसे पढ़ा?
संजीव शर्मा- इंसानों और गाय-भैंसों में यही बुनियादी फर्क है.जानवर हर काम खुलकर करते हैं और हम इंसान छिप-छिपाकर.कुछ यही स्थिति जुगाली की है. वे सरेआम करते हैं और हम दिन-रात अपने दिमाग में बौद्धिक जुगाली करते रहते हैं. वैसे भी हमें ज्ञान बांटने का भरपूर शौक है, जहाँ मौका मिला कि हम किसी को भी किसी भी विषय पर ज्ञान देने के लिए तैयार हो जाते हैं. बस ऐसे ही चिंतन-मनन के बीच ‘जुगाली’ का जन्म हो गया और इस तरह मैंने बेचारे निरीह जानवरों से बिना कापीराइट लिए यह नाम हथिया लिया.
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
संजीव शर्मा- रचना प्रक्रिया से मेरा साक्षात्कार स्कूली दिनों से ही शुरू हो गया था. फर्श पर पूरा अखबार फैलाकर और उसपर बैठकर पढते समय कई बार माँ-पिताजी की फटकार भी सहनी पड़ी परन्तु इसके साथ-साथ कलम भी चलने लगी. मेरी पहली रचना स्वर्गीय इंदिरा गाँधी पर लिखी एक कविता थी. इस कविता की विशेषता यह थी कि कविता की हर पंक्ति के पहले अक्षर को मिलाने से इंदिरा जी का पूरा नाम बनता था. यह कविता अखबार में स्थान बनाने में भी कामयाब रही और बस अपनी कलम भी चलने लगी. जहाँ तक ब्लागर बनने की बात है तो उसकी शुरुआत तक़रीबन पांच साल पहले “मसाला मार के” नामक ब्लॉग से हुई थी. इसमें अख़बारों में छपी रोचक और मजेदार ख़बरों का संकलन होता है लेकिन इससे रचनात्मक संतुष्टि नहीं मिली और बस फिर “जुगाली” का जन्म हो गया.
सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?
संजीव शर्मा- यह बहुत अच्छा सवाल पूछा है आपने. यह मैंने भी कभी नहीं सोचा कि मैं लिखता क्यों हूँ? लेकिन अब इस बारे में सोचने पर लगता है कि लिखना मेरे लिए रोजमर्रा की खुराक की तरह है. इससे न केवल बौद्धिक और आत्मिक दोनों ही तरह का संतोष मिलता है बल्कि अन्य कामों को करने की ऊर्जा भी मिलता है. अपनी भड़ास निकालने का मौका भी मिलता है और किसी विषय पर अपनी राय से बाकी लोगों को अवगत कराने का भी....और वैसे भी पत्रकारिता के पेशे को चुनने के बाद नहीं लिखना तो वैसा ही है जैसे डांसर होकर नहीं नाचना या कुक होकर खाना बनाने से दूर भागना.
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
संजीव शर्मा- वैसे कोशिश तो लेखन की हर विधा में हाथ आजमाने की है परन्तु समसामयिक विषयों से जुड़े रहना पत्रकारिता की पेशागत मजबूरी है इसलिए सबसे ज्यादा रूचि तत्कालीन घटनाओं, मौजूदा घटनाक्रम और समसामयिक मामलों पर अपनी राय व्यक्त करने में है. मैं ऐसे विषयों और मुद्दों को सभी के सामने लाना चाहता हूँ जिनपर आमतौर पर नज़र नहीं जा पाती.....और यदि खुलकर कहूँ तो केन्द्र सरकार के जनसंपर्क विभाग का एक हिस्सा होने के कारण सरकार के खिलाफ़ लिखकर अपनी सेवा शर्तों की लक्ष्मण रेखा नहीं लांघना चाहता इसलिए यदि आप मेरे लेखों के विषय देखें तो इस बात को आसानी से समझ सकते हैं कि मेरे लेखों के विषय क्यों परंपरा से हटकर होते हैं. वैसे इसी बहाने अपनी कलम भी धारदार हो जाती है और ब्लाग के पाठकों को किसी विषय विशेष पर क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्त करने का अवसर भी दे पाता हूँ.
सुमित प्रताप सिंह- आप अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?
संजीव शर्मा- देखिये यदि ईमानदारी से स्वीकार करूँ तो मैं अपने आप को अभी इस लायक नहीं समझता हूँ कि समाज को सन्देश देने का साहस या जुर्रत कर सकूँ. हाँ मेरा यह प्रयास जरुर रहता है कि “जुगाली” या मेरे अन्य ब्लॉग मसलन “मसाला मार के” तथा “संजीवनी” के माध्यम से रचनाधर्मी बिरादरी में अपनी एक अलग पहचान बना सकूँ और विषयों की विविधता के द्वारा सामाजिक चेतना जगाने की अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का भरसक प्रयास कर सकूं. यदि मेरे इन प्रयासों से समाज को कोई सकारात्मक सन्देश जाता है तो मैं अपनी लेखनी को धन्य मानूंगा और इन पर प्रतिक्रिया देकर मुझे अनुग्रहीत कर सामाजिक बहस को आगे बढ़ाने वालों का ह्रदय से आभारी रहूँगा.
सुमित प्रताप सिंह- जी आपका आभार जो आपने अपना अमूल्य समय दिया.
संजीव शर्मा- आभार का मत चढ़ाइए भार. आप अपने हैं इसलिए आपको दिया समय अमूल्य बन गया.
संजीव शर्मा जी को पढने के लिए पधारें http://jugaali.blogspot.com/
sabhar:-http://www.sumitpratapsingh.com/
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