Feature

Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

सिंहासन+व्यापार = भ्रष्टाचार



By  
सिंहासन+व्यापार = भ्रष्टाचार
Font size: Decrease font Enlarge font
भारत में अन्ना हजारे और उनकी टीम ने लोकपाल पर जबसे अभियान की शुरूआत की है तब से भ्रष्टाचार पर एक बार फिर बड़ी बहस चल पड़ी है. लेकिन यह बहस आजाद भारत में कोई नई नहीं है. आजादी के एक दशक बाद से ही भारत भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा नजर आने लगा था और तत्कालीन संसद में इस बात पर बहस भी होती थी. 21 दिसंबर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया था वह आज भी प्रासंगिक है. उस वक्त डॉ लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है. हालांकि अन्ना आंदोलन के उलट राममनोहर लोहिया ने रोग के उपचार की बजाय रोग से बचाव पर जोर दिया था. आज के लोकपाल आंदोलन को समझने के लिए लोहिया का यह भाषण भारत में भ्रष्टाचार की जड़ों को समझने में बहुत हद तक मदद करता है.
अध्यक्ष महोदय, मैं आपकी सेवा में यह कह देना चाहता हूं कि दुराचार, करप्शन या भ्रष्टाचार ये सब एक ही शब्द हैं और जब हम इस प्रश्न पर विचार करें तो सोचें कि भ्रष्टाचार गंगोत्री पर हो रहा है इसलिए गंगा के निचले मैदानों पर अब सफाई करना बिल्कुल व्यर्थ है और जब गंगोत्री पर सोच विचार करते हैं तो मैं सभी माननीय सदस्यों से अर्ज करूंगा कि वे जरा नम्रता से बात सुने. गुस्सा मुझ पर न करें. गुस्सा करें उस हालात पर जिसमें आज हिन्दुस्तान सड़ता चला जा रहा है.
मैं कह रहा था कि भ्रष्टाचार गंगोत्री पर है. कानून का राज हिन्दुस्तान में नहीं रह गया है. मनमानी का राज हो रहा है. नियम अच्छे नहीं हैं या उसका पालन नहीं होता है. नतीजा होता है कि सरकार के कामों में पक्षपात भरा हुआ है. उस पक्षपात में लोगों को पैसे का फायदा होता है या नहीं यह दूसरे नंबर का सवाल है. पक्षपात, घूसखोरी ये सब भ्रष्टाचार में समझे जाने चाहिए.
और भ्रष्टाचार है क्या? सिर्फ ईमान की कमी नहीं है. समझ की भी कमी है. मैं इस वक्त संसद में भी इस बात की कमी पाता हूं कि लोग भ्रष्टाचार को केवल बेईमानी समझते हैं. मैं कहना चाहता हूं कि यह केवल बेईमानी नहीं है. यह नासमझी भी है. आज हिन्दुस्तान और दुनिया का जो स्वरूप हो गया है उसमें जब तक हम समझ का इस्तेमाल नहीं करेंगे कि क्या अवस्था है जिसमें भ्रष्टाचार निकलता है, क्या है भ्रष्टाचार? क्यों है? उसके कौन से कारण हैं, कहां कहां है, उसके स्वरूप क्या हैं आदि, तब तक हम भ्रष्टाचार को दूर नहीं कर पायेंगे. इस समझ के फेर को अब भी मैं पूरी तरह से सरकार में पाता हूं क्योंकि जो आखिरी तरीका सरकार ने भ्रष्टाचार को दूर करने का निकाला है, केन्द्रीय निगरानी कमीशन का उसके क्या माने होते हैं? यह कि, जहां कहीं भ्रष्टाचार होगी केन्द्रीय निगरानी कमीशन उसको पकड़ेगा. यह तो इलाज का तरीका है. जब कोई पाप हो जाए तो उस पाप की सजा देनेवाला तरीका है. वह तरीका अभी तक सरकार के सामने नहीं है कि कैसे भ्रष्टाचार का निरोध किया जाए, उसको रोका जाए.
भ्रष्टाचार की रोक एक दृष्टि होती है और एक इलाज की दृष्टि होती है. मैं सबसे पहले यह बात कहना चाहता हूं कि केन्द्रीय निगरानी कमीशन में रोक की दृष्टि बिल्कुल नहीं है. केवल इलाज की दृष्टि है और वह असफल होकर रहेगा. उसका एक बहुत बड़ा कारण मैं आपको बताए देता हूं कि जब कभी कोई बड़ा आदमी पकड़ा जाएगा तो वह छूट जाएगा. सिर्फ छोटे छोटे लोगों को सजा मिलेगी. तो इलाज की दृष्टि से भी यह तरीका बिल्कुल नाकामयाब साबित होगा. और जहां तक रोक का सवाल है, गृहमंत्री के सामने उसका तो कोई तरीका ही नहीं है.
मैं आपका ध्यान गृहमंत्री के उस बयान की तरफ दिलाना चाहता हूं कि जिसमें उन्होंने कहा कि साधुसंत और जनमत तथा समाज के नेता लोग इस सवाल को ठीक कर सकते हैं और हमारे यहां जो भी भ्रष्टाचार है उसको दूर कर सकते हैं. आखिर यह नैतिकता है क्या? क्या यह साधु संतो की चीज है? आज राजनैतिक और आर्थिक जीवन की दुनिया में इतने पेंच हो गये हैं कि यह साधु संतो वाला मामला नहीं रहा है कि जाकर लोगों को कहा जाए कि तुम सच्चे हो जाओ, ईमानदार हो जाओ और सब मामला सच्चा और ईमानदार हो जाएगा. इसलिए यह मामला समझ का है और मैं आपको समझ का एक और उदाहरण दिये देता हूं.
बहुत दिनों पहले मैंने भी उस प्रस्ताव को माना था, तब मेरी समझ भी कुछ कम थी कि पांच सौ रूपये से ज्यादा न तो किसी मंत्री को और न ही किसी सरकारी नौकर को दिया जाए. लेकिन वकील, डॉक्टर, व्यापारी और ठेकेदार इन सबकी आमदनी पर कोई रोक नहीं लगाई गई. यह कैसे हो सकता है कि चारों तरफ तो लालच का समुद्र बहता रहे और बीच में एक छोटा सा टापू मंत्रियों और सरकारी नौकरियों के लिए बना दिया जाए. कर्तव्य का टापू. यह कर्तव्य का टापू बहकर रहेगा. लालच का समुद्र उसको बहा डालेगा.
इसके अलावा मैं आपका ध्यान इस तरफ भी दिलाऊं कि लोग कहने लग गये हैं कि भ्रष्टाचार तो जीवन का अंग बन गया है. कुछ अर्थशास्त्रियों ने एक बड़ा भारी सिद्धांत निकाला है कि जब कभी कोई पिछड़ी आर्थिक व्यवस्था तरक्की करेगी, आगे बढ़ेगी, माल ज्यादा होगा नहीं, पैदावार के ढंग पुराने होंगे तो उसमें भ्रष्टाचार लाजमी है. मैं समझता हूं कि मैंने बात तो बिल्कुल साफ कह दी है. चूंकि अंग्रेजी को कम जाननेवाले लोग हिन्दुस्तान में बहुत ज्यादा हैं इसलिए वे डेवलपिंग इकोनॉमी कहा करते हैं. वे कहा करते हैं कि डेवलपिंग इकोनॉमी में तो भ्रष्टाचार आवश्यक है. मैं कहना चाहता हूं कि यह बिल्कुल झूठा सिद्धांत है. अगर कोई आर्थिक व्यवस्था सुधारनी है जो कि कमजोर है तो उसमें भ्रष्टाचार बिल्कुल नहीं रहना चाहिए. उसका एक नमूना मैं आपको दिये देता हूं. हालांकि महात्मा गांधी का (उदाहरण) देना चाहिए लेकिन मैं रूस का देता हूं. रूस ने लगातार चालीस पचास बरस तक इस बात का ख्याल नहीं किया कि उसके यहां इस्तेमाल की चीजें कैसे बनती हैं? उस्तरा वे ऐसे बनाते थे कि जिसमें दाढ़ी बनाते हुए छिल जाए. विदेशी लोग वहां की यात्रा करके आकर कहते थे कि रूस में तो खपत की चीजें बहुत खराब हैं. लेकिन वे अपने पैदावार की बुनियाद को बना रहे थे. खपत में अपने पैसे को बरबाद नहीं कर रहे थे. इस तरह से अगर हम भी अपने देश में खपत के ऊपर जोर न दे करके पैदावार पर जोर दें तो यह भ्रष्टाचार की मामला इतना किसी सूरत में नहीं बढ़ सकता था.
सिंहासन और व्यापार के संबंध की तरफ भी मैं आपका ध्यान खीचूंगा. यह संबंध जितना हिन्दुस्तान में दूषित, भ्रष्ट, बेईमान हो गया है उतना दुनिया में इतिहास में कभी नहीं हुआ है. व्यापार और सिंहासन का संबंध अमेरिका, इंगलिस्तान, जर्मनी आदि किसी भी देश में इतना नहीं बिगड़ा जितना यहां बिगड़ा है. सिद्धांत बतलाने की बजाय मैं आपको एक मिसाल देता हूं. नेशनल मोटर्स पंजाब की एक कंपनी है. उस कंपनी को चलानेवाला मंत्री का बेटा है. उसे सरकार से लाइसेंस, सरकार से कोटा आदि मिल जाया करता है. वह पैसा बनाया करता है. जब सवाल उठता है तो कहा जाता है कि तुम इस उदाहरण को क्यों लाते हो? क्या पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहीं किसी से सिफारिश की है कि तुम मेरे बेटे के लिए फलां फलां लाइसेन्स दो. कागज दिखाओ कि उसने ऐसा किया है. मैं एक विशेष बात कहना चाहता हूं. हमें केवल यह देखना है कि क्या किसी बेटे या बेटी या रिश्तेदार ने, मेरी तो यह राय है कि दो पीढ़ी तक के रिश्तेदार ने उसके संबंधी के सिंहासन पर बैठने के कारण कोई लाभ उठाया है या नहीं? आज हिन्दुस्तान में यह कसौटी रखनी चाहिए कि सिंहासन पर बैठे हुए लोगों की मदद ले करके क्या व्यापार में किसी ने लाभ उठाया है?
अब मैं दूसरी चीज नौकरी के बारे में कहता हूं. कोई भी सिंहासन पर बैठा हुआ आदमी अपने रिश्तेदार को ऊंची ऊंची नौकरी न दिलवा सके इसके बारे में भी कोई तरीका निकाला जाना चाहिए. आप इसका भी सबूत पूछेंगे. सबूत यह है कि उसको और तरीके से वह नौकरी नहीं मिलती है, पहले नहीं मिली थी लेकिन ज्यों ज्यों अब्बाजान तरक्की करते गये त्यों त्यों बेटाजान भी तरक्की करते हैं. व्यापार में इतना बड़ा सबूत है कि इसको झुठलाया नहीं जा सकता है. इस संबंध में भी कोई नियम अच्छी तरह से बना दिया जाना चाहिए.
Sabhar:- visfot.com

No comments:

Post a Comment

Famous Post