कहा गया वो साइकिल वाला पत्रकार ? आज सुबह उठते ही मुझे साइकिल वाले पत्रकार की याद आयी तो मै सोच पड़ गया | आखिर वह है कहा और किस हाल में है | पिछले ७ सालो से पता नहीं है | वह कहा से आया था और कहा गया | यह बात सन १९९९ की जब मै मैनेजमेंट की पढाई कर रहा था |
खाना मुझे बनाना आता नहीं था तो मै मयूर विहार फेस वन डेल्ही के गुप्ता होटल में दोनों वक़्त का खाना खा लिया करता था | १८ इंची साइकिल पर सवार होकर वह पत्रकार वीकली पेपर लेकर कभी कभी खाना खाने आ जाता था |
मेरा मन नहीं माना तो मैंने एक दिन पूछ लिया बॉस आखिर क्या करते हो | वह अपनी कठोर आवाज में बोला अरे मै एडिटर हु अपना खुद का न्यूज़ पेपर चलाता हु | मैंने कहा मै भी अपनी पढाई करने के बाद पत्रकार बनना चाहता हु | इतना कहते ही वह मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया | मुझे अपना न्यूज़ पेपर राष्ट्रीय प्रचंड भारत खोल कर अपना लिखा लेख दिखाने लगा |
मै शुरू से ही दूसरे को पढने की कला जनता था | अचानक मेरी नजर उसके कपड़ो और जूतों पर पड़ी तो मै समझ गया यह वीकली पेपर से अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ कर रहा है |
वीकली पेपर चार पेज का था वह लिखता काफी जानदार था | मैंने कहा बॉस थोड़ी सी जगह अपने पेपर में दे दो मै भी कविता और लेख लिख लेता हु आप उसे छाप दिया करे |
वह तुरंत बोला इसके लिए आपको पहले प्रेस कार्ड बनवाना पड़ेगा मैंने बोला ठीक है बना दो ? फिर अपना चश्मा उतारते हुए बोला गुरु प्रेस कार्ड फ़ोकट में थोड़े बनता है | मै बोला कितना पैसा ? बूढी नजरो में चमक साफ़ दिखाई दे रही थी | हम आपसे केवल ५०० रूपये ही लेगे और आपको रिपोर्टर कार्ड बना देगे फिर आपको अपने में पेपर में लिखने की जगह दे देगे |
मै बोला बॉस मै तो विधार्थी हु इतना पैसा कैसे दू ,तुम कुछ कम कर लो फिर वह ३५० रूपये में मान गए और अगले दिन मुझे प्रेस कार्ड बना के दे दिया | मै प्रेस कार्ड देख कर खुश हुआ चलो यार कही तो छपने की जगह मिल गयी |
मेरे कुछ लेख वीकली पेपर में प्रकाशित हुए, एक दिन पेपर में किसी का बड़ा लेख छपा था | मैंने पूछा की गुरु ये कौन है वह बोला क्या मिलना है | मै मिलने के लिए त्रिलोकपुरी डेल्ही में जा पंहुचा तो देखा घर में बुरी तरीके की महक आ रही थी | मेरा परिचय हुआ तो पता चला की वह वीकली पेपर की उपसंपादक है |
वीकली पेपर के संपादक ने पूरे मयूर विहार , त्रिलोकपुरी , कल्याणपुरी बहुत लोगो के कार्ड बना चूका था | मै बोला गुरु तुम्हारे पेपर के रिपोर्टर तो पूरे डेल्ही में है मगर तुम्हारी उपसंपादक का सीन अलग है वहा चहकते हुए बोला आखिर क्या ?
गुरु वह तो धंधा करती और करवाती है यार गश्ती है | फिर तुमने प्रेस कार्ड बना के दे दिया | संपादक के चेहरे पर मुस्कराहट साफ़ तैर रही थी | अरे गंगवार पापी पेट का सवाल है एक प्रेस कार्ड के जरिये १५० - २५० - ५०० -१००० रूपये मिल जाता है पेपर महीना में दो बार छाप लेते है केवल ५०० कापी निकालते है | मगर बॉस ये तो गलत है |
संपादक ने गाली देते हुए कहा साली अगर धंधा करते वक़्त पकड़ जाती है तो कार्ड दिखाकर छुट जाती है नहीं तो हम छुडवा देते है | हमें हर तरफ से कमाई हो जाती है | हमने इस पेपर को बच्चे की तरह पाला है | जिसे बीबी माना वह हरामखोर निकल गयी, बेटा भी छीन लिया है
साली पोलिसे विभाग में सिपाही की नौकरी करती है |इस लिए साला घरवार छोड़ दिया | दो वक़्त की रोटी खा रहे है क्या पत्रकरिता क्या पत्रकार ? सब दलाली करनी पड़ती है ये कहते कहते संपादक की आखो से पानी बहने लगा |
गंगवार जी मै थोड़े टाइम का मेहमान हु तुम बहुत सीधे हो दोस्त , दुनिया बहुत हरामी है | एक बार मुंबई गया था ग्रांट रोड में मेरा रंडी से मिलन हो गया तब से पीड़ित हु | मुझे खतरनाक बीमारी हो गयी है |
तुम अपनी पढाई ख़तम करके मुंबई जा रहे हो | तुमने मेरा बहुत साथ दिया है अब कौन देगा यह सोच रहा हु | संपादक की मुह से दुआ निकल रही थी | मैंने कंधे पर हाथ रखते हुए बोला बॉस चिंता न करो मै आपका केयर रखुगा |
मै मुंबई शिफ्ट कर गया फिर एक बार डेल्ही जाना हुआ तो पता चला संपादक जी कोटला में रह रहे है जैसे तैसे करके कमरा तलाश किया| शाम के ८ बज चुके थे | मुझे देखते ही गले लगकर फूट फूट कर रोने लगे | मैंने हाथ पकड़ कर खटिया पर बिठा लिया | वह घूर घूर कर देखने लगे|
मेरा बेटा मर गया , वह पेपर को बेटा कहते थे | अब दवा के लिए पैसा नहीं तो बेटा कैसे पालू | बोले मै खाना बना लेता हु तुम खाना खा के जाना - सुशील जी हो सकता है यह हमारा आखिरी मिलन हो | कब मौत आ जाये पता नहीं ये साली दवा बहुत महगी आती है |
मै बोला चिता ना करो बॉस कुछ नहीं होगा तुमे ? साले तुम दोस्त होकर झूटी तसल्ली देते हो |तुम भी हरामी हो गए हो | खाना नहीं तो चाय पीलो | मैंने अपनी जेव से पैसा निकाला और उनके हाथ पर रख दिया और कहा गुरु मै चलता हु फिर मिलते है |
यार बैठो तो चले जाना | संपादक जी का बार बार रोकना मुझे अच्छा लग रहा था परन्तु मुझे अगले दिन मुंबई की गाडी पकडनी थी | मुझे खबर मिली वह गुजर चुके है | वह जिन्दगी और मौत की लडाई लड़ रहे थे जिसे हम एच आई वी कहते है | आज भी मेरी नजरे खोजती रहती है आखिर तुम हो कहा ?
यह लेख साक्षात्कार.कॉम - साक्षात्कार.ओर्ग , साक्षात्कार टीवी.कॉम संपादक सुशील गंगवार ने लिखा है जो पिछले ११ साल से प्रिंट मीडिया , वेब मीडिया , इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए काम कर रहे है उनसे संपर्क ०९१६७६१८८६६ पर करे |
खाना मुझे बनाना आता नहीं था तो मै मयूर विहार फेस वन डेल्ही के गुप्ता होटल में दोनों वक़्त का खाना खा लिया करता था | १८ इंची साइकिल पर सवार होकर वह पत्रकार वीकली पेपर लेकर कभी कभी खाना खाने आ जाता था |
मेरा मन नहीं माना तो मैंने एक दिन पूछ लिया बॉस आखिर क्या करते हो | वह अपनी कठोर आवाज में बोला अरे मै एडिटर हु अपना खुद का न्यूज़ पेपर चलाता हु | मैंने कहा मै भी अपनी पढाई करने के बाद पत्रकार बनना चाहता हु | इतना कहते ही वह मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया | मुझे अपना न्यूज़ पेपर राष्ट्रीय प्रचंड भारत खोल कर अपना लिखा लेख दिखाने लगा |
मै शुरू से ही दूसरे को पढने की कला जनता था | अचानक मेरी नजर उसके कपड़ो और जूतों पर पड़ी तो मै समझ गया यह वीकली पेपर से अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ कर रहा है |
वीकली पेपर चार पेज का था वह लिखता काफी जानदार था | मैंने कहा बॉस थोड़ी सी जगह अपने पेपर में दे दो मै भी कविता और लेख लिख लेता हु आप उसे छाप दिया करे |
वह तुरंत बोला इसके लिए आपको पहले प्रेस कार्ड बनवाना पड़ेगा मैंने बोला ठीक है बना दो ? फिर अपना चश्मा उतारते हुए बोला गुरु प्रेस कार्ड फ़ोकट में थोड़े बनता है | मै बोला कितना पैसा ? बूढी नजरो में चमक साफ़ दिखाई दे रही थी | हम आपसे केवल ५०० रूपये ही लेगे और आपको रिपोर्टर कार्ड बना देगे फिर आपको अपने में पेपर में लिखने की जगह दे देगे |
मै बोला बॉस मै तो विधार्थी हु इतना पैसा कैसे दू ,तुम कुछ कम कर लो फिर वह ३५० रूपये में मान गए और अगले दिन मुझे प्रेस कार्ड बना के दे दिया | मै प्रेस कार्ड देख कर खुश हुआ चलो यार कही तो छपने की जगह मिल गयी |
मेरे कुछ लेख वीकली पेपर में प्रकाशित हुए, एक दिन पेपर में किसी का बड़ा लेख छपा था | मैंने पूछा की गुरु ये कौन है वह बोला क्या मिलना है | मै मिलने के लिए त्रिलोकपुरी डेल्ही में जा पंहुचा तो देखा घर में बुरी तरीके की महक आ रही थी | मेरा परिचय हुआ तो पता चला की वह वीकली पेपर की उपसंपादक है |
वीकली पेपर के संपादक ने पूरे मयूर विहार , त्रिलोकपुरी , कल्याणपुरी बहुत लोगो के कार्ड बना चूका था | मै बोला गुरु तुम्हारे पेपर के रिपोर्टर तो पूरे डेल्ही में है मगर तुम्हारी उपसंपादक का सीन अलग है वहा चहकते हुए बोला आखिर क्या ?
गुरु वह तो धंधा करती और करवाती है यार गश्ती है | फिर तुमने प्रेस कार्ड बना के दे दिया | संपादक के चेहरे पर मुस्कराहट साफ़ तैर रही थी | अरे गंगवार पापी पेट का सवाल है एक प्रेस कार्ड के जरिये १५० - २५० - ५०० -१००० रूपये मिल जाता है पेपर महीना में दो बार छाप लेते है केवल ५०० कापी निकालते है | मगर बॉस ये तो गलत है |
संपादक ने गाली देते हुए कहा साली अगर धंधा करते वक़्त पकड़ जाती है तो कार्ड दिखाकर छुट जाती है नहीं तो हम छुडवा देते है | हमें हर तरफ से कमाई हो जाती है | हमने इस पेपर को बच्चे की तरह पाला है | जिसे बीबी माना वह हरामखोर निकल गयी, बेटा भी छीन लिया है
साली पोलिसे विभाग में सिपाही की नौकरी करती है |इस लिए साला घरवार छोड़ दिया | दो वक़्त की रोटी खा रहे है क्या पत्रकरिता क्या पत्रकार ? सब दलाली करनी पड़ती है ये कहते कहते संपादक की आखो से पानी बहने लगा |
गंगवार जी मै थोड़े टाइम का मेहमान हु तुम बहुत सीधे हो दोस्त , दुनिया बहुत हरामी है | एक बार मुंबई गया था ग्रांट रोड में मेरा रंडी से मिलन हो गया तब से पीड़ित हु | मुझे खतरनाक बीमारी हो गयी है |
तुम अपनी पढाई ख़तम करके मुंबई जा रहे हो | तुमने मेरा बहुत साथ दिया है अब कौन देगा यह सोच रहा हु | संपादक की मुह से दुआ निकल रही थी | मैंने कंधे पर हाथ रखते हुए बोला बॉस चिंता न करो मै आपका केयर रखुगा |
मै मुंबई शिफ्ट कर गया फिर एक बार डेल्ही जाना हुआ तो पता चला संपादक जी कोटला में रह रहे है जैसे तैसे करके कमरा तलाश किया| शाम के ८ बज चुके थे | मुझे देखते ही गले लगकर फूट फूट कर रोने लगे | मैंने हाथ पकड़ कर खटिया पर बिठा लिया | वह घूर घूर कर देखने लगे|
मेरा बेटा मर गया , वह पेपर को बेटा कहते थे | अब दवा के लिए पैसा नहीं तो बेटा कैसे पालू | बोले मै खाना बना लेता हु तुम खाना खा के जाना - सुशील जी हो सकता है यह हमारा आखिरी मिलन हो | कब मौत आ जाये पता नहीं ये साली दवा बहुत महगी आती है |
मै बोला चिता ना करो बॉस कुछ नहीं होगा तुमे ? साले तुम दोस्त होकर झूटी तसल्ली देते हो |तुम भी हरामी हो गए हो | खाना नहीं तो चाय पीलो | मैंने अपनी जेव से पैसा निकाला और उनके हाथ पर रख दिया और कहा गुरु मै चलता हु फिर मिलते है |
यार बैठो तो चले जाना | संपादक जी का बार बार रोकना मुझे अच्छा लग रहा था परन्तु मुझे अगले दिन मुंबई की गाडी पकडनी थी | मुझे खबर मिली वह गुजर चुके है | वह जिन्दगी और मौत की लडाई लड़ रहे थे जिसे हम एच आई वी कहते है | आज भी मेरी नजरे खोजती रहती है आखिर तुम हो कहा ?
यह लेख साक्षात्कार.कॉम - साक्षात्कार.ओर्ग , साक्षात्कार टीवी.कॉम संपादक सुशील गंगवार ने लिखा है जो पिछले ११ साल से प्रिंट मीडिया , वेब मीडिया , इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए काम कर रहे है उनसे संपर्क ०९१६७६१८८६६ पर करे |
पत्रकारिता का एक नया संस्करण, "वैश्यावर्ति" जिसमे जीवन यापन के लिए चित्र चरित्र सब कुछ बिकाऊ है !.....
ReplyDeleteSUSHIL JI
ReplyDeleteNAMSKAR
APKE LEKH AKSAR PADHTA HU
BATE ACHI LAGTI HAI
PAR SOCHATA HU
KYA BATE ACHI HONE SE KYA FAYDA
PAHLE MAI BHI PATRAKARITA ME JANA CHAHTA THA
CHOTI MOTI KOSISH BHI KI
KI
CRIME/KHOJI PATRAKAR BANU
PER JO MILA USNW PATRAKARITA KO VYAPAR BANA RAKHA THA SO CHOR DIYA
APKE MADHAYAM SE EK SACHHI GHATNA LIKHNA CHAHTA HU KOSISH HAI KI IS DES KA SACH ISI DESH KE LOGO KO PATA CHALE BISESH KAR ANNA JI KO
GHATNA YE HAI
EK DIN TRAIN KE SLEEPER CLASS ME SAFAR KAR RAHA THA KUCH LOG BAITHE THE
UN DINO SARA DES ANNA ANNA BOL RAHA THA BILKUL LAGTA THI KI DEASH KA HAR ADMI IMANDAR HO GAYA HAI EK MAHASAY US BHIR ME ANNA KE SAMRATHAK BANKER UNKA BAKHAN KER RAHE THE
SARE LOG BADI GAUR SE UNKI BATO KA SAMARTHAN KER RAHE THE ,
TABHI TTE MAHASAY KA AGAMAN HUA UN MAHASAY KA TICKET DEKHTE HI UNKO BOLE 300 KI RASID BANWA LO YE SLEEPER HAI . MAHASAY KUCH LE DEKAR KAM CHALANE KE MOOD ME AA GAYE
TTE MAHODAY NE KAHA ABHI ADHE GHANTE SE TUM ANNA ANNA CHILLA RAHE THE AB ANNA KE SAMRATHAN ME BOL RAHE THE AB KYU NAHI ANNAGIRI KO BADHAWA DE RAHE CHALO NIKALO 300 RUPAYE
PATA HAI USNE KYA KAHA
BHAD ME JAYE ANNA
TTE MAHODYA NE UNHE KASAM DILAYEE KAHA AB KABHI TRAIN ME ANNA KI WAKALAT MAT KARNA
AB AAP BATAIYE KYA IS DES KA BHARSTACHAR MAJBOOT LOKPAL SE KHATM HO SAKTA HAI?????????????
मार्मिक । मेरे साइट पर जा रहा है यह लेख । यहा पत्रकारों की दास्तां बयां करता है । डायलग अलग है सच्चाई अलग .
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